#BhagavadGita

अध्याय: ०६, श्र्लोक: २४

सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः॥
संसार के चिन्तन से उठने वाली सभी इच्छाओं का पूर्ण रूप से त्याग कर हमें मन द्वारा इन्द्रियों पर सभी ओर से अंकुश लगाना चाहिए।
संकल्प-दृढ़ संकल्पः प्रभवान्–उत्पन्न; कामान्–कामना; त्यक्त्वा-त्यागकर; सर्वान्-समस्त; अशेषत:-पूर्णतया; मनसा-मन से; एव-निश्चय ही; इन्द्रिय-ग्रामम्-इन्द्रियों का समूह; विनियम्य-रोक कर; समन्ततः-सभी ओर से।
Chapter: 06, Verse: 24

saṅkalpa-prabhavān kāmāns tyaktvā sarvān aśheṣhataḥ
manasaivendriya-grāmaṁ viniyamya samantataḥ

Completely renouncing all desires arising from thoughts of the world, one should restrain the senses from all sides with the mind.
saṅkalpa—a resolve; prabhavān—born of; kāmān—desires; tyaktvā—having abandoned; sarvān—all; aśheṣhataḥ—completely; manasā—through the mind; eva—certainly; indriya-grāmam—the group of senses; viniyamya—restraining; samantataḥ—from all sides
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 24 (Shri Krishna uvach)

The name of this chapter is Dhyān Yog i.e. The Yog of Meditation.

Jai Shri Krishna ❤️🙏🏻🌸

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Nov 6
#Thread

Know the techniques and benefits of Kriya Yoga. Image
Yoga is a holistic practice for the benefit of body, mind and soul. Kriya Yoga is a very ancient form of spiritual sadhana derived from the yoga system.
It can be described as the science of balancing the life energy in a way it heals the body and mind and elevates the consciousness to the higher levels culminating in self-realization.

Through Kriya Yoga, man can ascend to the higher spiritual planes with ease.
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Nov 5
#BhagavadGita

अध्याय: ०६, श्र्लोक: २५

शनैः शनैरूपरमेबुद्ध्या धृतिगृहीतया।
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्॥ Image
फिर धीरे-धीरे निश्चयात्मक बुद्धि के साथ मन केवल भगवान में स्थिर हो जाएगा और भगवान के अतिरिक्त कुछ नहीं सोचेगा।
शनै:-क्रमिक रूप से; शनै:-क्रमिक रूप से; उपरमेत्–शान्ति प्राप्त करना; बुद्धया-बुद्धि से; धृति-गृहीतया-ग्रंथों के अनुसार दृढ़ संकल्प से प्राप्त करना; आत्म-संस्थम्-भगवान में स्थित; मन:-मन; कृत्वा-करके; न-नहीं; किञ्चित्-अन्य कुछ; अपि-भी; चिन्तयेत्-सोचना चाहिए।
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Nov 4
#BhagavadGita

अध्याय: ०६, श्र्लोक: २३

तं विद्यादः दुःखसंयोगवियोगं योगसज्ञितम्।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा॥ Image
दुःख के संयोग से वियोग की अवस्था को योग के रूप में जाना जाता है, ऐसा तू जान। इस योग का दृढ़तापूर्वक कृतसंकल्प के साथ निराशा से मुक्त होकर पालन करना चाहिए।
तम्-उसको; विद्यात्-तू जान; दु:ख-संयोग-वियोगम्-वियोग से दुख की अनुभूति; योग-संज्ञितम्-योग के रूप में ज्ञान; निश्चयेन-दृढ़तापूर्वक; योक्तव्यो–अभ्यास करना चाहिए; योग-योग; अनिर्विण्णचेतसा-अविचलित मन के साथ।
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Oct 19
#Thread

Presenting a brief information about Nalanda University.
Bihar needs no introduction. It’s a land of wisdom and learning.

The University of Nalanda was established during the reign of Gupta Empire in 5th century. It was one of the earliest universities in the world.

Built in red bricks, the university is an architectural masterpiece.
It is believed that the whole University campus is spread across over 15,000,000 sq meters and only 10% of which has been excavated while rest of the ruins still lie under the ground.

At that time, it was the only international university in the world.
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Oct 19
#BhagavadGita

अध्याय: ०६, श्र्लोक: ०७

जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः॥
वे योगी जिन्होंने मन पर विजय पा ली है वे शीत-ताप, सुख-दुख और मान-अपमान के द्वंद्वों से ऊपर उठ जाते हैं। ऐसे योगी शान्त रहते हैं और भगवान की भक्ति के प्रति उनकी श्रद्धा अटल होती है।
जित-आत्मन:-जिसने मन पर विजय प्राप्त कर ली हो; प्रशान्तस्य–शान्ति; परम-आत्मा-परमात्मा; समाहितः-दृढ़ संकल्प से; शीत-सर्दी; उष्ण-गर्मी में; सुख-सुख, दुःखेषु-और दुख में; तथा-भी; मान-सम्मान; अपमानयोः-और अपमान।
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Oct 18
#BhagavadGita

अध्याय: ०६, श्र्लोक: ०६

बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्॥
जिन्होंने मन पर विजय पा ली है, मन उनका मित्र है किन्तु जो ऐसा करने में असफल होते हैं मन उनके शत्रु के समान कार्य करता है।
बन्धुः-मित्र; आत्मा–मन; आत्मनः-उस व्यक्ति के लिए; तस्य-उसका; येन-जिसने; आत्मा-मन; एव–निश्चय ही; आत्मना-जीवात्मा के लिए; जित:-विजेता; अनात्मनः-जो मन को वश नहीं कर सका; तु-लेकिन; शत्रुत्वे-शत्रुता का; वर्तेत-बना रहता है; आत्मा-मन; एव-जैसे; शत्रु-वत्-शत्रु के समान।
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