कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है !
🩸#सोना
सोना एक गर्म धातु है ! सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है !
🩸#चाँदी
चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है ! शरीर को शांत रखती है इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है,
आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है !
🩸#कांसा
काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है ! लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है !
कांसे के बर्तन में
खाना बनाने से केवल ३ प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं !
🩸#तांबा
तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है ll
इसलिए
इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है !
🩸#पीतल
पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती !
पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल ७ प्रतिशत पोषक
तत्व नष्ट होते हैं
🩸#लोहा !!
लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से शरीर की शक्ति बढती है, लोह्तत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है ! लोहा कई रोग को खत्म करता है,
पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को
दूर रखता है.
लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है ! लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है !
🩸#स्टील
स्टील के बर्तन नुक्सान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल
से. इसलिए नुक्सान नहीं होता है.
इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी नहीं पहुँचता !
🩸#एलुमिनियम
एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है ! इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान होता है ! यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र
का उपयोग नहीं करना चाहिए !
इससे हड्डियां कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है ! उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है !
एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से ८७ प्रतिशत
पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं !
🩸 #मिट्टी
मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे ! इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं !
आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए ! भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है ! दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त हैमिट्टी के बर्तन !
मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे १०० प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं ! और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है!✍🏻
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माँ मैं एक पार्टी में गया था. तूने मुझे शराब नहीं पीने को कहा था, इसीलिए बाकी लोग शराब पीकर मस्ती कर रहे थे और मैं सोडा पीता रहा. लेकिन मुझे सचमुच अपने पर गर्व हो रहा था माँ,
जैसा तूने कहा था कि 'शराब पीकर गाड़ी नहीं चलाना'.
मैंने वैसा ही किया. घर लौटते वक्त मैंने शराब को छुआ तक नहीं,
भले ही बाकी दोस्तों ने मौजमस्ती के नाम पर जमकर पी.
उन्होंने मुझे भी पीने के लिए बहुत उकसाया था.
पर मैं अच्छे से जानता था कि मुझे शराब नहीं पीनी है और मैंने
सही किया था.
माँ, तुम हमेशा सही सीख देती हो. पार्टी अब
लगभग खत्म होने
को आयी है और सब लोग अपने-अपने घर लौटने की तैयारी कर रहे हैं.
माँ ,अब जब मैं अपनी कार में बैठ रहा हूँ तो जानता हूँ कि केवल कुछ समय बाद मैं अपने घर अपनी प्यारी स्वीट माँ और पापा के पास रहूंगा.
तुम्हारे और पापा के इसी प्यार और संस्कारों ने मुझे जिम्मेदारी सिखायी
"आरती लेने" का यह होता है अर्थ!!!!!क्या है आरती का अर्थ!!!!
शास्त्रों में बताया गया है कि आरती शब्द संस्कृत के "आर्तिका" शब्द से बना है। जिसका अर्थ है, अरिष्ट, विपत्ति, आपत्ति, कष्ट और क्लेश। भगवान की आरती को "नीराजन" भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है किसी स्थान #Thread
को विशेष रूप से प्रकाशित करना। शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार, आरती के इन्हीं दो अर्थों के आधार पर भगवान की आरती करने के दो कारण बताए गए हैं।
आरती करने का पहला कारण!!!!
आरती में दीपक की लौ को देवता के समस्त अंग-प्रत्यंग में बार-बार इस प्रकार घुमाया जाता है कि भक्तगण
आरती के प्रकाश में भगवान के चमकते हुए आभूषण और अंगों का प्रत्यक्ष दर्शन कर सकें और संपूर्ण आनंद को प्राप्त कर सकें। ईश्वर की छवि को अच्छी तरह निहारकर हृदय में भर सकें। इसलिए आरती को नीराजन कहते हैं, क्योंकि इसमें भगवान की छवि को दीपक की लौ से विशेष रूप से प्रकाशित किया
*#जनेऊ क्या है और #इसकी_क्या_महत्वता है ??
"भए कुमार जबहिं सब भ्राता।
दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता"॥ #जनेऊ_क्या_है : आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इस धागे को जनेऊ कहते हैं।
जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है #Thread
। जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है।
यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है।
अर्थात इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे।
तीन सूत्र क्यों : जनेऊ में मुख्यरूप से तीन धागे होते हैं।
यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है।
यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है।यह तीन आश्रमों का प्रतीक है।
संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है।
नौ तार : यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं।
#अत्रि_ऋषि_की_पत्नी_और_सती_अनुसूया_की_कथा से अधिकांश धर्मालु परिचित हैं। उनकी पति भक्ति की लोक प्रचलित और पौराणिक कथा है। जिसमें त्रिदेव ने उनकी परीक्षा लेने की सोची और बन गए नन्हे शिशु ...
देवियां मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां पार्वती को परस्पर विमर्श करते देखा। तीनों देवियां अपने स तीत्व और पवित्रता की चर्चा कर रही थी। नारद जी उनके पास पहुंचे और उन्हें अत्रि महामुनि की पत्नी अनुसूया के असाधारण पातिव्रत्य के बारे में बताया। नारद जी बोले उनके समान पवित्र
और पतिव्रता तीनों लोकों में नहीं है। तीनों देवियों को मन में अनुसूया के प्रति ईर्ष्या होने लगी। तीनों देवियों ने सती अनसूया के पातिव्रत्य को खंडित के लिए अपने पतियों को कहा तीनों ने उन्हें बहुत समझाया पर पर वे राजी नहीं हुई।
मिथिला नाम की नगरी में महाराज जनक राज्य करते थे। उनका नाम था सीरध्वज। एक बार वे यज्ञ के लिए पृथ्वी जोत रहे थे उस समय फाल से बनी गहरी रेखा द्वारा एक कुमारी कन्या का प्रादुर्भाव हुआ। रति से भी सुंदर
कन्या को देख कर राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने उस कन्या का नाम सीता रख दिया
परम सुंदरी सीता एक दिन सखियों के साथ उद्यान में खेल रहीं थीं। वहाँ उन्हें एक शुक पक्षी का जोड़ा दिखाई दिया,जो बड़ा मनोरम था। वे दोनों पक्षी एक पर्वत की चोटी पर बैठ कर इस प्रकार बोल रहे थे
‘पृथ्वी पर श्री राम नाम से विख्यात एक बड़े सुंदर राजा होंगे। उनकी महारानी, सीता के नाम से विख्यात होंगी। श्री राम, सीता के साथ ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य करेंगे। धन्य हैं वे जानकी देवी और धन्य हैं वे श्री राम।
तोते को ऐसी बातें करते देख सीता ने यह सोचा कि ये दोनों मेरे ही