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🌹15नवंबर : बिरसा मुंडा जन्मजयंती🌹
जल, जंगल, जमीन के लिए संघर्ष करने वाले महान शूरवीर योद्धा, उलगुलान के जनक व 'अबुआ दिशुम, आबुआ राज' यानी 'हमारा देश, हमारा राज' नारे के सृजनकर्ता जननायक बिरसा मुंडा का जन्म 15नवंबर1875 को झारखंड प्रदेश मे रांची के खूंटी क्षेत्र
अन्तर्गत उलीहातू गांव मे सुगना मुंडा और करमी हातू दम्पति के घर हुआ था| अकाल और महामारी के कारण इन्होने अंग्रेजो से लगान माफी और जमींदारो की बेगारी के विरुद्ध क्षेत्र के सभी आदिवासिओ को एकत्र कर तीर-कमानो से लैस होकर जनांदोलन (उलगुलान) चलाया| इसी क्रम मे अंग्रेजो से
उनकी कई बार भिडन्त हुई और एक बार इन्हे दो साल की सजा के अन्तर्गत हजारी बाग केन्द्रीय कारागार मे भी रखा गया तथा अन्त मे 03फरवरी1900 को बिरसा को गिरफ्तार कर रांची जेल मे डाल दिया गया| अंग्रेजो द्वारा धीमा जहर देने के कारण जेल मे ही बिरसा की मृत्यु 09जून1900 को हो गयी|
बिहार, झारखंड, उडीसा, छत्तीसगढ, पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाको मे लोग इन्हे भगवान की तरह पूजते है तथा लोग इन्हे धरती बाबा(आबा) के नाम से भी पुकारते है| बिरसा की समाधि रांची मे कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है| वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है| उनकी स्मृति मे रांची
मे बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा हवाई अड्डा भी है| उनके 113वें जन्मदिन के अवसर पर 15नवंबर1988 को भारत सरकार ने 60 पैसे का डाक टिकट जारी किया तथा संसद के सेंट्रल हाल मे उनका एक चित्र भी लगाया गया| उनके 125वें जन्मदिवस पर झारखंडप्रदेश की स्थापना भी की गयी|
अंग्रेजो ने इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1865 व 1878 पारित कर आदिवासियो को जंगल से बेदखल कर दिया तो राजा, महाराजा, नवाब, जागीरदार, जमींदार, साहूकार, महाजन इन सभी ने अंग्रेजो से मिलकर आदिवासियो पर जमींदारी व्यवस्था थोप दी| जहाँ आदिवासी सामूहिक खेती करते, छल कपट से उन जमीनो को छीनकर
आदिवासियो को बंधुआ मजदूर बनाकर राजस्व की नई व्यवस्था लागू कर दी और फिर शुरू हुआ गोरे एवं काले अंग्रेजो द्वारा भोले भाले आदिवासियो का शोषण| इसी जमींदारी और शोषण के विरोध मे बिरसा मुंडा उठ खडे होते है जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए| बिरसा मुंडा के बलिदान को केवल फिरंगियो तक ही
सीमित रखना उनके बलिदान का मखौल उड़ाना है| वे ऐसे जननायक थे जिन्होने झारखंड मे अपने क्रांतिकारी चिंतन से आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक युग का सूत्रपात किया| आज उनकी 147वीं जन्मजयंती पर उन्हे सादर नमन🌹🌹

forwardpress.in/2018/11/mhanay…

satyagrah.scroll.in/article/107466…
तुम्हारी जमीन धूल की तरह आँधी मे उड गई है, तुम्हारा आत्मविश्‍वास, आत्मसम्मान के साथ खो गया है, अगर इसे पुनः जागृत नही करोगे, तो अपनी बहु-बेटियो की इज्जत कैसे बचा पाओगे|

धरती आबा जननायक बिरसा मुंडा जी के 147वें जन्मजयंती के अवसर पर देश के सभी मूलनिवासी बहुजनो को बहोत बहोत बधाई|

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#सुभेदार_रामजी_सकपाल

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Nov 12
स्वर्ग की संकल्पना बौद्ध धर्म के मिथ्रा पंथ (Mithraism) से विकसित हुई थी|

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धम्म के आचरण से हम आकाश मे मैत्रेय बोधिसत्व के संग सभी सुखो मे रह सकते है और धम्म का पालन करने से हमे आकाशी मैत्रेय बोधिसत्व के साथ सुखमय जीवन बिताने का मौका मिल सकता है ऐसी संकल्पना मध्य एशिया
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संपुर्ण भारत मे किया और बौद्ध धर्म को खत्म कर वैदिक धर्म का बौद्ध धर्म पर विजय स्थापित किया, जिसे शंकरदिग्विजय कहा जाता है और उसका वर्णन माधवाचार्य के शंकरदिग्विजय ग्रंथ मे मिलता है| बौद्ध धर्म पर विजय के प्रतीक के तौर पर शंकराचार्य ने भारत के चार कोने मे स्थापित सम्राट अशोक के
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