क्यों कहतीं हैं पापा की परियाँ मेरा अब्दुल ऐसा नही।
"एक होता है जाल में फँसना और एक होता है योजनाबद्ध तरीक़े से जाल में फँसाना।"
और जाल में फँसाने के लिए इनका पूरा ईकोसिस्टम इनका साथ देता है।
1. ये अपने बाहरी रंग रूप पे बहुत ध्यान देते हैं, पाँच टाईम की "उट्ठक बैठक" (1/10)
एक तरह की एक्सरसाईज ही होती है जो इनको फ़िट रखती है। ऊपर से अधिकरत जिम संचालक इनके भाई बन्धू होते हैं जो बॉड़ी बनाने में इनकी मदद करते हैं। नतीजा पँचर बनाने वाला भी अच्छे कपड़े पहन के हीरो दिखता है।
2. बचपन से ना इनके ऊपर पढ़ाई का प्रेशर होता है ना उच्च शिक्षा का दबाव। (2/10)
आवारागर्दी और लड़कियों के आगे पीछे घूमने के लिए भरपूर समय होता है।
3. इनका एक ही लक्ष्य होता है हिंदू लड़की को हाँसिल करना। दस बार धिक्कारे जाने / गालियाँ देने पर भी ये अपने लक्ष्य से नहीं हटते।
4. इनका पूरा समाज इनकी मदद करता है, जैसे महँगी बाईक / गाड़ियाँ उपलब्ध (3/10)
करवाना, लड़की को घुमाने फिराने के लिए हर जगह अरेंजमेंट, डिस्काउंट।
5. महिलाओं की मैंसेंजर की फ़िल्टर हटा के देखिए सबसे ज़्यादा इन शांतिदूतों के ही Hi hello पड़े मिलेंगे। जैसे हमारे लड़कों का उद्देश नौकरी पाना होता है इनका हिंदू कन्याओं को हाँसिल करना। ये हर समय महिलाओं /
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लड़कियों का दुःख सुख बाँटने को एकदम फ़्री होते हैं। क्योंकि खन्नत मिलने के अलावा इनके समाज के ठेकेदारों से अच्छे ख़ासी रक़म मिलने का भी लालच होता है। तो शिकार को हाँसिल करने तक ये दुनिया के मोस्ट केयरिंग और मोस्ट शरीफ़ इंसान होते हैं।
6. परिवार से दूर रहने पर लड़कियों (5/10)
के लिए हर जगह समय पर मदद के लिए पहुँचने वाले। रेंट के घर से लेकर हर सुविधा दिलवाने में सहायता करने वाले देवदूत, हेयर ड्रेसर, मोबाईल सेलर, प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन, जिम इंस्ट्रक्टर हर छोटे बड़े कामों में इनका क़ब्ज़ा है और हर आपातकाल में ये कन्याओं की मदद के लिए मौजूद (6/10)
रहते हैं।
7. काली साँवली शादीशुदा, डिवोर्सी विधवा हर लड़की इनको चलेगी और लड़की लाख बार ब्रेकअप कर ले ये पैरों में लोट कर भी मना लेंगें।
8. उर्दू जबान के कारण शेरोशायरी में उस्ताद होते हैं, जिससे लड़कियाँ आसानी से लहालोट हों जाती हैं।
क्योंकि इनका मक़सद बहुत बड़ा है।
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सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने धर्म को बढ़ाना।
अब ये कहने से पहले की लड़कियाँ जाल में फँसती क्यों हैं। एक बार खुद के अंदर झाँक के देखिएगा।
अधेड़ उम्र के लोग भी जब ईश्क ईश्क की पिप्ली पूरी बेशर्मी से बजा रहे हैं तो इनको कैसे रोकेंगे आप?
आख़री बात, वो महिलाओं को खेती मानते हैं तो (8/10)
उसके चारों तरफ़ भय और दहशत की कँटीली बाढ़ लगा कर रक्षा करना जानते हैं।
हम तो अभी भी इस कंफ्यूजन में हैं की महिलाओं को देवी मानें या इंसान।
समस्या इतनी विकराल है की हल निकालने के लिए जान की बाज़ी लगानी पड़ेगी।
तो आइए आसान तरीक़ा निकालते हैं, अभिभावक पर, लड़की पर, (9/10)
लड़की की माँ पर... किसी ना किसी को धिक्कार कर आत्मसंतुष्टि का रसापान करते हैं।
यह महाराजा रणजीत सिंह जी की सेना का ध्वज है। रक्त वर्ण के ध्वज के मध्य में अष्टभुजा जगदम्बा दुर्गा, बायें हनुमान जी और दायें कालभैरव विराज रहे हैं। पठानों की छाती फ़ोड़ कर अक्टूबर 1836 को ख़ैबर के जमरूद के किले पर यही पवित्र ध्वज (1/7)
फहराया गया था।
यह ध्वज कुछ समय पूर्व शायद सिदबी द्वारा लंदन में नीलाम किया गया था। अब किसी के व्यक्तिगत कलेक्शन का हिस्सा है।
ये स्थापित सत्य है, महराजा रणजीत सिह हिन्दू देवी देवताओं मे अगाध श्रद्धा रखते थे, अपनी वसीयत मे उन्होंने कोहिनूर हीरा जगन्नाथ मन्दिर मे चढाने (2/7)
की इच्छा जतायी थी
स्वर्ण मंदिर नाम है... स्वर्ण गुरुद्वारा नहीं... इसी में बहुत कुछ निहित है।
1984 से पहले स्वर्ण मंदिर में भी दुर्गा जी की प्रतिमा रखी थी।
परिक्रमा में अनेकों देवी-देवताओं की प्रतिमाएं थीं। हरि मंदिर तब महंत सम्हालते थे मगर यह 70-80 वर्ष से अधिक पुरानी (3/7)
मनमौजी दुबे को जानते है? बनारस के ब्राह्मण दंपत्ति जिनकी पुत्री मनु उर्फ मणिकर्णिका, जानते हैं आप? जी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई यही थीं। इन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं.!
लखनऊ की ऊदा देवी को अधिकतर लोग नहीं जानते होंगे। ब्रिटिश फौजी सिकंदर बाग पर कब्जा करने की कोशिश कर (1/11)
रहे थे, लेकिन ऊदा देवी ने अकेले ही इन्हें कई घंटे रोककर रखा। ब्रिटिश जनरल कूपर, जनरल लैम्सजन सहित कई सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। तीन घंटे बाद, उनकी शहादत के उपरांत ही अंग्रेज बाग में प्रवेश कर सके.!
मुंदर, झलकारी देवी लक्ष्मीबाई की सहेलियां थीं, जिन्होंने उन्हीं की (2/11)
तरह युद्ध में प्राणोत्सर्ग किया। महारानी तपस्विनी देवी उर्फ सुनंदा, लक्ष्मीबाई की भतीजी थी। बाल विधवा सुनंदा छापेमार दस्ते के नेतृत्व, सामरिक निरीक्षण जैसी भुमिकाएँ निभाती थीं। वह कभी अंग्रेजों की गिरफ्त में नहीं आईं.!
मांडला की रानी अवंतिकाबाई ने अठारह सौ अट्ठावन को (3/11)
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की अगुवाई वाली राज्य सरकार द्वारा पादरियों को दिए जा रहे वेतन पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार से पूछा है की आप सरकारी खजाने से पादरियों को दिए जा रहे वेतन को कैसे सही ठहरा सकते हैं।
‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ (1/10)
की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार की ओर से पादरियों को दिए जा रहे वेतन को को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिका में सरकार के इस फैसले को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने इस संबंध में सरकार से जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। हाईकोर्ट ने कहा की धार्मिक गतिविधियों के लिए फंड (2/10)
देना अलग बात है, लेकिन किसी के धार्मिक आस्था के लिए वेतन देना अलग बात है। वहीं सोशल मीडिया पर भी लोगों ने सवाल उठाया कि आखिर कैसे पादरियों को जनता के रुपए से वेतन दिया जा सकता है।
विजयवाडा के विजय कुमार ने पादरियों को वेतन भुगतान करने के संबंध में सरकारी आदेश (जीओ) संख्या (3/10)
सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पणखा निकली।
सोने का हिरन बाद में मारीच निकला।
भिक्षा माँगने वाला साधू बाद में रावण निकला।
लंका में तो निशाचार लगातार रूप ही बदलते दिखते थे।
हर जगह भ्रम, हर जगह अविश्वास, हर जगह शंका... बावजूद इसके जब लंका में अशोक वाटिका के नीचे सीता माँ को राम (1/7)
नाम की मुद्रिका मिलती है तो वो उस पर 'विश्वास' कर लेती हैं। वो मानती हैं और स्वीकार करती हैं कि इसे प्रभु श्री राम ने ही भेजा है।
जीवन में कई लोग आपको ठगेंगे, कई आपको निराश करेंगे, कई बार आप भी सम्पूर्ण परिस्थितियों पर संदेह करेंगे... लेकिन इस पूरे माहौल में जब आप रुक (2/7)
कर पुनः किसी व्यक्ति, प्रकृति या अपने ऊपर 'विश्वास' करेंगे तो रामायण के पात्र बन जाएंगे।
राम और माँ सीता केवल आपको 'विश्वास करना' ही तो सिखाते हैं। माँ कठोर हुईं लेकिन माँ से विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुईं लेकिन उसके बेहतर होने का विश्वास नहीं छूटा, भाई-भाई (3/7)
विकास दिव्यकीर्ति जी की प्रसिद्धि की भूख और उत्तेजित अज्ञानी हिंदू!
पिछले दो दिन से इस विषय पर पाठकों के विचार जानने की कोशिश कर रहा था... अधिकांश लोग आहत हैं, कुछ लोग समर्थन कर रहे हैं! कुछ आश्चर्य कर रहे हैं कि क्या राम ने ऐसा कहा होगा? राम हों या कृष्ण अनेक लोग इनके (1/20)
जीवन में इनके विरोधी थे, तो लेखन भी वैसा ही हुआ था!
वाल्मीकि अन्य लेखकों से अलग हैं, वे राम के समकालीन हैं, वे राम को दिव्य पुरुष मानते हैं, उस काल और सभ्यता का आदर्श पुरुष मानते हैं। इसके बाद भी सीता को शरण देते हैं। अपनी पुत्री मानते हैं और सीता का पक्ष रखते हैं। (2/20)
सीता के पुत्रों को अपना पहला शिष्य मान कर उन्हें रामायण गाना सिखाते हैं (अंततः ये दोनों भाई राम की सभा में जाकर रामायण गाते हैं) राम हिल जाते हैं !
आज हम दिव्य कीर्ति की बात नहीं करेंगे क्योंकि वे कुछ नया नहीं कह रहे हैं!
वे पहले से कहे गए तथ्य को अपनी सुविधा से ट्विस्ट (3/20)
यदि इन घटनाओं पर थोड़ा नियन्त्रण स्थापित करना है तो वराहदेव की शरण ही इस समय एकमात्र साधन है... बहनों को असुरों के प्रेमजाल रूपी वशीकरण से बचाने हेतु वराह देव के तीखे दाढ़ दन्तों से बने कवच रूपी ताबीज को धारण कराने से वशीकरण कट जाता है।
सुअरों के थूथन से दो दांत निकले (1/6)
होते हैं जिन्हें कुकुर दंत कहा जाता है। तंत्र क्रिया में इन्हीं कुकुरदंतों का इस्तेमाल होता है। यह किसी भी हिन्दू वाल्मीकि कसाई के यहां से प्राप्त किया जा सकता है... अमूमन तंत्रक्रिया से बचाव में स्वाभाविक मृत्यु के बाद प्राप्त किया गया सूअर का दांत ज्यादा कारगर होता है।
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शूकर दंत लेकर वराहदेव की साधना की जाती है| वशीकरण करने एवं काटने हेतु शूकर दंत को पहले सिद्ध करना आवश्यक है, जिसकी विधि अत्यंत सरल है। होली दीपावली, दशहरा अथवा ग्रहण काल में अपने दाहिने हाथ में शूकर दंत रखें तथा 108 बार निम्नलिखत मंत्र का जाप करें:-
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