कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था।
उनको जिन्होंने पाला था उनका नाम यशोदा और धर्मपिता का नाम नंद था।
बलराम की माता रोहिणी ने भी उन्हें माता के समान दुलार (4/23)
दिया। रोहिणी वसुदेव की पत्नी थीं।
कृष्ण के गुरु:-
गुरु संदीपनि ने कृष्ण को वेद शास्त्रों सहित 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान दिया था।
गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा दी थी।
माना यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण अपने चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर (5/23)
नेमिनाथ के प्रवचन सुना करते थे।
कृष्ण के भाई:-
कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे।
शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ।
अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वसुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण।
इस प्रकार (6/23)
नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे।
इसके बाद बलराम और गद भी कृष्ण के भाई थे।
कृष्ण की बहनें:-
कृष्ण की 3 बहनें थी।
1. एकानंगा: यह यशोदा की पुत्री थीं।
2. सुभद्रा: वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम और सुभद्र का जन्म हुआ।
वसुदेव देवकी के साथ जिस समय कारागृह (7/23)
में बंदी थे, उस समय ये नंद के यहां रहती थीं।
सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। जबकि बलराम दुर्योधन से करना चाहते थे।
3. द्रौपदी: पांडवों की पत्नी द्रौपदी हालांकि कृष्ण की बहन नहीं थी, लेकिन श्रीकृष्ण इसे अपनी मानस भगिनी मानते थे।
(8/23)
4. देवकी के गर्भ से सती ने महामाया के रूप में इनके घर जन्म लिया, जो कंस के पटकने पर हाथ से छूट गई थी। कहते हैं, विन्ध्याचल में इसी देवी का निवास है। यह भी कृष्ण की बहन थीं।
कृष्ण की पत्नियां:-
रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी।
(9/23)
कृष्ण के पुत्र:-
रुक्मणी से प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, जम्बवंती से साम्ब, मित्रवंदा से वृक, सत्या से वीर, सत्यभामा से भानु, लक्ष्मणा से…, भद्रा से… और कालिंदी से…।
कृष्ण की पुत्रियां:-
रुक्मणी से कृष्ण की एक पुत्री थीं जिसका नाम चारू था।
कृष्ण के पौत्र:-
प्रद्युम्न से (10/23)
अनिरुद्ध। अनिरुद्ध का विवाह वाणासुर की पुत्री उषा के साथ हुआ था।
कृष्ण की 8 सखियां:-
राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं। सखियों के नाम निम्न हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इनके नाम इस तरह हैं:-
चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा (11/23)
भद्रा।
कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं:-
चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी।
इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गई सभी महिलाएं कृष्ण की सखियां थीं। कुछ जगह पर:-
रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है।
कृष्ण के 8 मित्र:-
श्रीदामा, सुदामा, सुबल, स्तोक कृष्ण, अर्जुन, वृषबन्धु, मन:सौख्य, सुभग, बली और प्राणभानु। इनमें से आठ उनके साथ मित्र थे।
ये नाम आदिपुराण में मिलते हैं। हालांकि इसके अलावा भी कृष्ण के हजारों (13/23)
मित्र थे जिसनें दुर्योधन का नाम भी लिया जाता है।
कृष्ण के शत्रु:-
कंस, जरासंध, शिशुपाल, कालयवन, पौंड्रक।
कंस तो मामा था। कंस का श्वसुर जरासंध था। शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। कालयवन यवन जाति का मलेच्छ जाती था जो जरासंध का मित्र था। पौंड्रक काशी नरेश था जो खुद को (14/23)
मोर मुकुट, बंसी, पितांभर वस्त्र, पांचजन्य शंख, गाय, कमल का फूल और माखन मिश्री।
कृष्ण लोक:-
वैकुंठ, गोलोक, विष्णु लोक।
कृष्ण ग्रंथ:-
महाभारत और गीता
कृष्ण का कुल:-
यदुकुल। कृष्ण के समय उनके कुल के कुल 18 कुल थे। अर्थात उनके कुल की कुल 18 शाखाएं थीं।
यह अंधक- (16/23)
वृष्णियों का कुल था। वृष्णि होने के कारण ये वैष्णव कहलाए।
अन्धक, वृष्णि, कुकर, दाशार्ह भोजक आदि यादवों की समस्त शाखाएं मथुरा में कुकरपुरी (घाटी ककोरन) नामक स्थान में यमुना के तट पर मथुरा के उग्रसेन महाराज के संरक्षण में निवास करती थीं।
शाप के चलते सिर्फ यदुओं का नाश (17/23)
होने के बाद अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ को द्वारिका से मथुरा लाकर उन्हें मथुरा जनपद का शासक बनाया गया।
इसी समय परीक्षित भी हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाए गए।
वज्र के नाम पर बाद में यह संपूर्ण क्षेत्र ब्रज कहलाने लगा।
जरासंध के वंशज सृतजय ने वज्रनाभ वंशज (18/23)
शतसेन से 2781 वि.पू. में मथुरा का राज्य छीन लिया था।
बाद में मागधों के राजाओं की गद्दी प्रद्योत, शिशुनाग वंशधरों पर होती हुई नंद ओर मौर्यवंश पर आई। मथुराकेमथुर नंदगाव, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, मधुवन और द्वारिका।
कृष्ण पर्व:-
श्रीकृष्ण ने ही होली और अन्नकूट महोत्सव की (19/23)
शुरुआत की थी।
जन्माष्टमी के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है।
मथुरा मंडल के ये 41 स्थान कृष्ण से जुड़े हैं:-
मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यक वन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल (20/23)
महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, (21/23)
संकेत तीर्थ, लोहवन और वृन्दावन। इसके बाद द्वारिका, तिरुपति बालाजी, श्रीनाथद्वारा और खाटू श्याम प्रमुख कृष्ण स्थान है।
भगवान् शिव से बड़ा कोई श्री विष्णु का भक्त नहीं और भगवान् विष्णु से बड़ा कोई श्री शिव का भक्त नहीं है, इसलिये भगवान् शिव सबसे बड़े वैष्णव और भगवान विष्णु सबसे बड़े शैव कहलाते हैं।
नौ साल के छोटे बालरूप में जब श्री कृष्ण ने महारास का उद्घोष किया (1/13)
तो वृन्दावन में पूरे ब्रह्माण्ड के तपस्वी प्राणियों में भयंकर हलचल मच गयी कि काश हमें भी इस महारास में शामिल होने का मौका मिल जाय।
दूर दूर से गोपियाँ जो की पूर्व जन्म में एक से बढ़कर एक ऋषि, मुनि, तपस्वी, योगी, भक्त थे, महारास में शामिल होने के लिए आतुरता से दौड़ें आये, (2/13)
महारास में शामिल होने वालों की योग्यता को परखने की जिम्मेदारी थी, श्री ललिता सखी की, जो स्वयं श्री राधाजी की प्राणप्रिय सखी थीं और उन्ही की स्वरूपा भी थीं।
हमेशा एकान्त में रहकर कठोर तपस्या करने वाले भगवान् शिव को जब पता चला की श्री कृष्ण महारास शुरू करने जा रहें हैं तो (3/13)
कुल योनियाँ चौरासी लाख कही जाती है। "कुल्लियात आर्य मुसाफिर" में स्वर्गवासी पं. लेखराम जी ने अनेक महात्माओं की साक्षी देकर यह (1/23)
लिखा है। चौरासी लाख योनियों की गणना इस प्रकार कही गयी है।
जल-जन्तु ७ लाख,पक्षी १० लाख,कीड़े-मकोड़े ११ लाख,पशु २० लाख,मनुष्य ४ लाख और जड़ (अचल,स्थावर) ३२ लाख योनियाँ हैं। (देखो गीता रहस्य ले. तिलककृत पृष्ठ १५४)
श्रेष्ठतम योनि:-
प्रश्न:- कर्म योनि और भोग योनि तो मैंने भी (2/23)
सुनी हैं। कर्म योनि तो मनुष्यों की है और भोग योनि पशुओं की। परन्तु यह उभय योनि तो आज ही नई सुनी है। इसका क्या आशय है?
उत्तर:- जो तुमने सुन रखा है, वह भी यथार्थ नहीं। वास्तव में भोग योनि वही है जिसमें केवल भोग ही भोगा जाता है और कर्म नहीं किया जाता। वह बंदी के समान है, (3/23)
मुश्किल घड़ी में भारत ने रूस से ज्यादा तेल खरीदा, प्रतिबंधों के चलते हमारे सहयोग से रूस का बाजार संभला रहा, लड़खड़ाया नहीं! बहुत पुरानी दोस्ती है, ऐसे ही निभाई जाती है! यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोप, ब्रिटेन और अमेरिका ने रूस पर बहुत कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए, तब भारत रूस के (1/9)
साथ खड़ा हुआ है!
भारत यूएनओ से लेकर तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस के साथ मजबूती से खड़ा है, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर रूस को सलाह भी दे रहा है और दुनिया के बाकी देश भारत के पक्ष को समझ भी रहे हैं! भारत ने अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का ऐसा परिचय दिया है जिस पर अंतर्राष्ट्रीय (2/9)
जगत भारत का लोहा मान रहा है!
रूस को वित्तीय संकट से बचाने के लिए भारत के तेल खरीदने का परिणाम देखिए कि अब रूस भारत के व्यापारियों के लिए अपने दरवाजे खोलने जा रहा है। सब कुछ ठीक ठाक चला तो भारत के बड़े मैगा स्टोर्स रूस में दिखाई देंगे। भारत के व्यापारियों को उस देश में (3/9)
हे भारत के राम जगो मै तुम्हे जगाने आया हूँ,
और सौ धर्मो का धर्म एक बलिदान बताने आया हूँ!
सुनो हिमालय कैद हुआ है दुश्मन की जंजीरों में,
आज बतादो कितना पानी है भारत के वीरों में।
खड़ी शत्रु की फौज द्वार पर आज तुम्हे ललकार रही
सोए सिंह जगो भारत के, माता तुम्हें पुकार रही।
(1/10)
रण की भेरी बज रही, उठो मोह निंद्रा त्यागो!
पहला शीष चढाने वाले माँ के वीर पुत्र जागो!
बलिदानों के वज्रदंड पर देशभक्त की ध्वजा जगे
रण के कंकर पैने हैं, वे राष्ट्रहित की ध्वजा जगे
अग्निपथ के पंथी जागो शीष हथेली पर रखकर,
और जागो रक्त के भक्त लाडलों, जागो सिर के सौदागर।
(2/10)
खप्पर वाली काली जागे, जागे दुर्गा बर्बंडा!
रक्त बीज का रक्त चाटने वाली जागे चामुंडा
नर मुण्डो की माला वाला जगे कपाली कैलाशी
रण की चंडी घर घर नाचे मौत कहे प्यासी प्यासी…
‘रावण का वध स्वयं करूंगा!’ कहने वाला राम जगे
और कौरव शेष न बचेगा कहने वाला श्याम जगे!
(3/10)
राजस्थान उदयपुर जिले में नागदा में सास बहू नाम से प्राचीन मंदिरों का समूह है। नागदा मेवाड़ के ईष्ट एकलिंग जी के धाम के पास ही है। मध्य में एक विशाल तालाब स्थित है।यहां के स्थानीय गुहिल शासकों के अभिलेखों में नागदा को नागद्रह कहा (1/11)
गया है। तालाब के आखिरी छोर पर पहाड़ी की तलहटी में एक विशाल और ऊंची जगती पर सास बहू के मंदिर अवस्थित है। इनमे दो मुख्य मंदिर एवम अन्य छोटी देवकुलिकाएं है। लगभग सभी छोटे मंदिर ध्वस्त हो गए हैं। मुख्य दोनो मंदिर के गर्भगृह अंतराल और मंडप में निर्मित है। इन मंदिरों का शिखर (2/11)
भग्न हो चुका है। जिन्हे जीर्णोद्धार किया गया है।
इन मंदिरों के स्तंभ और अंदर की छत को खुदाई कर प्रतिमाओं से अलंकृत किया गया है। मंदिरों के बाहरी दीवारों पर विष्णु, शिव, पितामह, अष्ठदिकपाल आदि की भव्य प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है। मंदिर को वातानुकूलित रखने के लिए (3/11)