#त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 145 किलोमीटर दूर, उनाकोटी है यहां कुल 9999999 पत्थर की मूर्तियां हैं अर्थात करोड़ में एक कम।
इस रहस्य को आज तक कोई भी सुलझा नहीं पाया है कि, ये मूर्तियां किसने कब और क्यों बनाई और सबसे जरूरी कि एक करोड़ में एक कम ही क्यों?
इन रहस्यमय (1/9)
मूर्तियों के कारण ही इस जगह का नाम उनाकोटी पड़ा है, जिसका अर्थ होता है करोड़ में एक कम। कई सालों तक ये जगह अज्ञात थी,अभी भी बहुत कम लोग ही इसके बारे में जानते हैं।
उनाकोटी को रहस्यों से भरी है, क्योंकि एक पहाड़ी इलाका है जो दूर-दूर तक घने जंगलों और दलदली इलाकों से भरा है। (2/9)
अब ऐसे में जंगल के बीच में लाखों मूर्तियों का निर्माण कैसे किया गया होगा, क्योंकि इसमें तो सालों लग जाते और पहले तो इस इलाके के आसपास कोई रहता भी नहीं था। यह लंबे समय से शोध का विषय बना हुआ है।
उनाकोटि में दो तरह की मूर्तियों मिलती हैं, एक पत्थरों को काट कर बनाई गईं (3/9)
मूर्तियां और दूसरी पत्थरों पर उकेरी गईं मूर्तियां। जिनमें भगवान शिव, देवी दुर्गा, भगवान विष्णु, और गणेश भगवान आदि की मूर्तियां स्थित है। इस स्थान के मध्य में भगवान शिव के एक विशाल प्रतिमा मौजूद है, जिन्हें उनाकोटेश्वर के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव की यह मूर्ति लगभग (4/9)
30 फीट ऊंची बनी हुई है। इसके अलावा भगवान शिव की विशाल प्रतिमा का साथ दो अन्य मूर्तियां भी मौजूद हैं, जिनमें से एक मां दुर्गा की मूर्ति है। साथ ही यहां तीन नंदी मूर्तियां भी दिखीं हैं। इसके अलावा यहां और भी ढेर सारी मूर्तियां बनी हुई हैं। इन मूर्तियों के बारे में एक पौराणिक (5/9)
कथा बहुत प्रचलित है।
मान्यता है कि एक बार भगवान शिव समेत एक करोड़ देवी-देवता कहीं जा रहे थे। रात हो जाने की वजह से बाकी के देवी-देवताओं ने शिवजी से उनाकोटी में रूककर विश्राम करने को कहा। शिवजी मान गए, लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि सूर्योदय से पहले ही सभी को यह (6/9)
स्थान छोड़ देना होगा। लेकिन सूर्योदय के समय केवल भगवान शिव ही जग पाए, बाकी के सारे देवी-देवता सो रहे थे। यह देखकर भगवान शिव क्रोधित हो गए और श्राप देकर सभी को पत्थर का बना दिया। इसी वजह से यहां 99 लाख 99 हजार 999 मूर्तियां हैं, यानी एक करोड़ से एक कम (भगवान शिव को छोड़कर)
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यहां हर साल अप्रैल महीने के दौरान अशोकाष्टमी मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं। इसके अलाव यहां जनवरी के महीने में एक और छोटे त्योहार का आयोजन किया जाता है। यह स्थान अब एक प्रसिद्ध पर्यटन गंतव्य बन चुका है। (8/9)
यहां की अद्भुत मूर्तियों को देखने के लिए अब देश-विदेश के लोग आते हैं।
गोपांगनाएँ अनुभव करती हैं कि मानों भगवान् श्रीकृष्ण उनसे कह रहे हैं, 'गोपांगनाओं! तुम यह जानती हो कि हम कितव, कपटी, अद्रचचित्त, निर्दय-हृदय हैं। संसार में दोष-दर्शन कर तुम हमारे यहाँ आई हो; अब हमारे में भी दोषानुसंधान कर पूर्णतः विरक्त हो जाओ, पूर्णवैराग्य का संपादन करो।'
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हे प्रभों! आपसे वैराग्य सम्भव नहीं। 'मुहुरस्पिृहा' आपमें हमारी स्पृहा तो उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। हजार-हजार दोषानुसंधान करने पर भी आपके स्वरूप में हमारी स्पृहा, उत्कट उत्कण्ठा बढ़ती ही जाती है (2/9)
अतः 'मुह्यते मनः' हमारा मन बारम्बार मोह को प्राप्त हो जाता है।
मरण-काल में प्राप्त मूर्च्छा ही मोह है। ब्रह्मसूत्र का वाक्य है 'मुग्धे अर्द्धसम्पत्तिः।' मुग्धता में मरण होता है; अतः मोह अथवा मूर्च्छा दसवीं दशा का सन्निधान है। तात्पर्य कि आपके मोह में ही हमारा अन्त भी हो (3/9)
भगवान् का ही एक मात्र वास्तविक सम्बन्ध हैं जीवात्मा से अन्य का नहीं।
जीवात्मा सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा का अंश है। जैसे घटाकाश, महाकाश, शरावाकाश के भीतर, बाहर, मध्य में महाकाश, कटक, मुकुट, कुण्डल आदि के भीतर, बाहर, मध्य में जल विद्यमान है, वैसे ही चेतन, अमल, सहज (1/21)
सुखराशि जीवात्माओं के भीतर, बाहर, मध्य में सच्चिदानन्द परमात्मा विद्यमान है।
इस दृष्टि से जीवात्मा भगवान का पुत्र, अंश एवं स्वरूप है। जैसे शूकर-कूकर के बच्चे शूकर-कूकर होते हैं, सिंह के बच्चे सिंह होते हैं वैसे ही 'अमृतस्य पुत्राः', 'मर्मवांशो जीवलोके' इत्यादि (2/21)
श्रुतिस्मृति के अनुसार भगवान के पुत्र या अंश जीवात्मा भगवान का स्वरूप ही ठहरता है।
जैसे निर्मल जल पृथ्वी पर पड़ते ही मलिन हो जाता है, वैसे ही शुद्ध चिदात्मा माया के संसर्ग से मलिन हो जाता है। भगवान जीवों के परम अन्तरंग और घनिष्ठ सम्बन्धी हैं। संसार की सब वस्तुओं का वियोग (3/21)
वीर सावरकर कौन थे..? जिन्हें आज कांग्रेसी और वामपंथी कोस रहे हैं और क्यों..?
ये 25 बातें पढ़कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो उठेगा। इसको पढ़े बिना आज़ादी का ज्ञान अधूरा है!
आइए जानते हैं एक ऐसे महान क्रांतिकारी के बारे में जिनका नाम इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया। (1/21)
जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा इतनी यातनाएं झेलीं की उसके बारे में कल्पना करके ही इस देश के करोड़ों भारत माँ के कायर पुत्रों में सिहरन पैदा हो जायेगी।
जिनका नाम लेने मात्र से आज भी हमारे देश के राजनेता भयभीत होते हैं क्योंकि उन्होंने माँ भारती की निस्वार्थ सेवा की (2/21)
थी। वो थे हमारे परमवीर सावरकर।
1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें? क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन (3/21)
ऋषिकेश में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रतिष्ठ मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की नक्काशी देखते ही बनती है और इस मंदिर तक पहुंचने के लिए कई तरह के पहाड़ और नदियों से होकर गुजरना पड़ता है। साथ ही यह मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थल में से एक है। पौड़ी गढ़वाल (1/8)
जिले के मणिकूट पर्वत पर स्थित मधुमती और पंकजा नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर के दर्शन करने के लिए सावन मास में हर साल लाखों शिवभक्त कांवड़ में गंगाजल लेकर जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि सावन सोमवार के दिन नीलकंठ महादेव के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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भगवान शिव ने किया विष का पान:
इस मंदिर को लेकर पौराणिक कथा भी है। कथा के अनुसार, समुद्र मंथन से निकली चीजें देवताओं और असुरों में बंटती गईं लेकिन तभी हलाहल नाम का विष निकला। इसे न तो देवता चाहते थे और ना ही असुर। यह विष इतना खतरनाक था कि संपूर्ण सृष्टि का विनाश कर सकता (3/8)
तेजोमहालय देखने के लिए मुझे तकरीबन 4-5 बार जाना पड़ा आगरा, अजंता एलोरा देखने के लिए वहीं रुकना पड़ा पांच छह दिन तक, प्रतिदिन सुबह टिकट लेकर एलोरा गुफाओं में जाता और शाम को बंद होने के समय बाहर निकलना, तब भी सिर्फ शिव (1/10)
मंदिर और दो तीन गुफाएं ही देख पाया ध्यान से, अजंता तो बच ही गई, एलिफेंटा के लिए भी दो बार गया समुद्र में, अब फिर मन है।
पिछले तीन साल से कार्यक्रम करता घूम रहा हूँ तो एक अद्भुत बात भी देख रहा हूँ, लोग हड़बड़ी में तीर्थों पर जाते हैं, अभी चार पांच दिन से अमरकंटक (2/10)
में हूँ तो आज ही एक घटना देखी, सुबह सुबह एक गाड़ी पास से तेज गति से निकली फिर चूं चूँ ब्रेक मारे, बैक लिया और सीसा उतारकर मुझसे पूछा, बाबाजी माई की बगिया कहाँ है? मैंने कहा वो सामने ही है एक मिनट की दूरी पर, गाड़ी भाग गई, मैं पैदल था तो पहुंचने में तीन चार मिनट लगे, (3/10)
ये बात है सन 1305 ई.की... आज आधी रात तक मुँह मांग्या दाम है सा... घुड़सवार नगाड़े पीटते हुए जालोर के बाजार की गलियों में घूम रहे थे, लोग अचंभित थे लेकिन राई के मुँह मांगे दाम मिल रहे थे, इसलिए किसी ने इस बात पर गौर करना उचित नहीं समझा कि आखिर (1/23)
एका एक राई के मुँह मांगे दाम मिल क्यों रहे हैं।
शाम होते होते लगभग शहर के हर घर में पड़ी राई घुड़सवारों ने खरीद ली थी।
अगली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही दुर्ग से अग्नि-ज्वाला की लपटें उठती देख लोगों को अंदेशा हो गया था कि आज का दिन जालोर के इतिहास के पन्नों में जरूर (2/23)
सुनहरे अक्षरों में लिखा जाने वाला है या जालोर की प्रजा के लिए काला दिवस साबित होने वाला है।
प्रातः दासी ने थाली में गेंहू पीसने से पहले साफ करने के लिए थाली में लिए ही थे कि अचानक थाली में पड़े गेँहू में हलचल हुई। फर्श पर पड़ी गेंहू से भरी थाली में कम्पन्न होने लगी, दासी (3/23)