अमेरिकी वामपंथ की चर्चा एक नाम के बिना नहीं हो सकती, राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी, जो जैक कैनेडी या जेएफके के नाम से भी जाने गए।

कैनेडी का काल अमेरिकी राजनीती और समाज का संक्रांति काल समझा जाना चाहिए। यह समय था जब मैक्कार्थी का पतन हो चुका था और अमेरिकी समाज में रेडिकल यानि (1/24)
वामपंथी कहलाना खतरे की बात नहीं रह गयी थी। समाज सिविल लिबर्टी मूवमेंट, नारीवाद और सांस्कृतिक मार्क्सिज्म के अनेक प्रयोगों से गुजर रहा था और सामान्यतः परम्परावादी अमेरिकी राजनीती में इस परिवर्तन का लाभ उठाने का लालच स्वाभाविक था।

ऐसे समय में अमेरिकी राजनीती में कैनेडी का (2/24)
उदय एक धूमकेतु की तरह हुआ। सुन्दर शक्ल, अच्छी वक्तृता और एक बेहद खूबसूरत पत्नी की चमक दमक के साथ कैनेडी राजनीती के रॉक स्टार बन कर उभरे।

राजनीति में कैनेडी का लॉंच बॉलीवुड के कपूर खानदान के किसी नए सितारे के लॉंच की तरह धूमधाम से हुआ। उसके पिता जोसफ कैनेडी, या "जो कैनेडी (3/24)
सीनियर" भी एक समय राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार गिने जाते थे, लेकिन रूजवेल्ट के असाधारण लम्बे राजनीतिक करियर में जो सीनियर का करियर वैसे ही दबा रह गया जैसे भारतीय क्रिकेट मे धोनी के समय के दूसरे विकेटकीपर।

साथ ही उसने एक बड़ी गलती कर दी, ब्रिटेन में अमेरिका के राजदूत (4/24)
के पद पर रहते हुए उसने द्वितीय विश्वयुद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से हिटलर का साथ देने की वकालत की थी। यह उसे बहुत भारी पड़ गया और इस एक निर्णय ने उसका राजनीतिक जीवन खत्म कर दिया।

पर इसकी भरपाई करने के लिए उसने अपने बेटों, जो कैनेडी जूनियर और जैक... दोनों को फौज में भेज दिया। (5/24)
उसका बड़ा बेटा जो जूनियर बाप की राजनीतिक विरासत का मालिक और भविष्य का राष्ट्रपति समझा जा रहा था पर वह एक हवाई मिशन में मारा गया।

फिर पापा कैनेडी ने अपने दूसरे बेटे जैक को राजनीति में लॉन्च कर दिया। उस समय तक जैक बिल्कुल पप्पू था, वह चार लाइन बोल भी नहीं सकता था। पर उसकी (6/24)
खूब ट्रेनिंग, मार्केटिंग, ब्रांडिंग की गई। पप्पू के पप्पा ने उसपर इतना पैसा ख़र्च किया कि उसका कहना था कि इतने में तो वह अपने ड्राइवर को भी सीनेटर बना सकता था।

1959-60 का वह राष्ट्रपति चुनाव एक रॉक कॉन्सर्ट की तरह चला। फ्रैंक सिनात्रा जैसे पॉप स्टार्स ने कैनेडी के लिए (7/24)
प्रचार किया और गाने गाए। साथ में उसकी सुंदर बीबी जैकलीन केनेडी ने खूब भीड़ खींची। नए नए आये टेलीविज़न डिबेट ने इस चुनाव को एक रियलिटी शो में बदल दिया। और इस ग्लैमर और तड़क भड़क के बीच कैनेडी ने अपने प्रतिद्वंदी धीर गंभीर पर चमक दमक से रहित उपराष्ट्रपति निक्सन को बेहद (8/24)
नजदीकी मुकाबले में बहुत ही मामूली अंतर से हरा दिया।

कैनेडी मीडिया और हॉलीवुड के लिबरल्स का दुलारा था। पर सच यही है कि नौसिखिया ग्लैमर बॉय राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के बाद अमेरिकी राजनीति का पप्पू बन गया। उसने पूरे एडमिनिस्ट्रेशन को अपनी तरह के अनुभवहीन ड्रामेबाजों (9/24)
से भर दिया जिन्हें शासन चलाने की कोई समझ नहीं थी। अगर कालांतर में उसकी हत्या नहीं हो गई होती तो वह राष्ट्रपति के नाम पर मजाक ही सिद्ध होता।

शीतयुद्ध के क्रूर वैश्विक माहौल में कैनेडी रूसी राष्ट्रपति ख्रुश्चेव के सामने बिल्कुल बौना साबित हुआ। विएना समिट में ख्रुश्चेव ने (10/24)
मनोवैज्ञानिक रूप से कैनेडी का बलात्कार कर दिया। फिर उसने क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो को हटाने के नाम पर क्यूबाई विद्रोहियों की पूरी पूरी फौज को बे ऑफ पिग्स में एक मूर्खतापूर्ण मिशन में मरने के लिए भेज दिया जिसमें अमेरिका की बड़ी किरकिरी हुई। कैनेडी का शुरू किया (11/24)
वियतनाम युद्ध भी एक भयंकर भूल ही साबित हुआ।

1962 में बेहद आक्रामक रूस ने क्यूबा में अमेरिका की नाक के नीचे अपने मिसाइल तैनात कर दिए। उस समय अमेरिका और रूस के बीच का शीतयुद्ध सचमुच के परमाणु युद्ध के बिल्कुल करीब पहुँच गया था। क्यूबा मिसाइल क्राइसिस में कैनेडी ने रूस के (12/24)
सामने खूब बाजू चढ़ाए और बड़ी बड़ी भाषणबाजी की। पर सच्चाई यह रही कि कैनेडी की सिट्टी पिट्टी गुम थी। कैनेडी ने पर्दे के पीछे रूस से गुपचुप समझौते करके जैसे तैसे मामला रफा दफा किया। ख्रुश्चेव के लिए भी कैनेडी की साख बचाना फायदे की बात थी क्योंकि उसे अपने सामने यह दब्बू, (13/24)
अनुभवहीन और ड्रामेबाज राष्ट्रपति दूसरे किसी भी विकल्प से बेहतर लग रहा था।

1964 में कैनेडी की हत्या हो गई। उसकी हत्या के संभावित कारणों की लिस्ट बहुत बड़ी है। पर यह मानने का पर्याप्त कारण है कि उसकी ऊल जलूल विदेश नीतियों से अमेरिका को बचाने के लिए सीआईए ने उसकी हत्या (14/24)
करवाई होगी।

कैनेडी अपने शासन काल में कम्युनिष्टों के विरुद्ध बड़ी बड़ी बातें बोलने के लिए जाना गया। लेकिन सच तो यह है कि उसके शासन काल में अमेरिका में वामपंथ खूब फला फूला। अपने एडमिनिस्ट्रेशन के सहयोगियों से ज्यादा वह ख्रुश्चेव के साथ अपनी बैक डोर डिप्लोमेसी पर भरोसा (15/24)
करता था। ख्रुश्चेव के साथ उसकी तनातनी भी उसकी इमेज बिल्डिंग के लिए एक तरह का फिक्स्ड मैच था। एक तरफ उसने मुँह से कम्युनिज्म के विरुद्ध खूब बोला, दूसरी तरफ उसकी नीतियों ने हर जगह वामपंथ को बढ़ावा दिया। कैनेडी एक क्लोजेट कम्युनिस्ट था, यह आज समझना कठिन नहीं है।

पर उसे इसका (16/24)
बदला भी खूब मिला। इतने खराब शासनकाल के बावजूद वह एक महान राष्ट्रपति गिना गया। उसका व्यक्तिगत जीवन भी बहुत रंगीन था। उसके दर्जनों अफेयर थे। वह किसी भी औरत को देख कर रुक नहीं पाता था। उसने व्हाइट हाउस में काम करने वाली सफाई कर्मचारियों को भी नहीं बख्शा। यह सब खुलेआम हर (17/24)
किसी को मालूम था। पर उसके जीते जी उसकी कोई करतूत कभी अखबारों में नहीं आई। उसका कोई मी टू नहीं आया... उसके जिंदा रहते मीडिया ने उसकी छवि बना कर रखी ही। मरने के बाद तो वह महान लिबरल मसीहा हो गया।

वह अमेरिका के अश्वेतों से बहुत सहानुभूति रखता था... उनके लिए अच्छी अच्छी (18/24)
बातें करता था... पर उसने अमेरिका से सेग्रेगेशन यानी अश्वेतों से भेदभाव हटाने का कोई प्रयास नहीं किया, कोई कानून नहीं लाया। यह वामपंथियों की खास कार्य-पद्धति है। वे एक अन्याय खोजते हैं, उसका जम के विरोध करते हैं, उसे लेकर लोगों की भावनाएं भड़काते हैं... पर उस अन्याय को (19/24)
खत्म किया जाए यह नहीं चाहते। जब तक वह अन्याय बना रहेगा, उसपर विरोध और संघर्ष का खेल चलेगा, उससे वामियों की दुकान चलेगी। कैनेडी का अमेरिकी सिविल राइट्स आंदोलन के प्रति रवैया इसका बेहतरीन उदाहरण है।

अपने शत्रु को कोई पसंद नहीं करता। उसे सभी राह से हटाना चाहते हैं। अमेरिकी (20/24)
जासूसी और सामरिक तंत्र ने कैनेडी को खतरा समझा, उसे रास्ते से हटा दिया। उसकी हत्या कर दी। लेकिन कैनेडी इतिहास में बना रहा। सारी पप्पूगिरी के बावजूद महान गिना जाता रहा। वह मीडिया और लिबरल गैंग की आंखों का तारा है। कैनेडी मरा नहीं।

पर वामियों का अपने दुश्मन को रास्ते से (21/24)
हटाने का तरीका इससे बहुत ज्यादा कारगर है। वे गोली नहीं मारते। वे जंगली कुत्तों की तरह घेर के शिकार करते हैं। अपने शिकार को नोच कर खा जाते हैं। उसकी हड्डियाँ तक नहीं छोड़ते। उसका नामो-निशान नहीं छोड़ते। वामियों ने इसी तरह घेर के मैक्कार्थी का शिकार किया था। आगे चल कर (22/24)
उन्होंने वैसे ही घेर कर राष्ट्रपति निक्सन का शिकार किया। और आज बिल्कुल उसी तरह डोनाल्ड ट्रम्प के पीछे जंगली कुत्तों की तरह पड़े हुए हैं। उन्हें बंदूकों से परहेज नहीं पर राजनीतिक हत्याएं करने के लिए उन्हें बंदूक नहीं उठानी पड़ती। उनके हथियार ज्यादा घातक हैं। उनका शिकार (23/24)
जीते जी अपने राजनीतिक सामाजिक जीवन में ही नहीं, इतिहास में भी मर जाता है।

#विषैलावमपंथ

#साभार
(24/24)
🙏🙏

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Nov 25
मंत्र गुप्त रखने के लिए क्यों कहा जाता है

दीक्षा का अर्थ है कि जब तुम समर्पण करते हो तो गुरु तुममें प्रवेश कर जाता है, वह तुम्हारे शरीर, मन, आत्मा में प्रविष्ट हो जाता है। गुरु तुम्हारे अंतस में जाकर तुम्हारे अनुकूल ध्वनि की खोज करेगा। वह तुम्हारा मंत्र होगा। और जब (1/15) Image
तुम उसका उच्चारण करोगे तो तुम एक भिन्न आयाम में एक भिन्न व्यक्ति होओगे।

जब तक समर्पण नहीं होता, मंत्र नहीं दिया जा सकता है। मंत्र देने का अर्थ है कि गुरु ने तुममें प्रवेश किया है, गुरु ने तुम्हारी गहरी लयबद्धता को, तुम्हारे प्राणों के संगीत को अनुभव किया है। और फिर (2/15)
वह तुम्हें प्रतीक रूप में एक मंत्र देता है जो तुम्हारे अंतस के संगीत से मेल खाता हो। और जब तुम उस मंत्र का उच्चार करते हो तो तुम आंतरिक संगीत के जगत में प्रवेश कर जाते हो, तब आंतरिक लयबद्धता उपलब्ध होती है।

मंत्र तो सिर्फ चाबी है। और चाबी तब तक नहीं दी जा सकती जब तक (3/15)
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Nov 25
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जिस पर श्रीराधा रानी जी के भाई ने श्रीराधा रानी जी को और श्रीकृष्णजी को श्राप दे दिया कि आप लोग में जितना अधिक प्रेम है आप दोनों उतने ही दूर चले (2/11)
जाओगे।

श्राप देकर भाई तो चले गये। तब श्रीकृष्ण जी श्रीराधा रानी जी से बोले कि आपके भाई द्वारा दिए गये श्राप के फल को भोगने के लिए तो मृत्युलोक में जाना पड़ेगा। क्योंकि यहाँ तो इस श्राप को भोगने का कोई साधन नहीं है। ये सुन कर श्रीराधा रानी जी रोने लगीं और भगवान (3/11)
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Nov 25
“मैं स्वेतलाना बोल रही हूँ जो नेहरू की वजह से अपने देश भारत से निष्कासित कर दी गयी।"

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ जिले के कालाकांकर रियासत के महाराजा बृजेश सिंह की प्रेम कहानी बड़ी चर्चित है। ये पूर्व विदेश मंत्री दिनेश सिंह के बड़े भाई थे। ये तत्कालीन सोवियत संघ में भारत के (1/6)
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उन्हें पता था कि स्टालिन खूंखार तानाशाह है लाखो लोगों को मरवा चुका है और यह कभी बर्दाश्त नहीं करेगा (2/6)
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Nov 25
कांग्रेस का कुशासन
मीरपुर नरसंहार

आज मीरपुर डे है, परन्तु न तो मेन स्ट्रीम मीडिया और न ही कोई पत्रकार व लेखक इसका उल्लेख करना चाहता है।

इस मीरपुर डे का बैकग्राउंड यह है कि आज से 72 वर्ष पूर्व 25 नवंबर 1947 को जम्मू कश्मीर के मीरपुर जिले पर पाकिस्तान ने आक्रमण किया था (1/16)
और वहां रहने वाले 20,000 निहत्थे हिंदू और सिखों का नरसंहार कर दिया। वहां से बचकर केवल 2500 मीरपुर के निवासी किसी तरह से भूखे प्यासे कई दिनों तक पैदल चलकर जम्मू पहुंच सके थे।

यह सब इसलिए हुआ क्योंकि पाकिस्तान ने मीरपुर के रहने वाले हिंदुओं व सिखों को चेतावनी दी थी कि (2/16)
यदि बचना चाहते हो तो अपने घर पर सफेद झंडा आत्मसमर्पण के चिन्ह के रूप में लगा देना, परंतु मीरपुर के निवासी हिंदुओं व् सिखों ने अपने घरों पर लाल झंडा फहरा कर यह संदेश दिया कि हम आत्मसमर्पण नहीं अपितु लड़कर अपनी मातृभूमि की रक्षा करेंगे।

मीरपुर पर आक्रमण के लिए पाकिस्तान (3/16)
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Nov 25
चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की अचानक नियुक्ति पर विवाद उठ खड़े हुए हैं! सुप्रीमकोर्ट ने सरकार से नियुक्ति संबंधी पूरी फाइल तलब की है! यह गंभीर मसला है जिसकी सुनवाई सुप्रीमकोर्ट की पांच सदस्यीय बड़ी बैंच कर रही है! याचिकाकर्ता का आरोप है कि गोयल ने नियुक्ति से एक ही दिन पहले (1/10)
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भारतीय निर्वाचन आयोग में तीन पद होते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं, एक चुनाव आयुक्त (2/10)
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Nov 24
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