यह विश्व का ऐसा अनोखा मंदिर है जो 24 घंटे में मात्र दो मिनट के लिए बंद होता है। यहां तक कि ग्रहण काल में भी मंदिर बंद नहीं किया जाता है। कारण यह कि यहां विराजमान भगवान कृष्ण को हमेशा तीव्र भूख लगती है। भोग नहीं लगाया जाए (1/11)
तो उनका शरीर सूख जाता है। अतः उन्हें हमेशा भोग लगाया जाता है, ताकि उन्हें निरंतर भोजन मिलता रहे। साथ ही यहां आने वाले हर भक्त को भी प्रसादम् (प्रसाद) दिया जाता है। बिना प्रसाद लिये भक्त को यहां से जाने की अनुमति नहीं है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इसका प्रसाद जीभ पर रख लेता (2/11)
है, उसे जीवन भर भूखा नहीं रहना पड़ता है। श्रीकृष्ण हमेशा उसकी देखरेख करते हैं।
डेढ़ हजार वर्ष पुराना मंदिर:
केरल के कोट्टायम जिले के तिरुवरप्पु में स्थित यह मंदिर लगभग डेढ़ हजार साल पुराना है। लोक मान्यता के अनुसार कंस वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण बुरी तरह से थक गए थे। भूख (3/11)
भी बहुत अधिक लगी हुई थी। उनका वही विग्रह इस मंदिर में है। इसलिए मंदिर सालों भर हर दिन मात्र खुला रहता है। मंदिर बंद करने का समय दिन में 11.58 बजे है। उसे दो मिनट बाद ही ठीक 12 बजे खोल दिया जाता है। पुजारी को मंदिर के ताले की चाबी के साथ कुल्हाड़ी भी दी गई है। उसे निर्देश (4/11)
है कि ताला खुलने में विलंब हो तो उसे कुल्हाड़ी से तोड़ दिया जाए। ताकि भगवान को भोग लगने में तनिक भी विलंब न हो। चूंकि यहां मौजूद भगवान के विग्रह को भूख बर्दाश्त नहीं है, इसलिए उनके भोग की विशेष व्यवस्था की गई है। उनको 10 बार नैवेद्यम (प्रसाद) अर्पित किया जाता है।
(5/11)
मंदिर खोले रखने की व्यवस्था आदि शंकराचार्य की:
ऐसा मंदिर जहां श्रीकृष्ण से भूख बर्दाश्त नहीं होता है। पहले यह आम मंदिरों की तरह बंद होता था। विशेष रूप से ग्रहण काल में इसे बंद रखा जाता था। तब ग्रहण खत्म होते-होते भूख से उनका विग्रह रूप पूरी तरह सूख जाता था। कमर की पट्टी (6/11)
नीचे खिसक जाती थी। एक बार उसी दौरान आदि शंकराचार्य मंदिर आए। उन्होंने भी यह स्थिति देखी। तब उन्होंने व्यवस्था दी कि ग्रहण काल में भी मंदिर को बंद नहीं किया जाए। तब से मंदिर बंद करने की परंपरा समाप्त हो गई। भूख और भगवान के विग्रह के संबंध को हर दिन अभिषेकम के दौरान देखा जा (7/11)
सकता है। अभिषेकम में थोड़ा समय लगता है। उस दौरान उन्हें नैवेद्य नहीं चढ़ाया जा सकता है। अतः नित्य उस समय विग्रह का पहले सिर और फिर पूरा शरीर सूख जाता है। यह दृश्य अद्भुत और अकल्पनीय सा प्रतीत होता है लेकिन है पूर्णतः सत्य।
प्रसादम् लेने वाले के भोजन की श्रीकृष्ण करते (8/11)
हैं चिंता:
इस मंदिर के साथ एक और मान्यता जुड़ी हुई है कि जो भक्त यहां पर प्रसादम चख लेता है, फिर जीवन भर श्रीकृष्ण उसके भोजन की चिंता करते हैं। यही नहीं उसकी अन्य आवश्यकताओं का भी ध्यान रखते हैं। प्राचीन शैली के इस मंदिर के बंद होने से ठीक पहले 11.57 बजे प्रसादम् के (9/11)
लिए पुजारी जोर से आवाज लगाते हैं। इसका कारण मात्र यही है कि यहां आने वाला कोई भक्त प्रसाद से वंचित न हो जाए। यह अत्यंत रोचक है कि भूख से विह्वल भगवान अपने भक्तों के भोजन की जीवन भर चिंता करते हैं। उनके अपनी भूख की यह हालत है कि उसे देखते हुए मंदिर को नित्य दो मिनट (10/11)
बंद रखा जाता है। इसका कारण भगवान को सोने का समय देना है। अर्थात इस मंदिर में वे मात्र दो मिनट सोते हैं।
दीक्षा का अर्थ है कि जब तुम समर्पण करते हो तो गुरु तुममें प्रवेश कर जाता है, वह तुम्हारे शरीर, मन, आत्मा में प्रविष्ट हो जाता है। गुरु तुम्हारे अंतस में जाकर तुम्हारे अनुकूल ध्वनि की खोज करेगा। वह तुम्हारा मंत्र होगा। और जब (1/15)
तुम उसका उच्चारण करोगे तो तुम एक भिन्न आयाम में एक भिन्न व्यक्ति होओगे।
जब तक समर्पण नहीं होता, मंत्र नहीं दिया जा सकता है। मंत्र देने का अर्थ है कि गुरु ने तुममें प्रवेश किया है, गुरु ने तुम्हारी गहरी लयबद्धता को, तुम्हारे प्राणों के संगीत को अनुभव किया है। और फिर (2/15)
वह तुम्हें प्रतीक रूप में एक मंत्र देता है जो तुम्हारे अंतस के संगीत से मेल खाता हो। और जब तुम उस मंत्र का उच्चार करते हो तो तुम आंतरिक संगीत के जगत में प्रवेश कर जाते हो, तब आंतरिक लयबद्धता उपलब्ध होती है।
मंत्र तो सिर्फ चाबी है। और चाबी तब तक नहीं दी जा सकती जब तक (3/15)
एक दिन श्री राधा जी और श्रीकृष्ण जी अपने धाम श्रीगौलोक में विहार कर रहे थे, दोनों विहार में इतने मद मस्त थे कि, तभी उसी समय श्रीराधा रानी जी के भाई वहाँ से गुजरे। श्रीराधा जी और श्रीकृष्ण जी दोनों ही उनको नहीं देखे और ना ही उनके तरफ ध्यान दिये जिस पर श्रीराधा रानी जी के (1/11)
भाई को क्रोध आ गया कि, हम यहाँ से गुजर रहे हैं और ये लोग विहार में इतने मद मस्त हैं कि इनको हमारी ओर जरा भी ध्यान नहीं है।
जिस पर श्रीराधा रानी जी के भाई ने श्रीराधा रानी जी को और श्रीकृष्णजी को श्राप दे दिया कि आप लोग में जितना अधिक प्रेम है आप दोनों उतने ही दूर चले (2/11)
जाओगे।
श्राप देकर भाई तो चले गये। तब श्रीकृष्ण जी श्रीराधा रानी जी से बोले कि आपके भाई द्वारा दिए गये श्राप के फल को भोगने के लिए तो मृत्युलोक में जाना पड़ेगा। क्योंकि यहाँ तो इस श्राप को भोगने का कोई साधन नहीं है। ये सुन कर श्रीराधा रानी जी रोने लगीं और भगवान (3/11)
“मैं स्वेतलाना बोल रही हूँ जो नेहरू की वजह से अपने देश भारत से निष्कासित कर दी गयी।"
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ जिले के कालाकांकर रियासत के महाराजा बृजेश सिंह की प्रेम कहानी बड़ी चर्चित है। ये पूर्व विदेश मंत्री दिनेश सिंह के बड़े भाई थे। ये तत्कालीन सोवियत संघ में भारत के (1/6)
राजदूत बनाकर भेजे गए। ये बहुत स्मार्ट से गोरे चिट्टे थे और ऊपर से राजकुमार थे... उनकी नजर सोवियत संघ के तानाशाह स्टालिन की बेटी स्वेतलाना से लड़ गई दोनों में प्यार हो गया।
उन्हें पता था कि स्टालिन खूंखार तानाशाह है लाखो लोगों को मरवा चुका है और यह कभी बर्दाश्त नहीं करेगा (2/6)
कि उसकी बेटी किसी भारतीय से शादी करें... फिर महाराजा बृजेश सिंह और स्वेतलाना ने एक प्लान बनाया और दोनों चुपचाप भाग कर भारत आ गए और यहां मंदिर में शादी कर ली... स्टालिन यह सुना तो बहुत गुस्सा हुआ और उसने नेहरू को बोला कि उन दोनों को तुरंत मेरे हवाले करो। नेहरू बेचारा डर गया (3/6)
आज मीरपुर डे है, परन्तु न तो मेन स्ट्रीम मीडिया और न ही कोई पत्रकार व लेखक इसका उल्लेख करना चाहता है।
इस मीरपुर डे का बैकग्राउंड यह है कि आज से 72 वर्ष पूर्व 25 नवंबर 1947 को जम्मू कश्मीर के मीरपुर जिले पर पाकिस्तान ने आक्रमण किया था (1/16)
और वहां रहने वाले 20,000 निहत्थे हिंदू और सिखों का नरसंहार कर दिया। वहां से बचकर केवल 2500 मीरपुर के निवासी किसी तरह से भूखे प्यासे कई दिनों तक पैदल चलकर जम्मू पहुंच सके थे।
यह सब इसलिए हुआ क्योंकि पाकिस्तान ने मीरपुर के रहने वाले हिंदुओं व सिखों को चेतावनी दी थी कि (2/16)
यदि बचना चाहते हो तो अपने घर पर सफेद झंडा आत्मसमर्पण के चिन्ह के रूप में लगा देना, परंतु मीरपुर के निवासी हिंदुओं व् सिखों ने अपने घरों पर लाल झंडा फहरा कर यह संदेश दिया कि हम आत्मसमर्पण नहीं अपितु लड़कर अपनी मातृभूमि की रक्षा करेंगे।
चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की अचानक नियुक्ति पर विवाद उठ खड़े हुए हैं! सुप्रीमकोर्ट ने सरकार से नियुक्ति संबंधी पूरी फाइल तलब की है! यह गंभीर मसला है जिसकी सुनवाई सुप्रीमकोर्ट की पांच सदस्यीय बड़ी बैंच कर रही है! याचिकाकर्ता का आरोप है कि गोयल ने नियुक्ति से एक ही दिन पहले (1/10)
सचिव पद से वीआरएस लिया था और भाजपा उन्हें चुनावी लाभ की दृष्टि से चुनाव आयुक्त के पद पर लाई है! याचिकाकर्ता की पैर्रवी चूंकि बड़े बड़े वकील कर रहे हैं अतः मामला खासा गरमा गया है!
भारतीय निर्वाचन आयोग में तीन पद होते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं, एक चुनाव आयुक्त (2/10)
पूनम चंद्र पांडे हैं और दूसरे आयुक्त पद पर अरुण गोयल एक महीना पहले ही आसीन हुए हैं। उनकी नियुक्ति पर विपक्ष ने भी सवाल उठाए हैं। यह सवाल उठाया गया कि गोयल को वीआरएस मिलने के अगले ही दिन चुनाव आयुक्त पद पर नियुक्ति कैसे दे दी गई? क्या केंद्र सरकार की मंशा इससे कोई लाभ लेने (3/10)
दुल्हन ने विदाई के वक़्त शादी को किया नामंजूर (कहानी आपको सोचने पर विवश करेगी।)
शादी के बाद विदाई का समय था, नेहा अपनी माँ से मिलने के बाद अपने पिता से लिपट कर रो रही थीं। वहाँ मौजूद सब लोगों की आंखें नम थीं। नेहा ने घूँघट निकाला हुआ था, वह अपनी छोटी बहन के साथ सजाई गयी (1/20)
गाड़ी के नज़दीक आ गयी थी। दूल्हा अविनाश अपने खास मित्र विकास के साथ बातें कर रहा था। विकास: 'यार अविनाश... सबसे पहले घर पहुंचते ही होटल अमृतबाग चलकर बढ़िया खाना खाएंगे...
यहाँ तेरी ससुराल में खाने का मज़ा नहीं आया।' तभी पास में खड़ा अविनाश का छोटा भाई राकेश बोला: 'हा (2/20)
यार... पनीर कुछ ठीक नहीं था... और रस मलाई में रस ही नहीं था।' और वह ही ही ही कर जोर जोर से हंसने लगा। अविनाश भी पीछे नही रहा: 'अरे हम लोग अमृतबाग चलेंगे, जो खाना है खा लेना... मुझे भी यहाँ खाने में मज़ा नहीं आया... रोटियां भी गर्म नहीं थी...।' अपने पति के मुँह से यह शब्द (3/20)