इसीलिए बीच से बंटा है केला का पत्ता, पढ़े रोचक कथा।
केले के पत्ते के बंटवारे की यह कथा भगवान श्रीराम के लिए हनुमान जी की भक्ति का अनुपम उदाहरण है।
केले के पत्ते के बंटवारे की यह कथा भगवान श्रीराम के लिए हनुमान जी की भक्ति का अनुपम उदाहरण है। भगवान राम लंका विजय के बाद (1/10)
हनुमान जी और पूरी वानर सेना के साथ अयोध्या पहुंचे। वहां इस ख़ुशी में एक बड़े भोज का आयोजन हुआ, जिसमें सारी वानर सेना आमंत्रित थी। सुग्रीवजी ने वानरों को समझाया, यहां हम मेहमान हैं। सबको यहां बहुत शिष्टता दिखानी है, ताकि वानरों को लोग अभद्र न कहें। वानरों ने अपनी जाति का (2/10)
मान रखने के लिए सतर्क रहने का वचन दिया। एक वानर ने सुझाव दिया, ‘वैसे तो हम शिष्टाचार का पूरा प्रयास करेंगे, लेकिन हमसे कोई चूक न होने पावे, इसके लिए हमें मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी। आप किसी को हमारा अगुवा बना दें, जो हमें मार्गदर्शन देता रहे। हम पर नजर रखे और यदि वानर (3/10)
आपस में लड़ने-भिड़ने लगें, तो उन्हें रोक सके।’
हनुमानजी अगुआ बने। भोज के दिन हनुमानजी सबके बैठने आदि का इंतजाम देख रहे थे। व्यवस्था सुचारु बनाने के बाद वह श्रीराम के पास पहुंचे। श्रीराम ने हनुमानजी को आत्मीयता से कहा, ‘हनुमानजी आप भी मेरे साथ बैठकर भोजन करें।’ एक तरफ (4/10)
तो प्रभु की इच्छा थी। दूसरी तरफ यह विचार कि संग भोजन करने से कहीं प्रभु के मान की हानि न हो। हनुमानजी धर्मसंकट में पड़ गए। वह अपने प्रभु के बराबर बैठना नहीं चाहते थे। प्रभु के भोजन के उपरांत ही वह प्रसाद ग्रहण करना चाहते थे। इसके अलावा बैठने का कोई स्थान शेष नहीं बचा था (5/10)
और न ही भोजन के लिए थाली के रूप में प्रयुक्त होने वाला केले का पत्ता बचा था, जिसमें भोजन परोसा जाए।
प्रभु श्रीराम ने हनुमानजी के मन की बात भांप ली। उन्होंने पृथ्वी को आदेश दिया कि वह उनके बगल में हनुमानजी के बैठने भर भूमि बढ़ा दें। प्रभु ने स्थान तो बना दिया, पर एक और (6/10)
केले का पत्ता नहीं बनाया। वह हनुमानजी से बोले, ‘आप मुझे पुत्र समान प्रिय हैं। आप मेरी ही थाली (केले का पत्ता) में भोजन करें।’
इस पर श्री हनुमान जी बोले, ‘प्रभु मुझे कभी भी आपके बराबर होने की अभिलाषा नहीं रही। जो सुख सेवक बनकर मिलता है, वह बराबरी में नहीं मिलेगा। इसलिए (7/10)
आपकी थाल में खा ही नहीं सकता।’ श्रीराम ने समस्त अयोध्यावासियों के समक्ष वानर जाति का सम्मान बढ़ाने के लिए कहा, ‘हनुमान, मेरे हृदय में बसते हैं। हनुमान की आराधना का अर्थ है स्वयं मेरी आराधना। यदि कोई मेरी आराधना करता है, लेकिन हनुमान की नहीं, तो वह पूजा पूर्ण नहीं होगी।’
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फिर श्रीराम ने अपने दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली से केले के पत्ते के बीचोंबीच एक रेखा खींच दी, जिससे वह पत्ता जुड़ा भी रहा और उसके दो भाग भी हो गए। इस तरह भक्त और भगवान दोनों के भाव रह गए। श्रीराम की कृपा से केले का पत्ता दो भाग में बंट गया। भोजन परोसने के लिए केले के (9/10)
पत्ते को सबसे शुद्ध माना जाता है। शुभ कार्यों में देवों को भोग लगाने में आज भी केले के पत्ते का प्रयोग होता है...!!
दीक्षा का अर्थ है कि जब तुम समर्पण करते हो तो गुरु तुममें प्रवेश कर जाता है, वह तुम्हारे शरीर, मन, आत्मा में प्रविष्ट हो जाता है। गुरु तुम्हारे अंतस में जाकर तुम्हारे अनुकूल ध्वनि की खोज करेगा। वह तुम्हारा मंत्र होगा। और जब (1/15)
तुम उसका उच्चारण करोगे तो तुम एक भिन्न आयाम में एक भिन्न व्यक्ति होओगे।
जब तक समर्पण नहीं होता, मंत्र नहीं दिया जा सकता है। मंत्र देने का अर्थ है कि गुरु ने तुममें प्रवेश किया है, गुरु ने तुम्हारी गहरी लयबद्धता को, तुम्हारे प्राणों के संगीत को अनुभव किया है। और फिर (2/15)
वह तुम्हें प्रतीक रूप में एक मंत्र देता है जो तुम्हारे अंतस के संगीत से मेल खाता हो। और जब तुम उस मंत्र का उच्चार करते हो तो तुम आंतरिक संगीत के जगत में प्रवेश कर जाते हो, तब आंतरिक लयबद्धता उपलब्ध होती है।
मंत्र तो सिर्फ चाबी है। और चाबी तब तक नहीं दी जा सकती जब तक (3/15)
एक दिन श्री राधा जी और श्रीकृष्ण जी अपने धाम श्रीगौलोक में विहार कर रहे थे, दोनों विहार में इतने मद मस्त थे कि, तभी उसी समय श्रीराधा रानी जी के भाई वहाँ से गुजरे। श्रीराधा जी और श्रीकृष्ण जी दोनों ही उनको नहीं देखे और ना ही उनके तरफ ध्यान दिये जिस पर श्रीराधा रानी जी के (1/11)
भाई को क्रोध आ गया कि, हम यहाँ से गुजर रहे हैं और ये लोग विहार में इतने मद मस्त हैं कि इनको हमारी ओर जरा भी ध्यान नहीं है।
जिस पर श्रीराधा रानी जी के भाई ने श्रीराधा रानी जी को और श्रीकृष्णजी को श्राप दे दिया कि आप लोग में जितना अधिक प्रेम है आप दोनों उतने ही दूर चले (2/11)
जाओगे।
श्राप देकर भाई तो चले गये। तब श्रीकृष्ण जी श्रीराधा रानी जी से बोले कि आपके भाई द्वारा दिए गये श्राप के फल को भोगने के लिए तो मृत्युलोक में जाना पड़ेगा। क्योंकि यहाँ तो इस श्राप को भोगने का कोई साधन नहीं है। ये सुन कर श्रीराधा रानी जी रोने लगीं और भगवान (3/11)
“मैं स्वेतलाना बोल रही हूँ जो नेहरू की वजह से अपने देश भारत से निष्कासित कर दी गयी।"
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ जिले के कालाकांकर रियासत के महाराजा बृजेश सिंह की प्रेम कहानी बड़ी चर्चित है। ये पूर्व विदेश मंत्री दिनेश सिंह के बड़े भाई थे। ये तत्कालीन सोवियत संघ में भारत के (1/6)
राजदूत बनाकर भेजे गए। ये बहुत स्मार्ट से गोरे चिट्टे थे और ऊपर से राजकुमार थे... उनकी नजर सोवियत संघ के तानाशाह स्टालिन की बेटी स्वेतलाना से लड़ गई दोनों में प्यार हो गया।
उन्हें पता था कि स्टालिन खूंखार तानाशाह है लाखो लोगों को मरवा चुका है और यह कभी बर्दाश्त नहीं करेगा (2/6)
कि उसकी बेटी किसी भारतीय से शादी करें... फिर महाराजा बृजेश सिंह और स्वेतलाना ने एक प्लान बनाया और दोनों चुपचाप भाग कर भारत आ गए और यहां मंदिर में शादी कर ली... स्टालिन यह सुना तो बहुत गुस्सा हुआ और उसने नेहरू को बोला कि उन दोनों को तुरंत मेरे हवाले करो। नेहरू बेचारा डर गया (3/6)
आज मीरपुर डे है, परन्तु न तो मेन स्ट्रीम मीडिया और न ही कोई पत्रकार व लेखक इसका उल्लेख करना चाहता है।
इस मीरपुर डे का बैकग्राउंड यह है कि आज से 72 वर्ष पूर्व 25 नवंबर 1947 को जम्मू कश्मीर के मीरपुर जिले पर पाकिस्तान ने आक्रमण किया था (1/16)
और वहां रहने वाले 20,000 निहत्थे हिंदू और सिखों का नरसंहार कर दिया। वहां से बचकर केवल 2500 मीरपुर के निवासी किसी तरह से भूखे प्यासे कई दिनों तक पैदल चलकर जम्मू पहुंच सके थे।
यह सब इसलिए हुआ क्योंकि पाकिस्तान ने मीरपुर के रहने वाले हिंदुओं व सिखों को चेतावनी दी थी कि (2/16)
यदि बचना चाहते हो तो अपने घर पर सफेद झंडा आत्मसमर्पण के चिन्ह के रूप में लगा देना, परंतु मीरपुर के निवासी हिंदुओं व् सिखों ने अपने घरों पर लाल झंडा फहरा कर यह संदेश दिया कि हम आत्मसमर्पण नहीं अपितु लड़कर अपनी मातृभूमि की रक्षा करेंगे।
चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की अचानक नियुक्ति पर विवाद उठ खड़े हुए हैं! सुप्रीमकोर्ट ने सरकार से नियुक्ति संबंधी पूरी फाइल तलब की है! यह गंभीर मसला है जिसकी सुनवाई सुप्रीमकोर्ट की पांच सदस्यीय बड़ी बैंच कर रही है! याचिकाकर्ता का आरोप है कि गोयल ने नियुक्ति से एक ही दिन पहले (1/10)
सचिव पद से वीआरएस लिया था और भाजपा उन्हें चुनावी लाभ की दृष्टि से चुनाव आयुक्त के पद पर लाई है! याचिकाकर्ता की पैर्रवी चूंकि बड़े बड़े वकील कर रहे हैं अतः मामला खासा गरमा गया है!
भारतीय निर्वाचन आयोग में तीन पद होते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं, एक चुनाव आयुक्त (2/10)
पूनम चंद्र पांडे हैं और दूसरे आयुक्त पद पर अरुण गोयल एक महीना पहले ही आसीन हुए हैं। उनकी नियुक्ति पर विपक्ष ने भी सवाल उठाए हैं। यह सवाल उठाया गया कि गोयल को वीआरएस मिलने के अगले ही दिन चुनाव आयुक्त पद पर नियुक्ति कैसे दे दी गई? क्या केंद्र सरकार की मंशा इससे कोई लाभ लेने (3/10)
दुल्हन ने विदाई के वक़्त शादी को किया नामंजूर (कहानी आपको सोचने पर विवश करेगी।)
शादी के बाद विदाई का समय था, नेहा अपनी माँ से मिलने के बाद अपने पिता से लिपट कर रो रही थीं। वहाँ मौजूद सब लोगों की आंखें नम थीं। नेहा ने घूँघट निकाला हुआ था, वह अपनी छोटी बहन के साथ सजाई गयी (1/20)
गाड़ी के नज़दीक आ गयी थी। दूल्हा अविनाश अपने खास मित्र विकास के साथ बातें कर रहा था। विकास: 'यार अविनाश... सबसे पहले घर पहुंचते ही होटल अमृतबाग चलकर बढ़िया खाना खाएंगे...
यहाँ तेरी ससुराल में खाने का मज़ा नहीं आया।' तभी पास में खड़ा अविनाश का छोटा भाई राकेश बोला: 'हा (2/20)
यार... पनीर कुछ ठीक नहीं था... और रस मलाई में रस ही नहीं था।' और वह ही ही ही कर जोर जोर से हंसने लगा। अविनाश भी पीछे नही रहा: 'अरे हम लोग अमृतबाग चलेंगे, जो खाना है खा लेना... मुझे भी यहाँ खाने में मज़ा नहीं आया... रोटियां भी गर्म नहीं थी...।' अपने पति के मुँह से यह शब्द (3/20)