*चलो* *चलो* *चलो* *दिल्ली चलो*
*पुरानी पेंशन बहाली ओर PFRDA BILL रद्द किये जाने हेतु एवं सात सूत्री मांग पत्र को सफल बनाने हेतु आप सभी से सादर अनुरोध है कि अधिक से अधिक संख्या मे दिनांक 08 दिसंबर 2022 को ताल कटोरा स्टेडियम, नई दिल्ली पहुंच कर कार्यक्रम को सफल बनाये* #OPS
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कमलेश मिश्र
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ
एस. पी. सिंह, संरक्षक
नरेंद्र प्रताप सिंह, संरक्षक
त्रिवेनी प्रसाद,संरक्षक
दिवाकर सिंह
प्रान्तीयअध्यक्ष
शैलेन्द्रकुमार
प्रान्तीय कार्यकारी अध्यक्ष
संदीप कुमार पांडेय
प्रान्तीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष #OPS
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देवेन्द्रकुमार यादव
विकास त्रिपाठी
योगेश कुमार
सलिल दीक्षित
हेमंत सिंह खडका
अनिल अवस्थी
अशोक कुमार शर्मा
यशवंत राय
प्रान्तीय उपाध्यक्ष
पुनीत कुमार त्रिपाठी
प्रान्तीय महामंत्री
प्रतीक गुप्ता
प्रान्तीय कार्यकारी महामंत्री #OPS
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मुहम्मद मुख्तार
प्रान्तीय संयुक्त मंत्री
श्याम सिंह
प्रान्तीय मंत्री
बंशीधर मिश्र
*प्रान्तीय संगठन मंत्री*
अफीफ सिद्दकी
प्रान्तीय कोषाध्यक्ष
उत्तर प्रदेश फेडरेशन ऑफ मिनिस्ट्रियल सर्विस एसोसिएशनन्स
उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ
लखनऊ में पहले~पहल म्युनिसिपल कारपोरेशन के चुनाव हुए. चौक से अपने समय चौक की मशहूर तवायफ़ और महफ़िलों की शान दिलरुबा जान उम्मीदवार बनीं!
उनके खिलाफ कोई चुनाव लड़ने को तैय्यार नहीं हुआ. उन दिनों एक मशहूर हकीम साहेब थे ~ हकीम शम्शुद्दीन. चौक में उनका दवाखाना था और अपने जमाने के
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मशहूर हकीम थे. बहुत प्रसिद्धि थी उनकी. दोस्तों ने ज़बरदस्ती उनको चुनाव में दिलरुबा जान के ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया!
दिलरुबा जान का प्रचार ज़ोर पकड़ा. रीज़ चौक में महफ़िलें लगने लगी.
अपने जमाने की मशहूर नर्तकियों जैसे जद्दन बाई के प्रोग्राम होने लगे
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और महफ़िलें खचा ख़च भरी रहती थीं; वहीं हकीम साहेब के साथ बस वो चंद दोस्त थे, जिन्होंने उनको इलेक्शन में झोंका था!
अब हकीम साहेब नाराज़ हुए कि "तुम लोगों ने पिटवा दिया मुझे! मेरी हार तय है."
दोस्तों ने हार नहीं मानी और एक नारा दिया:
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नफ़स-नफ़स क़दम-क़दम
बस एक फ़िक्र दम-ब-दम
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब-दर-सवाल है के इन्क़लाब चाहिए
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद,
ज़िन्दाबाद इन्क़लाब - २
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जहाँ आवाम के ख़िलाफ़ साज़िशें हो शान से
जहाँ पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से
जहाँ पे लब्ज़े-अमन एक ख़ौफ़नाक राज़ हो
जहाँ कबूतरों का सरपरस्त एक बाज़ हो
वहाँ न चुप रहेंगे हम
कहेंगे हाँ कहेंगे हम
हमारा हक़ हमारा हक़ हमें जनाब चाहिए
जवाब-दर-सवाल है के इन्क़लाब चाहिए
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इन्क़लाब ज़िन्दाबाद,
ज़िन्दाबाद इन्क़लाब - २
यक़ीन आँख मूँद कर किया था जिनको जानकर
वही हमारी राह में खड़े हैं सीना तान कर
उन्ही की सरहदों में क़ैद हैं हमारी बोलियाँ
वही हमारी थाल में परस रहे हैं गोलियाँ
जो इनका भेद खोल दे
हर एक बात बोल दे
समूचे मजदूर और मेहनतकश जनता के बीच धर्म, भाषा, क्षेत्र जातीय बटवारा कर सरमायेदार एवं उनकी पार्टियाँ तरह-तरह के खेल खेलते है। अपने देश मे निश्चित ही बड़ी संख्या में आर्थिक, सामाजिक तौर पर पिछड़े लोग है । मगर इस समूचे शोषण से उनकी मुक्ति तभी
√ उनमे से शायद अधिसंख्यक मजदूर - किसान - मेहनतकश है।
√ बँटवारे से उन्हें नुकसान एवम शोषकों की भलाई है।
√ इन समूचे शोषण से उनकी मुक्ति तभी होगी जब अपने देश मे मजदूर - किसान - मेहनतकश का राज होगा।
यही है हमारी 70 सालो की पुरवर्ती सरकार की शिक्षा प्रणाली?"
यह पूर्ववर्ती सरकारों की गलती नहीं है। यह संघ की विरासत का संकट है। हमारे पास इनकी विरासत होने के कारण इन क्रांतिकारियों के माता पिता के नाम मालूम हैं। संघियों के ज्ञान के लिए नाम लिख रहा हूँ।
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