अवांछित लोगों को मंदिरों में प्रवेश क्यों नहीं करने देना चाहिए? ओशो ने कारण सहित विस्तार से समझाया है।
यदि आप किसी हिंदू मंदिर में गए हो तो वहां आने गर्भ-गृह का नाम सुना होगा। मंदिर के अंतरस्थ भाग को गर्भ कहते हैं। शायद आपने ध्यान न दिया हो कि उसे गर्भ क्यों कहते हैं?
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अगर आप मंदिर की ध्वनि का उच्चार करेंगे, हरेक मंदिर की अपनी ध्वनि है, अपना मंत्र है, अपने इष्ट देवता हैं और उस इष्ट देवता से संबंधित मंत्र हैं, अगर उस ध्वनि का उच्चारण करेंगे तो पायेंगे कि उससे वहां वही ऊष्णता पैदा होती है जो मां के गर्भ में पाई जाती है। यही कारण है कि (2/13)
मंदिर के गर्भ को मां के गर्भ जैसा गोल और बंद, (करीब करीब बंद) बनाया जाता है। उसमें एक ही छोटा सा द्वार रहता है।
जब ईसाई पहली बार भारत आए और उन्होंने हिंदू मंदिरों को देखा तो उन्हें लगा कि ये मंदिर तो बहुत अस्वास्थ्यकर हैं; उनमें खिड़कियां नहीं हैं, सिर्फ एक छोटा सा (3/13)
दरवाजा है। लेकिन मां के गर्भ में भी तो एक ही द्वार होता है और उसमें भी हवा के आने जाने की व्यवस्था नहीं रहती। यही वजह है कि मंदिर को ठीक मां के पेट जैसा बनाया जाता है; उसमें एक ही दरवाजा रखा जाता है। अगर आप उसकी ध्वनि का उच्चारण करते हो तो गर्भ सजीव हो उठता है। और इसे (4/13)
इसलिए भी गर्भ कहा जाता है क्योंकि वहां आप नया जन्म ग्रहण कर सकते हो, आप नया मनुष्य बन सकते हैं।
अगर आप किसी ऐसी ध्वनि का उच्चार करो जो आपको प्रीतिकर है, जिसके लिए आपके हृदय में भाव है, तो आप अपने चारों ओर एक ध्वनि गर्भ निर्मित कर लेंगें। अत: इसे खुले आकाश के नीचे करना (5/13)
अच्छा नहीं है। आप बहुत कमजोर हो; आप अपनी ध्वनि से पूरे आकाश को नहीं भर सकते। एक छोटा कमरा इसके लिए अच्छा रहेगा। और अगर वह कमरा आपकी ध्वनि को तरंगायित कर सके तो और भी अच्छा। उससे आपको मदद मिलेगी। और एक ही स्थान पर रोज रोज साधना करो तो वह और भी अच्छा रहेगा। वह स्थान आविष्ट (6/13)
हो जाएगा। अगर एक ही ध्वनि रोज रोज दोहराई जाए तो उस स्थान का प्रत्येक कण, वह पूरा स्थान एक विशेष तरंग से भर जाएगा; वहां एक अलग वातावरण, एक अलग माहौल बन जाएगा।
यही कारण है कि मंदिरों में अन्य धर्मों के लोगों को प्रवेश नहीं मिलता। अगर कोई मुसलमान नहीं है तो उसे मक्का में (7/13)
प्रवेश नहीं मिल सकता है, और यह ठीक है। इसमें कोई भूल नहीं है। इसका कारण यह है कि मक्का एक विशेष विज्ञान का स्थान है। जो व्यक्ति मुसलमान नहीं है वह वहां ऐसी तरंग लेकर जाएगा जो पूरे वातावरण के लिए उपद्रव हो सकती है। अगर किसी मुसलमान को हिंदू मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता है (8/13)
तो यह अपमानजनक नहीं है। जो सुधारक मंदिरों के संबंध में, धर्म और गुह्य विज्ञान के संबंध में कुछ भी नहीं जानते हैं और व्यर्थ के नारे लगाते हैं, वे सिर्फ उपद्रव पैदा करते हैं।
हिंदू मंदिर केवल हिंदुओं के लिए हैं, क्योंकि हिंदू मंदिर विशेष स्थान हैं, विशेष उद्देश्य से (9/13)
निर्मित हुए हैं। सदियों सदियों से वे इस प्रयत्न में लगे रहे हैं कि कैसे जीवंत मंदिर बनाएं; और कोई भी व्यक्ति उसमें उपद्रव पैदा कर सकता है। और यह उपद्रव खतरनाक सिद्ध हो सकता है। मंदिर कोई सार्वजनिक स्थान नहीं है। वह एक विशेष उद्देश्य से और विशेष लोगों के लिए बनाया गया है। (10/13)
वह आम दर्शकों के लिए नहीं है।
यही कारण है कि पुराने दिनों में आम दर्शकों को वहां प्रवेश नहीं मिलता था। अब सब को जाने दिया जाता है; क्योंकि हम नहीं जानते हैं कि हम क्या कर रहे हैं। दर्शकों को नहीं जाने दिया जाना चाहिए; यह कोई खेल तमाशे का स्थान नहीं है। यह स्थान विशेष (11/13)
तरंगों से तरंगायित है, विशेष उद्देश्य के लिए निर्मित हुआ है।
अगर यह राम का मंदिर है और अगर आप उस परिवार में पैदा हुए हो जहां राम का नाम पूज्य रहा है, प्रिय रहा है, तो जब तो उस मंदिर में प्रवेश करते हो जो सदा राम के नाम से तरंगायित है तो वहां जाकर आप अनजाने, अनायास जाप (12/13)
करने लगेंगें। वहां का माहौल आपको राम नाम जपने को मजबूर कर देगा। वहां की तरंगें आप पर चोट करेंगी और आपके अंतस से राम नाम जप उठने लगेगा।
भगवान विष्णु के आठवें पूर्णावतार और हिन्दू धर्म के पुर्नसंस्थापक लीलाधारी श्री कृष्ण ने यूं तो कई चमत्कार किए थे। जैसे जन्म लेते ही जेल के दरवाजे खुल जाना। यमुना में उफान के बावजूद यमुना द्वारा रास्ता देना। बहुत ही छोटी-सी उम्र में पूतना, (1/26)
कालिया नाग, कंस, चाणूर और मुष्टिक का वध करना। लेकिन हम यहां सिर्फ 7 ऐसे चमत्कारों के बारे में बताना चाहते हैं जो कि सिर्फ कृष्ण ही कर सकते थे।
पहला चमत्कार:
एक समय बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ खेल रहे थे। बलराम ने देखा की उन्होंने मिट्टी खा ली है। उन्होंने बाकी सखाओं के (2/26)
साथ मिलकर मां यशोदा से इसकी शिकायत कर दी। यशोदा मां तुरंत आई और कान पकड़कर पूछने लगी कि क्या तूने मिट्टी खाई है। भगवान श्रीकृष्ण अपना मुंह बंद कर गर्दन हिलाकर बताने लगे की नहीं खाई है।
मां ने कहा मुंह खोल तेरा देखती हूं कि खाई की नहीं। कृष्ण ने मुंह खोलकर कहा, ये सभी (3/26)
मागहु बिदा मातु सन जाई। आवहु बेगि चलहु बन भाई॥
मुदित भए सुनि रघुबर बानी। भयउ लाभ बड़ गइ बड़ि हानी॥
भावार्थ: प्रभु श्रीराम कहते हैं कि हे लक्ष्मण! जाकर माता से विदा माँग आओ और जल्दी वन को चलो! रघुकुल में श्रेष्ठ श्री रामजी की वाणी सुनकर लक्ष्मणजी (1/23)
आनंदित हो गए। बड़ी हानि दूर हो गई और बड़ा लाभ हुआ॥
बात उस समय की है जब भगवान् श्री रामजी वनवास को जा रहे है, तब लक्ष्मणजी भी जाने को तैयार हुए, तब प्रभु रामजी ने लक्ष्मणजी को माता सुमित्राजी से आज्ञा लेने के लिये भेजते है, उस समय माता के भावों को दर्शाने की कोशिश करूँगा, (2/23)
साथ ही उर्मिलाजी जैसे नारी शक्ति के शौर्य के दर्शन भी कराऊँगा, आप सभी इस पोस्ट को ध्यान से पूरा पढ़े, और भारतीय नारी शक्ति की महानता के दर्शन करें।
लक्ष्मणजी माँ से वनवास में भगवान् के साथ जाने की आज्ञा मांगते है तब माता सुमीत्राजी ने कहा, लखन बेटा! मैं तो तेरी धरोहर की (3/23)
मंदिर में प्रवेश नंगे पैर ही करना पड़ता है, यह नियम दुनिया के हर मंदिर में है...। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि मंदिर की फर्शों का निर्माण पुराने समय से अब तक इस प्रकार किया जाता है कि ये इलेक्ट्रिक और मैग्नैटिक तरंगों का सबसे बड़ा स्त्रोत होती हैं। जब इन पर नंगे पैर (1/6)
चला जाता है तो अधिकतम ऊर्जा पैरों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाती है...।
दीपक के ऊपर हाथ घुमाने का वैज्ञानिक कारण:
आरती के बाद सभी लोग दिए पर या कपूर के ऊपर हाथ रखते हैं और उसके बाद सिर से लगाते हैं और आंखों पर स्पर्श करते हैं। ऐसा करने से हल्के गर्म हाथों से (2/6)
दृष्टि इंद्री सक्रिय हो जाती है और बेहतर महसूस होता है...।
मंदिर में घंटा लगाने का कारण:
जब भी मंदिर में प्रवेश किया जाता है तो दरवाजे पर घंटा टंगा होता है जिसे बजाना होता है। मुख्य मंदिर (जहां भगवान की मूर्ति होती है) में भी प्रवेश करते समय घंटा या घंटी बजानी होती है, (3/6)
जमीयत उलेमा-ए-हिंद, फिर दलित मुसलमानों को हिंदू धर्म में वापस भेज दो। मतांतरण करने वालों को आरक्षण से क्या मतलब? हिंदू धर्म के खिलाफ ये षड़यंत्र है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मांग की है कि दलित मुस्लिमों और ईसाइयों को अनुसूचित जाति (SC) का (1/11)
दर्जा देने की याचिकाओं में उसे पक्षकार बनाया जाए। जमीयत ने कहा है कि वो ऐसे मुसलमानों और ईसाइयों को SC का दर्जा देने का समर्थन करते हैं जिसके लिए दलील दी है कि इससे मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक, शैक्षणिक और रोजगार क्षेत्र में भागीदारी बढ़ेगी।
जो याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में (2/11)
लंबित हैं उनमे कहा गया है कि "मतांतरित होने के बावजूद दलित ईसाइयों और मुस्लिमों की स्थिति में बदलाव नहीं आया है। केंद्र सरकार ने हलफनामा देकर अदालत में कहा है ऐसे मतांतरण करने वाले आरक्षण के हकदार नहीं हैं।"
कोर्ट में याचिकाएं दायर करने वाले और जमीयत पहले इस बात का जवाब (3/11)
कॉलेजियम पर बढ़ता विवाद। फाइल वापस करने के बाद भी क्यों भड़के जस्टिस एस के कौल।
सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में 28 नवंबर, 2022 को जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस ए एस ओका की पीठ ने अटॉर्नी जनरल को नाराज होते हुए कहा कि सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों पर बैठी रहती है। (1/12)
ये बात उन्होंने कानून मंत्री किरेन रिजिजू के बयान देने के अगले दिन ही कही जिसमें उन्होंने कहा था सरकार से यह आशा नहीं करनी चाहिए कि वो आँखे बंद कर फाइल पर साइन कर देगी, ऐसा ही चाहता है कॉलेजियम तो हमें फाइल ही न भेजी जाएँ।
इसके अगले ही दिन 29 नवंबर को अख़बार में खबर (2/12)
छपती है कि सरकार ने 20 नाम कॉलेजियम को 25 नवंबर को लौटा दिए थे जिनमे 11 नाम नए थे और 9 पुराने थे जिनकी नियुक्ति के लिए कॉलेजियम अड़ रही थी और जिन्हें सरकार नियुक्त नहीं करना चाहती। एक वकील सौरभ कृपाल (पुत्र पूर्व चीफ CJI बी एन कृपाल) का भी नाम था जो अपने को समलैंगिक बता (3/12)
एक बार कृष्ण अपनी राधा से कहते है, “अच्छा राधे, एक बात तुम बताओ... अगर मैं कृष्ण ना होकर कोई वृक्ष होता तो, तब तुम क्या करती...?” श्री राधे ने अपने गुस्से को ठंडा करते हुए कहा, “तब मैं लता बनकर तुम्हारे चारों ओर लिपटी रहती...” कृष्णा ने राधे को (1/8)
मनाने वाली बच्चों की मुस्कान देकर कहा, “और अगर मैं यमुना नदी होता तो?” श्री राधे ने उत्तर दिया, “हं... तब मैं लहर बनकर तुम्हारे साथ साथ बहती रहती मेरे श्यामसुंदर...!” अब श्री राधे का गुलाबी रंग वापिस लौट आया... वे ठुड्डी के नीचे अपना हाथ रखकर अगले प्रश्न की प्रतीक्षा करने (2/8)
लगीं...
कृष्ण निकट घास चरती एक गौ की ओर संकेत करके बोले “अच्छा...! यदि मैं उस गौ की तरह होता तो तुम क्या करती...?”
श्री राधा हंसते हुए कान्हा जी के गाल खींचती हुई बोलीं, “तो मैं घंटी बनकर आपके गले में झूमती रहती प्राणनाथ... परन्तु आपका पीछा नहीं छोड़ती...” फिर अगले (3/8)