ने पूछा- मधुसूदन! ब्राह्मण की पूजा करने से क्या फल मिलता है ? इसका आप ही वर्णन कीजिये, क्योंकि आप इस विषय को अच्छी तरह जानते हैं और मेरे पितामह भी आपको इस विषय का ज्ञाता मानते हैं।
नरेश! मैं ब्राह्मणों के गुणों का यथार्थ रूप से वर्णन करता हूँ, आप ध्यान देकर सुनिये। कुरुनन्दन!
पहले की बात है, एक दिन ब्राह्मणों ने मेरे पुत्र प्रद्युम्न को कुपित कर दिया। उस समय मैं द्वारका में ही था।
प्रद्युम्न ने मुझसे आकर पूछा - ‘मधुसूदन! ब्राह्मणों की पूजा करने से क्या
फल होता है? इहलोक और परलोक में वे क्यों ईश्वर तुल्य माने जाते हैं? ‘मानद! सदा ब्राह्मणों की पूजा करके मनुष्य क्या फल पाता है? सह सब मुझे स्पष्ट रूप से बताइये क्योंकि इस विषय में मुझे महान संदेह है।
महाराज! प्रद्युम्न के ऐसा कहने पर मैंने उसको उत्तर दिया। रुक्मिणीनन्दन!
ब्राह्मणों की पूजा करने से क्या फल मिलता है, यह मैं बता रहा हूँ, तुम एकाग्रचित्त होकर सुनो। बेटा! ब्राह्मणों के राजा सोम (चन्द्रमा) हैं। अत: ये इस लोक और परलोक में भी सुख-दुख देने में समर्थ होते हैं।
ब्राह्मणों में शान्त भाव की प्रधानता होती है। इस विषय में मुझे कोई विचार
नहीं करना है। ब्राह्मणों की पूजा करने से आयु, कीर्ति, यश और बल की प्राप्ति होती है। समस्त लोक और लोकेश्वर ब्राह्मणों के पूजक हैं। धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि के लिये, मोक्ष की प्राप्ति के लिये और यश, लक्ष्मी तथा आरोग्य की उपलब्धि के लिये एवं देवता और पितरों की पूजा के समय
हमें ब्राह्मणों को पूर्ण संतुष्ट करना चाहिये। बेटा!
ऐसी दशा में मैं ब्राह्मणों का आदर कैसे नहीं करूँ ? महाबाहो! मैं ईश्वर (सब कुछ करने में समर्थ ) हूँ – ऐसा मानकर तुम्हें ब्राह्मणों के प्रति क्रोध नहीं करना चाहिये। ब्राह्मण इस लोक और परलोक में भी महान माने गये हैं। वे
सब कुछ प्रत्यक्ष देखते हैं और यदि क्रोध में भर जायँ तो इस जगत को भस्म कर सकते हैं। दूसरे-दूसरे लोक और लोकपालों की वे सृष्टि कर सकते हैं। अत: तेजस्वी पुरुष ब्राह्मणों के महत्व को अच्छी तरह जानकर भी उनके साथ सद्वर्ताव क्यों न करेंगे ?
रावण ने कैलाश पर्वत को उठा लिया फिर धनुष क्यों नहीं उठा पाया और राम ने कैसे धनुष तोड़ दिया ?
ऐसा था धनुष : भगवान शिव का धनुष बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारिक था।
शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो
यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था।
देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवराज इन्द्र को सौंप दिया गया था।
देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवराज को दे दिया। राजा जनक
के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था।
उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था, लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया।
*क्रिश्चियन* लड़की ने कहा कि.. यीशु हमारे लिए सूली पर लटके और मर गए।
मैंने कहा, पगली भगवान शिव ने हमारे लिए जहर पिया और जिंदा है।
(स्वयं पढ़ें और बच्चों को भी अनिवार्यतः पढ़ाएं*_.. 🙏
एक ओर जहां *ईसामसीह* को सिर्फ चार कीलें ठोकी गई थीं, वहीं *भीष्म पितामह* को धनुर्धर
अर्जुन ने सैकड़ों बाणों से छलनी कर दिया था।
तीसरे दिन कीलें निकाले जाने पर ईसा होश में आ गए थे, वहीं पितामह भीष्म ५८ दिनों तक लगातार बाणों की शैय्या पर पूरे होश में रहे और जीवन, अध्यात्म के अमूल्य प्रवचन, ज्ञान भी दिया तथा अपनी इच्छा से अपने शरीर का त्याग किया था।
सोचें कि
पितामह भीष्म की तरह अनगिनत त्यागी महापुरुष हमारे भारत वर्ष में हुए हैं, तथापि सैकड़ों बाणों से छलनी हुए पितामह *भीष्म को जब हमने भगवान नहीं माना, तो चार कीलों से ठोंके गए ईसा को गॉड क्यों मानें*??
ईसा का भारत से क्या संबंध है?
२५ दिसंबर हम क्यों मनाएं?
क्यों बनाएं हम अपने
🔘 पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नि, प्रेमी-प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं, सब मिलते हैं । क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है #Thread @IndiaTales7
🔘 वेसे ही सन्तान के रुप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है । जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है --
🔘 #ऋणानुबन्ध : पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी
भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा, जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये
🔘 #शत्रु_पुत्र : पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर
#ये_बिहारी_लेडिज नाक से लेकर पूरे ऊपर मांग तक orange #सिंदूर (भखरा सिंदूर) भर लेती हैं....
ये कहकर मज़ाक बनाने वालों के लिए ये पोस्ट है,,
शादी में दुल्हन को सिंदूर सुबह के समय में लगाया जाता है। नारंगी सिंदूर की तुलना सुबह होने के समय सूर्य की लालिमा से की जाती है, जिसका रंग
नांरगी होता है। माना जाता है कि बिहार और झारखंड में नारंगी सिंदूर लगाने की पीछे मान्यता है कि जिस तरह सूरज लोगों की जिंदगी में नया सवेरा , खुशहाली और उमंग लाता है, उसी तरह माना जाता है कि नारंगी सिंदूर भी दुल्हन की जिंदगी में खुशहाली लाता है। यही कारण है कि सात फेरे और सिंदूर
की रस्म सुबह के समय में की जाती है,,ये सिंदूर सूरज की लालिमा को दर्शाता है।
कथाओं के अनुसार सिंदूर का नाक तक लगाने का संबंध मां पार्वती से है। जब मां पार्वती ने रक्तबीज राक्षस को मारा था तब उनका सिंदूर नाक तक फैल गया था। इसी वजह से हिंदू धर्म में महिलाएं नाक तक लंबा सिंदूर
दुनिया में भारत एक आस्था का केंद्र है। यहां पर कई चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर हैं।
इनमें कई ऐसे मंदिर हैं जिनके रहस्यों को आज तक वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं।
ऐसा ही एक भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर है जो दक्षिण भारतीय राज्य केरल के थिरुवरप्पु में स्थित है। #Thread
#श्रीकृष्ण_मंदिर_तिरुवरप्पु। यह दुनिया का सबसे असामान्य मंदिर है।
यह मंदिर २३.५८x७ खुला रहता है। यहाँ भगवान कृष्ण हमेशा ही विराजमान रहते हैं।डेढ़ हजार वर्ष पुराना यह मंदिर केरल के कोट्टायम जिले में तिरुवरप्पु में स्थित है। मान्यता है कि यंहा भगवान श्रीकृष्ण के प्रतिष्ठित
विग्रह हमेशा भूख में रहते हैं इसलिए यह मंदिर ११.५८ घंटे, ३६५ दिन खुला रखा जाता है।
इस मंदिर की एक और ख़ासियत यह है कि पुजारी को दरवाज़ा खोलने के लिए चाबी दी जाती है तो साथ में एक कुल्हाड़ी भी दी जाती है।
लोगों का मानना है कि कृष्ण भूख बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं और इसलिए
ऊपर श्रीमती विशाखा हरी और उनके बेटे राजगोपाला हरी की तस्वीर है।
श्रीमती विशाखा हरी सीए में स्वर्ण पदक विजेता हैं और हमारे प्राचीन सनातन धर्म, पुराण, इतिहास, वेद और शास्त्रों के बारे में व्यापक ज्ञान रखती हैं।
वह किसी MNC में शामिल हो सकती थी/विदेश जाकर करोड़ों रुपए कमा सकती थी।
लेकिन उसने हमारे पुराणों, इतिहासों, वेदों और शास्त्रों का प्रचार करने के लिए एक कर्नाटक गायक और हरिकथा के निर्माता बनने का फैसला किया।
उनके अधिकांश हरि कथा तमिल भाषा में हैं।
श्रीमती विशाखा हरि के परिवार द्वारा अपने एकमात्र पुत्र को विशाखा हरि के पदचिन्हों पर चलने और हरि कथाओं
की परंपरा को जारी रखने के लिए महान प्रयास।
*हम हिंदू होने के नाते, कम से कम विशाखा हरी और अन्य हिंदू धर्म प्रचारक के सभी आयोजनों में शामिल होकर अपने धर्म से जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित करें। * * *
हिन्दू युवाओं को विशाखा हरी जैसे उच्च शिक्षित लोगों से प्रेरित होकर हमारे