फ़िल्म का नाम है पठान, जिसकी अभिनेत्री जेएनयू के टुकड़े-टुकड़े गैंग की सदस्य दीपिका पादुकोण और अभिनेता स्व.लता मंगेश्कर के पार्थिव शरीर पर थूकने वाला शाहरुख़ ख़ान है।
इस फिल्म में एक गाने 'बेशर्म रंग' में दीपिका को लगभग वस्त्र विहीन वो भी भगवा कपड़ों से अपने (1/10)
अन्त:शरीर को वाहियात ढंग से ढकते व 'बेशर्म' रंग सम्बोधन के माध्यम से सनातन का मखौल व अपमानित करते दिखाया गया है।
वहाबियों/जिहादियो की गेरुआ वस्त्रों पर सदैव एक गिद्धदृष्टि रहती है। पालघर के गेरुआ वस्त्रधारी संतो की हत्या तो मात्र एक संदेश है, वास्तविक लक्ष्य तो सनातन (2/10)
का नरसंहार है।
यही कारण है कि पैगंबर अपने अनुयायियों को आग्रह किया करता था कि वे अपने सिर और दाढ़ी के बाल हिना (लाल रंग) से रंगें ताकि वे यहूदियों से भिन्न दिखें और हिन्दू परम्पराओं से अलग करने के लिए उसने (मुहम्मद) अपने अनुयायियों को हरे रंग का प्रयोग करने का आग्रह (3/10)
किया।
मुहम्मद की पैगंबर योजनाओं में भारत एक महान रोड़ा था, इसका कारण यह था कि अरब की जीवन व्यवस्था और पांथिक विचार, दोनों ही भारत की संस्कृति और धर्म से बुरी तरह प्रभावित थे।
अतः जब तक वह हिन्दुत्व की जड़ों पर सफलतापूर्वक आघात न करें, तब तक वह अपने आपको पूजनीय नहीं बना (4/10)
सकता था। अरब और अन्य देशों से हिन्दूधर्म को विनष्ट किए बिना मुहम्मदवाद की स्थापना करना सर्वथा असम्भव था।
संक्षेप में, अपने को पूजनीय स्थापित करने के लिए उसे हिन्दू मूर्तियों का नष्ट करना अनिवार्य था। अब्दुल्ला बिन अम्र अल-आस ने वर्णन किया है कि "अल्लाह के दूत ने मुझे (5/10)
दो भगवे-रंग के कपड़े पहने देखा। जिसपर उन्होंने कहा - ये वे कपड़े है, जिन्हें सामान्यतया अविश्वासी (हिन्दू) पहनते हैं, इसलिए इन्हें मत पहनो।" (मुस्लिम खण्ड 3 : 5173, पृष्ठ 1377)
इस घटना को अगली हदीस नं.5175, एक उग्र रूप में वर्णन करती है: अब्दुल्ला को भगवे रंग में रंगें (6/10)
दो कपड़ो को पहने देखकर पैगंबर ने कहा, "क्या तुम्हारी माँ ने तुम्हें पहनने को कहा?" अब्दुल्ला ने उत्तर दिया कि, "मैं इन्हें धो डालूंगा।" पैगंबर ने उत्तर दिया, "इन्हें जला दो।" (पृष्ठ 1378) पुनः हदीस संख्या (5178 पृष्ठ 1378) कहती है कि, "पैगंबर ने निषेध किया कि स्वर्ण आभूषण (7/10)
और भगवा रंग के वस्त्र पहनकर कुरान नहीं पढ़ना चाहिए।"
सामान्यत: भारत के प्रति, विशेषकर हिन्दुओं के प्रति, छिपी हुई घृणा के संदर्भ में, हमें समझ लेना चाहिए कि ओ३म् या हिन्दू ध्वज का रंग भगवा होता है जिसे, केसरिया और गेरुआ भी कहते हैं। ओ३म् का ध्वज उगते हुए सूर्य का (8/10)
प्रतिनिधित्व करता है, जो न केवल भगवा रंग की ओर इशारा करता है वरन् उस समय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ऊर्ध्वगामी भारतीय शक्ति एवं सामर्थ्य की ओर भी इशारा करता है।
इसके अतिरिक्त यह रंग हिन्दू ग्रंथों में वर्णित वीरता की हिन्दू परम्परा, महानता और उदारता के कर्मों के प्रति (9/10)
निष्ठा का भी प्रतीक था। अथर्ववेद (10:10.2) भगवा रंग के ध्वज का स्पष्ट उल्लेख करता है। इसलिए भगवा रंग केवल हिन्दू परम्परा का ही अंग नहीं है, वरन् हिन्दू धार्मिक साधुता, पवित्रता और ईमानदारी का भी द्योतक है।
अगर आप फूफा हैं अथवा भविष्य में फूफा बनने वाले हैं तो यह पोस्ट आपके लिए है। यदि आप फूफा से त्रस्त हैं और उससे नफरत करते हैं, तो यह पोस्ट आपके लिए भी है।
जैसा कि हम सभी को विदित है कि फूफा धरती की वह प्रजाति है जिसे किसी समारोह में निमंत्रण भी दिया जाता और उसके आ जाने के (1/24)
बाद, उसके फूँक फूँक कर कदम रखने के बावजूद, कुछ न कुछ ऐसा कर दिया जाता है कि उसे गुस्सा आ जाय। बाद में जब वो अपना नियंत्रण खो देता है तो कहा जाता है कि इसे निमंत्रण देना ही बेकार था।
क्या सोचकर आपने उसे निमंत्रण दिया था? फूफा आपका कार्ड देखकर खुश होगा, शाबाशी देगा...? वो (2/24)
आपके दावत का भूखा है? उसे अपनी इज्जत की कोई परवाह नहीं...? भाई साहब, अज्ञानी हैं आप।
बात बात में फूफा के आचरण में नुक्स निकालने से पहले क्या एक बार भी आपने फूफा की जगह खुद को रखकर देखा है। अगर देखते तो उसे क्रोध न करना पड़ता और न ही आपको उसकी निंदा।
आप हिंदू अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष करना चाहते हैं? हिंदू राष्ट्र की भावना मन में लिए हैं? हिंदू एकता का राग अलापते हैं?
पर ज़रा विचार कर देखिए कि यह आप किसके लिए कर रहे हैं? स्वयं आपमें ही कितना हिंदुत्व शेष है?
वेद, स्मृति, पुराणों के आधार पर (1/5)
आप हिंदूहैं? वे तो आपने पढ़े ही नहीं हैं तो आपको क्या पता?
क्या आप अपनी कुल परंपराओं के आधार पर हिंदू हैं? कुल परंपराओं का तो आप पहले ही परित्याग कर चुके हैं? कुल परंपराओं का मार्गनिर्देशन करने वाले आपके कुल पुरोहित कहाँ हैं? आपकी वंश परंपराएँ तैयार करने वाले आचार्य कहाँ (2/5)
हैं?
आप प्री वेडिंग शूट करने वाले, मंदिर में ट्यूरिज़्म करने वाले, तीर्थ स्थानों पर हनीमून मनाने वाले, गुरु- ब्राह्मण- शास्त्रों का अपमान करने वाले, देवनिंदक, कुल विध्वंसक हिंदू तो नहीं हैं?
वैसे जो हमने हिंदू शब्द को लेकर कहा है वह उसका लाक्षणिक प्रयोग है, सनातनी लोग (3/5)
जो अधकचरे ज्ञानी फटान फिल्म का बॉयकॉट करने वाले देशभक्तों को मूर्ख कह रहे हैं, उनसे हमें पुनः यही कहना है।
"आदिपुरुष"
हमारे इंजीनियरिंग सेल्स की एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है, "कस्टमर को कंविन्स न कर पाओ तो कन्फ्यूज कर दो!"
बॉलीवुड के चरसी जब अपनी सारी शक्ति झोंक देने के (1/26)
बावजूद भी राष्ट्रवादियों के उभरते हुए वर्चस्व को तोड़ नहीं सके, झुका नहीं सके, हरा नहीं सके तो अब इस 'कन्फ्यूज कर दो' वाले नए पैंतरे पर कार्य कर रहे हैं। और आप तो कन्फ्यूज होने के लिए बैठे हैं। हाँ, वही आप जो एक अफवाह पर अपना दिमाग गिरवी रख कर चार सौ रुपये किलो नमक बिकवा (2/26)
देते हैं बिना तनिक भी यह सोचे कि प्राचीन काल में समुद्र से दूर-दराज के क्षेत्रों तक नमक पहुंचना दुष्कर था। जबकि आज तो समुद्र भरे पड़े हैं नमक से तथा परिवहन की सुविधाएं हजार गुना बढ़ी हुई हैं, उस पर भी कि करोड़ों लोग डॉक्टर से कहने से नमक छोड़ते जा रहे हैं।
नौशाद भाई, आप बंगाल से उत्तर प्रदेश आये हैं तो हमारे मेहमान हुए...
आपका दर्द सुना मैंने... महसूस भी किया... और हम हिंदू किसी धर्मस्थल से जुड़ा दर्द महसूस न करेंगे तो क्या अरब वाले करेंगे?
नौशाद भाई, अब काशी की ट्रिप (1/10)
तो आपकी बेकार हो गई... आप मेरे साथ चलो घूमने... बनारस से हम लोग दिल्ली चलेंगे...।
वहाँ मैं तुम्हें अपने पुरखों के बनाये विष्णु स्तंभ और जैन मंदिर कॉम्प्लेक्स दिखवाऊँगा...।
एक इस्लामी शासक ने उन्हें तोड़कर उनका नाम कुतुबमीनार रख दिया... वहीं एक बहुत प्राचीन मंदिर है कालका (2/10)
जी मंदिर... पुराना वाला तो एक इस्लामी शासक ने तुड़वा दिया था... ये वाला हमने उसके मरने के तुरंत बाद बनवा लिया था...।
वहाँ से हम मथुरा चलेंगे... वहाँ मेरे कृष्ण भगवान की जन्मभूमि है... एक बहुत सुंदर मंदिर है वहाँ हालाँकि जन्मभूमि वाली जगह पर जो ओरिजिनल मंदिर था उसे इस्लामी (3/10)
ओशो पर पिछले पोस्ट पर मैंने उन्हें गुरु बनाने से जुड़ी चुनौती के बारे में लिखा थी। जिसमें मैंने कहा था कि जो इंसान ऊपरी तौर पर इतनी विरोधाभासी बातें करता हो उससे जुड़ने की अपनी चुनौतियां हैं। पोस्ट लिखने के बाद लगा कि अगर बात को यहीं छोड़ दी जाए (1/28)
जैसा कि छोड़ दी गई थी, तो शायद अधूरी रह जाए। इसलिए अपनी समझ से ये बताना मुझे ज़रूरी लगा कि कैसे बातें विरोधाभासी होते हुए भी सच हो सकती हैं। और एक गुरु से हमारी अपेक्षाएं क्या होनी चाहिए? हमें पता होना चाहिए कि हम उसके पास क्यों आए हैं।
पहले बात विरोधाभास की कर लेते हैं। (2/28)
इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। देखिए, अगर कोई मुझसे ही पूछे कि क्या शादी करना सही है। तो इसका सीधे 'हां' या 'ना में कोई जवाब नहीं दिया जा सकता। मुझे लगता है कि अगर किसी आदमी की ज़िंदगी में कोई बड़ा मकसद है। अकेलेपन में वो बोरियत की बजाए ऊर्जा महसूस करता है। (3/28)
रजनीश: भारत का वो गुरु जिसे भारत ने ही सबसे कम समझा
इस साल हिंदुस्तान के सबसे प्रीमियम संस्थान में से एक में जाने का मौका मिला। मित्र उस संस्थान में अधिकारी हैं। वही हमें पूरे कैंपस का दौरा करवा रहे थे। कुछ देर में हम उस कैंपस की लाइब्रेरी में पहुंचे। जहां कुछ ऐसी किताबें (1/22)
थी जो शायद कहीं और देखने-पढ़ने को न मिलें। लाइब्रेरी का गलियारा भी बहुत बड़ा था। वहां बहुत सी ऐतिहासिक शख्सियतों की तस्वीरें लगी थीं। लगभग तमाम बड़े मशहूर नाम इसमें शामिल थे। सिवाय एक के, वो थे... रजनीश।
मैंने मित्र से कहा कि इन तमाम बड़े लेखकों, कवियों, दार्शनिकों की (2/22)
लाइब्रेरी में तस्वीर लगाकर हम उनका सम्मान कर रहे हैं, ये अच्छी बात है। मगर हैरानी है कि जो शख्स हिंदुस्तान की ज्ञात तारीख का सबसे बड़ा गुरु है उसकी एक भी तस्वीर यहां नहीं है।
वो संस्थान ही नहीं, इस देश की संसद, विधानसभाएं, सरकारी लाइब्रेरी, सरकारी कार्यक्रम कहीं आपको (3/22)