(1) असली पठान वो जो हवाई जहाज के पहिए से लटक कर अमेरिका जाने की कोशिश करे।
(2) असली पठान वो जो औरतों को जानवर से बदतर समझे, औरतों को कोड़ों से सरेआम मारे और औरतों को बोरा में भर कर रखे।
(3) असली पठान वो जो बच्चा बाज़ी करे।
(4) असली पठान वो जो (1/6)
अपने बीबी बच्चों को तालिबानियों के हवाले छोड़कर हवाई जहाज में लटक लटक कर भाग जाए।
(5) असली पठान वो जो लड़कियों की खरीद फरोख्त करे।
(6) असली पठान वो जो अपने हरि सिंह नालवा के डर से सलवार पहन कर हिजड़ों की तरह रहना कुबूल करे।
(7) असली पठान वो जो भूखे नंगे, फटेहाल रहे और (2/6)
सबसे लात खाते रहे।
(8) असली पठान वो जो नशे का सौदागर हो।
(9) असली पठान वो जो जन्नत में 72 हूरों के लिए आतंकी बने।
(10) असली पठान वो जो अपने बेटी को बेचता है।
[ब्रिटिश पत्रकार हैं क्रिस मेंडलोक उनका एक बड़ा ही चर्चित आर्टिकल छपा था कई बड़े अख़बारों में कुछ समय पूर्व (3/6)
"An Afghan Tragedy": The Pashtun practice of having sex with young boys.]
[ये पूरा आर्टिकल उनकी सालों की रिसर्च पर आधारित था और अफगानिस्तान में पठानों में क़िस तरह से paedophilia एक सामान्य चलन है ये विस्तार से बताया था... असलियत ये है के सायद ही कोई पस्तून किशोर हो जो (4/6)
यौन शोषण का शिकार न बनता हो...]
हम तो ओरिजिनल पठान देखे हैं... जो, अफगानिस्तान में चिपंजियों की तरह हेलीकॉप्टर से लटक कर झूला झूल रहे थे...
मूर्खों की तरह आश्चर्य में भरकर आइसक्रीम चाट रहे थे।
असली पठान देखकर मन में बहुत बुरा लगता है कि... कोई कौम इतनी फट्टू जाहिल, (5/6)
भूखे नंगे, फटेहाल और डरपोक आखिर कैसे हो सकती है।
अब जब असली वाला पठान देख ही लिए हैं तो फिर ये नकली पठान क्यों देखना है?
अगर आप फूफा हैं अथवा भविष्य में फूफा बनने वाले हैं तो यह पोस्ट आपके लिए है। यदि आप फूफा से त्रस्त हैं और उससे नफरत करते हैं, तो यह पोस्ट आपके लिए भी है।
जैसा कि हम सभी को विदित है कि फूफा धरती की वह प्रजाति है जिसे किसी समारोह में निमंत्रण भी दिया जाता और उसके आ जाने के (1/24)
बाद, उसके फूँक फूँक कर कदम रखने के बावजूद, कुछ न कुछ ऐसा कर दिया जाता है कि उसे गुस्सा आ जाय। बाद में जब वो अपना नियंत्रण खो देता है तो कहा जाता है कि इसे निमंत्रण देना ही बेकार था।
क्या सोचकर आपने उसे निमंत्रण दिया था? फूफा आपका कार्ड देखकर खुश होगा, शाबाशी देगा...? वो (2/24)
आपके दावत का भूखा है? उसे अपनी इज्जत की कोई परवाह नहीं...? भाई साहब, अज्ञानी हैं आप।
बात बात में फूफा के आचरण में नुक्स निकालने से पहले क्या एक बार भी आपने फूफा की जगह खुद को रखकर देखा है। अगर देखते तो उसे क्रोध न करना पड़ता और न ही आपको उसकी निंदा।
आप हिंदू अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष करना चाहते हैं? हिंदू राष्ट्र की भावना मन में लिए हैं? हिंदू एकता का राग अलापते हैं?
पर ज़रा विचार कर देखिए कि यह आप किसके लिए कर रहे हैं? स्वयं आपमें ही कितना हिंदुत्व शेष है?
वेद, स्मृति, पुराणों के आधार पर (1/5)
आप हिंदूहैं? वे तो आपने पढ़े ही नहीं हैं तो आपको क्या पता?
क्या आप अपनी कुल परंपराओं के आधार पर हिंदू हैं? कुल परंपराओं का तो आप पहले ही परित्याग कर चुके हैं? कुल परंपराओं का मार्गनिर्देशन करने वाले आपके कुल पुरोहित कहाँ हैं? आपकी वंश परंपराएँ तैयार करने वाले आचार्य कहाँ (2/5)
हैं?
आप प्री वेडिंग शूट करने वाले, मंदिर में ट्यूरिज़्म करने वाले, तीर्थ स्थानों पर हनीमून मनाने वाले, गुरु- ब्राह्मण- शास्त्रों का अपमान करने वाले, देवनिंदक, कुल विध्वंसक हिंदू तो नहीं हैं?
वैसे जो हमने हिंदू शब्द को लेकर कहा है वह उसका लाक्षणिक प्रयोग है, सनातनी लोग (3/5)
जो अधकचरे ज्ञानी फटान फिल्म का बॉयकॉट करने वाले देशभक्तों को मूर्ख कह रहे हैं, उनसे हमें पुनः यही कहना है।
"आदिपुरुष"
हमारे इंजीनियरिंग सेल्स की एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है, "कस्टमर को कंविन्स न कर पाओ तो कन्फ्यूज कर दो!"
बॉलीवुड के चरसी जब अपनी सारी शक्ति झोंक देने के (1/26)
बावजूद भी राष्ट्रवादियों के उभरते हुए वर्चस्व को तोड़ नहीं सके, झुका नहीं सके, हरा नहीं सके तो अब इस 'कन्फ्यूज कर दो' वाले नए पैंतरे पर कार्य कर रहे हैं। और आप तो कन्फ्यूज होने के लिए बैठे हैं। हाँ, वही आप जो एक अफवाह पर अपना दिमाग गिरवी रख कर चार सौ रुपये किलो नमक बिकवा (2/26)
देते हैं बिना तनिक भी यह सोचे कि प्राचीन काल में समुद्र से दूर-दराज के क्षेत्रों तक नमक पहुंचना दुष्कर था। जबकि आज तो समुद्र भरे पड़े हैं नमक से तथा परिवहन की सुविधाएं हजार गुना बढ़ी हुई हैं, उस पर भी कि करोड़ों लोग डॉक्टर से कहने से नमक छोड़ते जा रहे हैं।
नौशाद भाई, आप बंगाल से उत्तर प्रदेश आये हैं तो हमारे मेहमान हुए...
आपका दर्द सुना मैंने... महसूस भी किया... और हम हिंदू किसी धर्मस्थल से जुड़ा दर्द महसूस न करेंगे तो क्या अरब वाले करेंगे?
नौशाद भाई, अब काशी की ट्रिप (1/10)
तो आपकी बेकार हो गई... आप मेरे साथ चलो घूमने... बनारस से हम लोग दिल्ली चलेंगे...।
वहाँ मैं तुम्हें अपने पुरखों के बनाये विष्णु स्तंभ और जैन मंदिर कॉम्प्लेक्स दिखवाऊँगा...।
एक इस्लामी शासक ने उन्हें तोड़कर उनका नाम कुतुबमीनार रख दिया... वहीं एक बहुत प्राचीन मंदिर है कालका (2/10)
जी मंदिर... पुराना वाला तो एक इस्लामी शासक ने तुड़वा दिया था... ये वाला हमने उसके मरने के तुरंत बाद बनवा लिया था...।
वहाँ से हम मथुरा चलेंगे... वहाँ मेरे कृष्ण भगवान की जन्मभूमि है... एक बहुत सुंदर मंदिर है वहाँ हालाँकि जन्मभूमि वाली जगह पर जो ओरिजिनल मंदिर था उसे इस्लामी (3/10)
ओशो पर पिछले पोस्ट पर मैंने उन्हें गुरु बनाने से जुड़ी चुनौती के बारे में लिखा थी। जिसमें मैंने कहा था कि जो इंसान ऊपरी तौर पर इतनी विरोधाभासी बातें करता हो उससे जुड़ने की अपनी चुनौतियां हैं। पोस्ट लिखने के बाद लगा कि अगर बात को यहीं छोड़ दी जाए (1/28)
जैसा कि छोड़ दी गई थी, तो शायद अधूरी रह जाए। इसलिए अपनी समझ से ये बताना मुझे ज़रूरी लगा कि कैसे बातें विरोधाभासी होते हुए भी सच हो सकती हैं। और एक गुरु से हमारी अपेक्षाएं क्या होनी चाहिए? हमें पता होना चाहिए कि हम उसके पास क्यों आए हैं।
पहले बात विरोधाभास की कर लेते हैं। (2/28)
इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। देखिए, अगर कोई मुझसे ही पूछे कि क्या शादी करना सही है। तो इसका सीधे 'हां' या 'ना में कोई जवाब नहीं दिया जा सकता। मुझे लगता है कि अगर किसी आदमी की ज़िंदगी में कोई बड़ा मकसद है। अकेलेपन में वो बोरियत की बजाए ऊर्जा महसूस करता है। (3/28)
रजनीश: भारत का वो गुरु जिसे भारत ने ही सबसे कम समझा
इस साल हिंदुस्तान के सबसे प्रीमियम संस्थान में से एक में जाने का मौका मिला। मित्र उस संस्थान में अधिकारी हैं। वही हमें पूरे कैंपस का दौरा करवा रहे थे। कुछ देर में हम उस कैंपस की लाइब्रेरी में पहुंचे। जहां कुछ ऐसी किताबें (1/22)
थी जो शायद कहीं और देखने-पढ़ने को न मिलें। लाइब्रेरी का गलियारा भी बहुत बड़ा था। वहां बहुत सी ऐतिहासिक शख्सियतों की तस्वीरें लगी थीं। लगभग तमाम बड़े मशहूर नाम इसमें शामिल थे। सिवाय एक के, वो थे... रजनीश।
मैंने मित्र से कहा कि इन तमाम बड़े लेखकों, कवियों, दार्शनिकों की (2/22)
लाइब्रेरी में तस्वीर लगाकर हम उनका सम्मान कर रहे हैं, ये अच्छी बात है। मगर हैरानी है कि जो शख्स हिंदुस्तान की ज्ञात तारीख का सबसे बड़ा गुरु है उसकी एक भी तस्वीर यहां नहीं है।
वो संस्थान ही नहीं, इस देश की संसद, विधानसभाएं, सरकारी लाइब्रेरी, सरकारी कार्यक्रम कहीं आपको (3/22)