भारत जोड़ो यात्रा के सौ दिन का हासिल:
लोकतंत्र संवाद के पहिये पर चलता है - संवाद नहीं होगा तो लोकतंत्र ठहर जायेगा. कुछ अपवादों को छोड़कर पिछले कुछ दशकों में राजनेता और जनता के बीच संवाद बंद पड़ा था. #भारत_जोड़ो_यात्रा ने इस टूटे पुल को फिर से जोड़ा है - यही सबसे बड़ा हासिल है.
राजीव गांधी, वीपी सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा जितने भी प्रधानमंत्री हुये वो न जनता के बीच से आये और न ही सत्ता में आने के बाद जनता के बीच गये. मोदी का भी मुख्यमंत्री बनने से पहले किसी जन आंदोलन का कोई रिकॉर्ड नहीं है. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उनका संवाद एक तरफा ही रहा.
विचारधारा की शून्यता से निजात: आरएसएस - कॉर्पोरेट - मोदी गठजोड़ ने देश की राजनीतिक पार्टियों के सामने एक बड़ा वैचारिक संकट खड़ा कर दिया. कांग्रेस समेत सभी दल इससे प्रभावित हुये. भारत जोड़ो यात्रा ने इस वैचारिक शून्यता को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू की है. अब एक विकल्प है सामने.
संघीय ढांचे को मज़बूती: सत्ता का अत्यधिक केन्द्रीयकरण देश की एकता और समुचित विकास के विपरीत है. दक्षिण से लेकर उत्तर तक यात्रा और राहुल गांधी को जिस तरह का जन समर्थन मिला है उसने देश के तमाम क्षेत्रों और समाज के उपेक्षित वर्गों - खासकर अल्पसंख्यकों को एक नया भरोसा जरूर दिया है.
बड़ा आइडिया ही बड़ा बदलाव लाता है: मंदिर आंदोलन, मंडल आयोग का लागू होना, नई आर्थिक नीतियां ये सब ऐसे आइडिया थे जिन्होंने राजनीति की दिशा को नये मोड़ दिये, सरकारें बनाई. मोदी का ध्रुवीकरण एक सफल राजनीतिक हथियार है लेकिन ये कॉर्पोरेट और उसके मीडिया के समर्थन के बिना नहीं टिक सकता.
भारत जोड़ो इस दौर का एक नया बड़ा आइडिया बन सकता है जो देश को एक सकारात्मक राजनीति की तरफ़ मोड़ सकता है. पिछले दो तीन दशकों की वैचारिक शून्यता की वजह से लोकतंत्र को नई जान (reboot) नहीं मिल पाई.
नफ़रत पर प्रेम की जीत भारत को सच्चा विश्वगुरु बना सकती है जो उसकी असली विरासत है.
नई तरह की राजनीति का उदय: नई पीढ़ी (तीस साल से कम उम्र के लोग) ने नेता को हेलिकॉप्टर में उड़ते, बुलेट प्रूफ़ गाड़ियों में या सुरक्षा घेरे में ही देखा है. बूढ़ी महिलायें जब राहुल गांधी से लिपट जाती हैं तो लगता है न जाने कितने दशकों की चाहत है उनकी कि नेता उनके बीच में हो.
'डरो मत' देश को एक नया कॉन्फिडेंस देगा: देश में चारों तरफ़ बेहिसाब नाइंसाफी है. एक पुलिस राज कायम हो चुका है. पत्रकार, प्रोफेसर, छात्र और न जाने कितने बेकसूर जेलों में हैं. जो बाहर हैं उन पर तमाम पाबंदिया हैं. नेता, जज, अफसर, अभिनेता, पत्रकार, लेखक, शिक्षक सब बोलने से डरते हैं.
भ्रष्ट मीडिया को जवाब: मीडिया किसी भी लोकतंत्र की किडनी है - खून साफ़ करता है. मीडिया (खासकर टीवी मीडिया) अब लोकतंत्र और समाज से कट चुका है. वो समाज में विभाजन का एजेंट है और संवैधानिक सिद्धांत बंधुत्व को नहीं मानता. यात्रा ने रास्ता दिखा दिया है कि इसके बगैर भी संवाद संभव है.
एक नई यात्रा की शुरुआत: भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी की छवि खराब करने के कॉर्पोरेट प्रॉजेक्ट पर पानी फेर दिया है - यहां से एक नई यात्रा की शुरुआत होगी. साथ ही स्टालिन, तेजस्वी यादव जैसे सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले नेताओं के लिये भी नये रास्ते खोलेगी.
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जब तक झूठा आरोप लगाने वाले पुलिस या जांच एजेंसी के अधिकारी जेल नहीं जायेंगे तब तक ये अधिकारी पार्टी कार्यकर्ता या किसी की भी सुपारी लेकर काम करते रहेंगे.
जेलें भरी हुई हैं अंडर ट्रॉयल लोगों से.
"जब तक जुर्म साबित न हो व्यक्ति निर्दोष है" सिद्धांत की धज्जियां उड़ चुकी हैं.
कानून का राज पार्टी राज या गुंडा राज बन चुका है. यूपी के चुनाव में पुलिस रिफॉर्म को मुद्दा बनाइये.
संविधान ले कर जुलूस में जाइये पर उसे पढ़िये भी. नेता वोट मांगने आये उससे वादा लीजिये कि पुलिस की जवाबदेही तय करने का कानून लायेगा.
राजनीतिक पुलिस और एजेंसियों के खिलाफ मुहिम चलाइये.
इसी महीने रुड़की में एक चर्च पर 200 से उपर दंगाइयों ने हमला कर दिया. उसमे भी पुलिस का रोल बहुत खराब था.
नेता से वफादारी CrPC से उपर हो गई है.
आये दिन वीडियो आते हैं जिसमे आईपीएस अधिकारी भी गुंडे मवाली की तरह बात करते दिखते हैं. सड़क पर पीटते है लोगों को.
पुलिस की स्थिति खराब हैं.