हरिसिंह नलवा जिनके डर से पठान आजभी स्त्रियों के वस्त्र पहनते हैं, जिसे आज पठानी सूट कहा जाताहै वो दरअसल स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाला सलवार कमीज है
इतिहास की इस सच्चीघटना जिसे खुद मियां गुल औरंगजेब ने स्वीकार किया था #BoycottPathaan
(मियां गुल औरंगजेब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और तानाशाह मोहम्मद अयूब खान के दामाद और बलूचिस्तान के पूर्व गवर्नर रहे हैं)
हिंदुस्तान का इतिहास जहाँ वीरों की शौर्य गाथाओ से भरा हुआ हैं बहाँ दुर्भाग्य है की वर्तमान इतिहास में हम हरिसिंह जी नलवा के शौर्य और वीरता को याद करने के
स्थान पे हम पठानों के गुणगान कर रहे जिन्हें भारत से कभी प्रेम नहीं रहा हैं| भारत के पिछले 250 वर्ष के इतिहास में जब भी वीर योद्धाओ का नाम लिया जायेगा, वीर शिरोमणि हरी सिंहजी नलवा के नाम के उल्लेख के बिना अधुरा ही माना जायेगा|
वीर शिरोमणि नलवाजी का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के
पंजाब प्रान्त में स्थित गुजरांवाला में 28 अप्रैल, 1791 को सिख पंथ मानने वाले क्षत्रिय परिवार में हुआ था|
आज के पाकिस्तान और अफगानिस्तान उस समय कई स्वतंत्र प्रदेशो में बटे हुए थे और इन जगहों पर खूंखार कबीलों और निर्दयी मु-slim बादशाहों का राज था|
महाराजा रंजीतसिंह जी ने हरिसिंह नलवाजी की काबिलियत को देखते हुए उन्हें अपना सबसे बड़ा सेना नायक बनाया और इन प्रदेशो को जितने की कमान सौंपी|
नलवाजी ने अद्भुत शौर्य और रणकौशल का प्रदर्शन करते हुए इन सभी विखंडित प्रदेशो को कुछ ही वर्षो में खालसा साम्राज्य में मिला दिया|
महाराजा रंजीतसिंह जी के आदेश पर जब हरिसिंह नलवा ने पेशावर पर आक्रमण किया तो इसकी सुचना पाते ही सुल्तान मुहम्मद कांपने लगा और युद्ध किये बिना ही भाग खड़ा हुआ|
ऐसा कहा जाता हैं एक बार बारिश के समय पेशावर के किले से नलवाजी ने देखा की बारिश के कारण घरो की छत की मिट्टी बह रही
थी तो लोग अपने घरो की छत को ठोकते-पिटते जिससे मिट्टी का बहना रुक जाता|
ये देखकर नलवाजी ने गौर किया की अफगान की मिट्टी का मिजाज ही ऐसा हैं की ठोकने और पीटने से ही ये ठीक रहती हैं उसके बाद से उन्होंने खूंखार और लड़ाकू कबीलों को उन्ही की भाषा में ठोक-पीटकर नियंत्रण में रखा
और सफलतापूर्वक राज्य चलाया|
हरि सिंह नलवा की फौज ने बहुत आसानी से पठानों पर विजय प्राप्त कर ली थी।
पूरे लिखित इतिहास में यही एक ऐसा समय है जब पठानों पर महाराजा रणजीत सिंह का शासन लागू हो गया और वो गुलाम हो गए।
ये रौब था हरि सिंह नलवा का। जिन पठानों को दुनिया के बेस्ट फाइटर्स में से एक माना जाता है उन पठानों को भी हरि सिंह नलवा ने छठी का दूध याद दिला दिया था।
हरी सिंह नलवा नलवे की सेनाओं ने अफ़गानों को खैबर दर्रे के उस ओर खदेड़ कर इतिहास की धारा ही बदल दी।
ख़ैबर दर्रा ( Khyber Pass) पश्चिम से भारत में प्रवेश करने का एक महत्वपूर्ण मार्ग है। ख़ैबर दर्रे से होकर ही 500 ईसा पूर्व में यूनानियों के भारत पर आक्रमण करने और लूटपात करने की प्रक्रिया शुरू हुई। इसी दर्रे से होकर यूनानी, हूण, शक, अरब, तुर्क, पठान और मुगल लगभग एक हजार वर्ष तक
भारत पर आक्रमण करते रहे। तैमूर लंग, बाबर और नादिरशाह की सेनाओं के हाथों भारत बेहद पीड़ित हुआ था। हरि सिंह नलवा ने ख़ैबर दर्रे का मार्ग बंद करके इस ऐतिहासिक अपमानजनक प्रक्रिया का पूर्ण रूप से अन्त कर दिया था।
सिखों की सेना से पठान इतने ज्यादा घबराए हुए थे कि बाजार में सिखों को देखते ही सारे छुप जाया करते थे।
जिसने भी सिखों का विरोध किया उनको बेरहमी से कुचल दिया गया। उस समय ये बात बहुत प्रचलित हो गई थी कि सिख तीन लोगों के प्राण नहीं लेते हैं पहला स्त्रियां दूसरा बच्चे और तीसरा बुजुर्ग
इसके बाद पठान पंजाबी महिलाओं के द्वारा पहना जाने वाला सलवार कमीज पहनने लगे। दरअसल पठानों का सलवार पहनना एक तरह से सिख आर्मी के सामने पठानों का सरेंडर माना जाता था और सरेंडर होने वालों पर सिख कभी हमला नहीं करते हैं।
यह ब्यान आज भी Defence.pk नामक वेबसाइट पर मौजूद है
पाकिस्तान के लोगों के विरोध के बावजूद भी इस वेबसाइट ने मियां गुल औरंगजेब का ये बयान नहीं हटाया था क्योंकि ये पाकिस्तानी वेबसाइट ये मानती है कि जब तक पाकिस्तानी मुसमलानों को अपनी कायरता का पता नहीं चलेगा वो झूठी डींगे मारते रहेंगे और भारत से सदैव हारते रहेंगे।
हरि सिंह ने अफगानों को पछाड़ कर निम्नलिखित विजयों में भाग लिया: सियालकोट (1802), कसूर (1807), मुल्तान (1818), कश्मीर (1819), पखली और दमतौर (1821-2), पेशावर (1834) और ख़ैबर हिल्स में जमरौद (1836) । हरि सिंह नलवा कश्मीर और पेशावर के गवर्नर बनाये गये।
कश्मीर में उन्होने एक नया सिक्का ढाला जो ‘हरि सिंगी’ के नाम से जाना गया। यह सिक्का आज भी संग्रहालयों में प्रदर्शित है।
सभी सनातनियों से निवेदन है की पठानों कि झूठी कहानी नहीं अपने गौरवशाली इतिहास को जाने ताकि आने वाली पीढ़ी को हरि सिंह नलवा की तरह वीर योद्धा बनने की प्रेरणा मिले
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Vikramaditya ( 77 BCE - 15 CE )
(NOT CHANDRAGUPTA VIKRAMADITYA) was the first Chakravarti emperor of India, the empire spread to Arabia, Europe, Rome
The great king Vikramaditya, whose name is counted among the best kings of India, #Thread
and in his name Continues the year counting system of India, which we call 'Vikrami Samvat'.
In fact, Vikramaditya started the title of Chakravarti Emperor by the kings in India.
Vikramaditya's empire stretched from present-day India to Africa and Rome.
Vikramaditya was the first king to hoist victory over the entire Arab world of the present day.
King Vikramaditya comes from the few great kings of this era who became the emperors of the "Chakravarti" after performing the Ashwamedha Yagya.
‘संवत्सर’ यह संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है 'वर्ष' । हिन्दू पंचांग में ‘60 संवत्सर’ होते हैं।
भारतीय *पंचांग* प्रणाली के अनुसार, प्रत्येक ‘वर्ष’ का एक विशिष्ट नाम होता है, और प्रत्येक नाम का एक विशिष्ठ अर्थ! #Thread
जिस तरह प्रत्येक ‘माह’ के नाम नियुक्त हैं (जैसे चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन)
उसी तरह प्रत्येक आने वाले ‘वर्ष’ का एक नाम होता है। 12 माह के 1 काल को ‘संवत्सर’ कहते हैं और हर संवत्सर का एक नाम होता है।
संवत्सर तीन प्रकार के होते हैं एवं पाँच भाग होते हैं जिसमें सभी महीने पूर्णतः निवास करते हों।
भारतीय संवत्सर के पांच भाग हैं- सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास
तीन प्रकार हैं :
[1] सावन संवत्सर - यह 360 दिनों का होता है। संवत्सर का मोटा सा हिसाब इसी से लगाया जाता है।
“अलाउद्दीन खिलजी” की बेटी “शहज़ादी फिरोज़ा” जिसने हिंदू राजकुमार के लिए दी अपनी जान
जालौर के “वीरमदेव सोनगरा चौहान” की गौरवगाथा 🙏🏻🚩
क्यूँकि ये सच्चाई आपको कोई फ़िल्मकार बड़ेपर्दे पर दिखाने का साहस नहीं कर पायेगा, जबकि इसके विपरीत तो आपने कई फ़िल्मों में देखा होगा
1298 AD में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति अलुगखाखा और नसरतखां ने गुजरात विजय अभियान के लिए जालोर के कान्हड़ देव से रास्ता माँगा, परन्तु कान्हड़ देव ने आक्रांताओं को अपने राज्य से होकर आगे बढ़ने की इजाजत नहीं दी | अतः खिलजी के सेना अन्य रस्ते से गुजरात पहुंची
जब अलाउद्दीन खिलजी की सेना सोमनाथ मंदिर को तोड़ने के बाद मंदिर में रखे शिवलिंग को लेकर दिल्ली जा रही थी
जालोर के राजा कान्हड़ देव चौहान को शिवलिंग के बारे में पता लगा तो उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर हमला कर दिया। इस युद्द में खिलजी की सेना हार हुई
हिंदुओं के लिए 21 दिसंबर से 27 दिसंबर का समय गुरु परिवार और उनके सहयोगियों के बलिदान को याद करने और बच्चों को उनके शौर्य साहस को बताने का सप्ताह है न की Santa Claus के रूप में जोकर बन कर घूमने का और Christmas का जश्न मनाने का
परन्तु अफसोस है कि हम मुगल शासकों और अंग्रेजी हुकुमत की बरसों-बरस की गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी, उनके पिता गुरु तेगबहादुर जी, चारों बेटे ‘साहिबजादा अजित सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह और माता गूजरी जी के बलिदान को भुला बैठे हैं।
देश-धर्म की रक्षा की खातिर अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले गुरू साहिबान को याद करने का हमारे पास न तो समय है और न ही जरूरत है। दुःख तो तब भी होता है जब उनके बलिदान पे सार्वजनिक अवकाश की मांग नहीं की जाती और न ही सार्वजनिक आयोजन किए जाते हैं।
The Gayatri Mantra first appeared in the Rig Veda (Mandala 3.62.10), an early Vedic text written between 1100 to 1700 BCE. Rishi Vishwamitra is one of the sages who understood the complete power of Gayatri Mantra.
He has given us the version of the Gayatri Mantra which is recited by many and this is why he is called “Vishwa-Mitra”, the friend of the entire universe.
This mantra is chanted to worship Devi Savitri, the creator nature energy.
Goddess Gayatri is Veda Mata" or the Mother of the Vedas. Gaytri mantra is taken from Yajurveda Chapter 36 Mantra No.3.
Chandogya Upanishad (3.12.1), “Gayantam Trayate iti Gayatri” means that the person, who chants (Gayantam) Gayatri Mantra, is protected (Trayate) by Gayatri.