#Episode3 #PChina

“दुनिया में कई राजा, कई राजकुमार हुए जिन्हें हम भूल गये। मगर इस आम आदमी को हम आज भी याद करते हैं, और आने वाली कई पीढ़ियाँ याद करेंगी। उन्होंने हम पर भले राज नहीं किया, लेकिन उन महान संत ने हमें राह दिखायी।”
- कंफ्यू़शियस के पहले जीवनीकार सिमा चियान (145-91 ईसा पूर्व)

अगर कोई एक व्यक्ति और उसकी शिक्षा ढाई हज़ार वर्षों से अधिक तक चीनी जनमानस में कायम है, तो यह साधारण बात नहीं। कई राजवंश आए-गए, गणतंत्र आया, साम्यवाद आया, मगर आज भी चीन के स्कूली पाठ्यक्रम में कंफ्यूशियस मौजूद हैं।
टीवी पर नित्य कार्यक्रम आते हैं, कई गाँवों में सुबह-सुबह ‘डिजी गुई’ बजायी जाती है जो कंफ्यूशियस की शिक्षा का सरल रूप है। बीजिंग के निकट एक गुरुकुल है, जहाँ बच्चे कंफ्यूशियस के संकलनों का रट्टा मारते हैं।

कंफ्यूशियस का संपूर्ण कुलवृक्ष संजो कर रखा गया है,
और उनके बीस लाख से अधिक वंशज कोंग उपनाम लगा कर रखते हैं। उन पर बचपन से नैतिकता का दबाव होता है। अगर वे अपराधी निकल गए तो उन्हें कंफ्यूशियस जंगल के पारिवारिक क़ब्रगाह में दफ़नाने की इजाज़त नहीं मिलती। वे हर वर्ष आकर अपने पूर्वजों के क़ब्रगाह की सफाई करते हैं।
उनमें से कुछ को सरकार कर में छूट और सेना सेवा से मुक्ति भी देती है। अपनी 80वीं पीढ़ी के साथ यह दुनिया का सबसे बड़ा संरक्षित कुलवृक्ष है!

भला ऐसा क्या था कंफ्यूशियस में? वह न तो किसी धार्मिक पंथ के संस्थापक थे, न ही कोई क्रांतिकारी विचार के व्यक्ति। अगर उन्हें पढ़ा जाए,
तो पहली नज़र में वह एक दकियानूसी रूढ़िवादी किस्म के व्यक्ति लगते हैं। ऐसा व्यक्ति जो आगे बढ़ने के बजाय दुनिया को पीछे ले जा रहा हो। जो ईसा से पाँच सदी पूर्व भी यह कहे कि पुराने विचारों की ओर लौटो। आखिर कितना पीछे लौटें? मानव सभ्यता की शुरुआत तक?
यह पूरी दुनिया में ही ‘ब्रेनस्टॉर्मिंग’ का दौर लगता है। जिस समय चीन में कंफ्यूशियस और लाओत्से हुए, उसी समय भारत में बुद्ध और महावीर हुए, और अगली सदी तक यूनान में अरस्तू, सुकरात, प्लेटो आने शुरू हो गए। जैसे दुनिया सोचने को विवश हो रही है, कोई मार्गदर्शक ढूँढ रही हो।
एक बौद्धिक मंथन और चिंतन का दौर, जिसने कोई त्वरित बदलाव भले नहीं किया, लेकिन उसकी लहरें सदियों तक महसूस होती रही।

चीन में यह दौर ‘बसंत और पतझड़ काल’ (Spring and Autumn period) कहलाता है, जो चाऊ राजवंश के पतन के बाद आठ सदी ईसा पूर्व से शुरू हुआ।
चीन दर्जनों छोटे-बड़े राज्यों में बँट गया था, जो आपस में लड़ते रहते। उनमें कुछ राज्यों की पॉलिसी थी-

“बसंत में आक्रमण करो, पतझड़ में रक्षा करो” (Attack in spring. Defend in Autumn)

यानी बसंत हो या पतझड़, लड़ाई चलती ही रहेगी।
ऐसे समय में एक शी परिवार में कंफ्यूशियस का जन्म हुआ। शी समाज का भारतीय समानांतर कहना कठिन है। यह सर्वहारा से एक पायदान ऊपर और योद्धाओं या व्यापारियों से नीचे का समाज था। यह कुछ लिखा-पढ़ी का काम करते थे, तो मुंशी समाज कह लिया जाए।
कंफ्यूशियस चीन के एक छोटे राज्य लू में रहते थे,जिस पर पड़ोसी राज्य ची की गिद्ध दृष्टि थी। उन्हें यह लगने लगा कि चीन के ये राज्य आपस में लड़ रहे हैं और समाज पतित होता जा रहा है।परिवार के मूल्य घट रहे हैं।आदर्श ताक पर रखे जा रहे हैं। पारंपरिक रीतियों और व्यवहारों का क्षय हो रहा है
बड़े-बुजुर्गों और पूर्वजों का आदर नहीं किया जा रहा।

उन्होंने एक गुरुकुल शुरू किया जहाँ चाऊ राजवंश के पुराने रीतियों की ओर लौटने के लिए प्रेरित करना शुरू किया। उनके संकलन (analects) जो वर्तमान चीन में भी पढ़ाए जाते हैं, वह उपनिषदों की तरह प्रश्नोत्तर शैली में हैं।
उनके शिष्य प्रश्न पूछते हैं, और वह उत्तर देते हैं।

एक प्रश्न के उत्तर में कंफ्यूशियस कहते हैं,

“राज्य एक बड़ा परिवार है। राज्य सँभालने के लिए हमें अपने परिवार को सँभालना होगा। परिवार सँभालने के लिए हमें स्वयं को सँभालना होगा।”
उन्हीं दिनों पड़ोसी राज्य ची के राजा ने कंफ्यूशियस के राजा को अस्सी घोड़े और दर्जन सुंदरियों का लोभ दिया। वह राजा इस रिश्वत से डोल गए, और कंफ्यूशियस की शिक्षा धरी की धरी रह गयी।

कंफ्यूशियस को आभास हुआ कि संभवतः उन्हें पहले अपने परिवार को समझने की ज़रूरत है।
वह अपने राज्य से निकल कर देशाटन पर चल पड़े। उनके संकलन में एक कथन है-

“इसकी चिंता मत करो कि तुम्हें दूसरे लोग नहीं जानते। यह चिंता करो कि तुम दूसरे लोगों को नहीं जानते।”

(क्रमशः)

#WorldHistory #चीन_pj

©️ Praveen jha प्रवीण झा

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Jan 17
बनारस से चला गंगा विलास क्रूज छपरा में जाकर फंस गया क्योंकि छपरा में पानी कम था, दर्जनों विदेशी सैलानियो को क्रूज से उतारकर लाया गया, बाद में जेसे तैसे क्रूज चालू हुआ और आगे बढ़ा .....इस बात से एक सवाल खड़ा होता है कि क्या गंगा में पानी कम हो रहा है ?
ऐसी स्थिति में भी अडानी जी को गंगा से पानी खींचने की अनुमति दी जा रही है

जी हां ! ये बिलकुल सच है अडानी जी हर साल साहिबगंज में गंगा नदी से 36 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी को खींचेंगे, साहिबगंज में अडानी का जल-पंपिंग स्टेशन बनाया गया है जिससे पवित्र गंगा जल पाइप लाइन के जरिए 90
किलोमीटर दूर गोड्डा के पॉवर प्लांट तक भेजा जाएगा

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Jan 17
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यही नाम था, थोड़ा अजीब.. पर था तो क्या करें। तो भैया को एक बार गुफा में ध्यान करने की हुनक हुई। तो चल पड़े गुफा खोजने.. मिल भी गयी।

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Jan 17
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Jan 17
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Jan 17
#Preface #PChina

चीनी मूल के पहले व्यक्ति जिनसे मेरी मुलाक़ात हुई होगी, वह दरभंगा के एक दंत चिकित्सक डॉ. चैंग थे। मुझे मालूम नहीं कि उनके कौन से पूर्वज कब भारत आए, किंतु बिहार-बंगाल में ऐसे कई चीनी मूल के दंत चिकित्सक मिल जाएँगे। मुमकिन है कि उन्होंने भारत से डिग्री हासिल की हो,
लेकिन उनका चिकित्सकीय ढर्रा और उनके यंत्र खानदानी नज़र आते थे। वे अपने बोर्ड पर चाइनीज डेंटिल क्लिनिक लिख कर इस बात को वजन भी देते थे।

वहीं, उनकी क्लिनिक से कुछ किलोमीटर दूर शहर के दूसरी छोर पर हवाई पट्टी थी जो 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारतीय वायु सेना के अंतर्गत आ गयी।
हम कहानियाँ सुनते कि अगर भारत और चीन में युद्ध होता है तो बिहार के बिहटा और दरभंगा की वायुसेना यूनिट महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। हालाँकि ऐसी स्थिति बनी नहीं। अब उसका एक हिस्सा नागरिक हवाई अड्डा बन गया है।

बाद में मेरे कुछ जानकार डाक्टरी पढ़ने चीन गए,
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Jan 17
वर्षों तक बम्बई घूम घूम
पुणे गोआ में झूम झूम
सह धूप घाम पानी पत्थर
पांडव आये इस ओर निकल
सौभाग्य भी दिनभर सोता है,
ऐसा भी विन्टर होता है।

जाड़े की राह बताने को
आलू गर्म भुनवाने को
दुर्योधन को समझाने को
थर्मल सबको पहनाने को
भगवान हस्तिनापुर आये
कोहरे का संदेशा लाये
हो न्याय अगर तो काढ़ा दो
यदि इसमें भी कोई बाधा हो
तुम दे दो रम के 5 ड्राम
रखो अपनी बोतल तमाम
हम पनीर खुशी से खाएंगे
चिकन की आस न लगाएंगे

दुर्योधन वह भी दे न सका
एक्स्ट्रा पीनट तक ला न सका
उल्टा सबको सताने चला
बर्फीले हाथ छुआने चला
जब शीत भयंकर आता है
पहले हीटर मर जाता है
वोल्टेज ने भीषण फ्लकछुएट किया
हीटर का एलिमेंट ब्रेक किया
टपटप टपटप गिरते ओले
कंडे बन गए भीगे गोले
स्टोव जलाकर ताप मुझे
आ-आ इलेक्ट्रिशियन साध मुझे

यह देख कम्बल बिजली वाला
यह देख बोतल गर्मी वाला
मुझमें मिलता गीज़र का जल
मुझमें चलता ब्लोअर कल-कल
Read 5 tweets

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