(1) मैं चाहता हूं।
कि दुनिया का सब खाली स्थानों में लिख दिया जाय 'प्रेम'
और कह दिया जाय सब परीक्षकों से
कि प्रेम पढ़ने वाले
जिंदगी की परीक्षा में कभी फेल नहीं होते...।
(2) जनवरी के महीने में बैठा मैं
जून के उस दिन के बारे में सोच रहा हूं
जिस दिन के दोपहर में हवा बिल्कुल बंद थी
और बिजली न होने की समस्या से निपटने के लिए
मैं पेड़ के नीचे बैठा हाथ पंखा झल रहा था।
और आने वाले जून की उसी तारीख में
मैं आज के दिन को भी पक्का तौर पर इतनी ही सिद्दत से
याद करूंगा, जितनी सिद्दत से आज मुझे जून की वो तारीख याद आ रही है। (3) हर वो रास्ता जो मेरे घर से निकलता है
वो आगे जाकर तुम्हारे घर की ओर मुड़ क्यों नहीं जाता?
(4) बया घोसला बना रही है
बारिश भी आने वाली है
सामने डाल पर बंदर भी बैठा है।
पर मैने बया से कह दिया है
कि इस बार बंदर को उपदेश मत देना।
(5) सागर से अच्छा नल है
जिसके पास पीने का जल है।
(6) कबाड़ के ढेर पर रखी हुई किताबें
नतीजा हैं
खिलौना बंदूक से खेल रहे बच्चों के खूनी भविष्य की
(7) कटे हुए जंगल में
पेड़ों के ठूंठ पर
उड़ रही तितलियां
इस भ्रम में हैं?
कि तुम आओगी
और सब फिर से गुलज़ार हो जाएगा।
(8) पहले वो मेरे मित्र थे
फिर बड़े आदमी हो गए
(9) एक पल में वह आदमी होता है
और दूसरे ही पल
कुत्ता, सियार, भेड़िया, बाघ, लोमड़ी
जंगल काटकर बसाई गई सभ्यता के बीच
भगाए गए जानवरों के कल्ले
फूटकर ऐसे ही बाहर आते हैं।
सभ्यता की दहलीज के इसपार और उसपार में
बस यहीं अंतर है
कि उस पार के सभी जानवर अपने वास्तविक रूप में ही रहते हैं।
(10) आदमी होना एक प्रक्रिया है
जिसके तमाम विशेषणों के बावजूद
उसमें कुछ न कुछ
अपवाद रह ही जाते हैं।
रेडियो का अविष्कार तो 1874 में हो गया था, मारकोनी को 1909 में नोबेल प्राइज भी मिल गया।
मगर यह महंगी तकनीक थी, पहले विश्वयुद्ध तक ज्यादातर फौजी संचार का माध्यम था। 1920 के दशक में इसका उपयोग नागरिक सम्प्रेषण के लिए होने लगा था।
रेडियो स्टेशन बनने लगे, और रेडियो अमीरों की शान हुआ। वैसे ही जैसे रामायण युग मे हमारे मोहल्लों में टीवी वाले घर की शान ऊंची होती।
तो 1933 में हिटलर जी सत्ता में आ गए, औऱ इसी साल लांच हुआ वॉक्सएम्फेनजर। हिटलर जी बड़े साइंटिफिक और इनोवेटिव जीव थे।
ई मेल और पोलॉरॉयड कैमरे वाली गप तो नही मारी, मगर किसी उद्योगपति के पर्सनल प्लेन से जर्मनी नापकर, एक दिन में चार-चार चुनावी रैली करने वाले, वे पहले जन-नेता अवश्य थे।
हिटलर साहब की वाक कला अद्भुत थी। सम्मोहक .. बस यूं समझिये की मोजार्ट की सिम्फनी।
आज जब सो कर उठा तो अपने अंदर एक दिव्य ज्ञान का आभास हुआ ।
मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं सामने वाले का दिमाग पढ़ सकता हूं ।
सामने वाले के मन में क्या है और वह मेरे बारे में क्या सोच रहा है
एक चमत्कार था मेरे अंदर ।
सुबह जब आंख खुली तो सबसे पहले घर में पले हुए डॉगी को देखा ,
मैंने उसका दिमाग पढ़ लिया वह कह रहा था ,,, अबे उठ कुंभकरण की औलाद हम क्या तेरे बाप के नौकर हैं जो सारी रात जागकर घर की रखवाली करेंगे ।
मैंने भी मन ही मन धर्म पाजी को याद किया और बोला " कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा "।
अंगड़ाई लेता हुआ जैसी बाहर बालकनी में आया
सामने जवान और खूबसूरत पड़ोसन अपनी बालकनी में झाड़ू लगा रही थी
उसने मुस्कुराकर मेरी तरफ देखा मैंने उसका दिमाग पढ़ा ,,, वह कह रही थी सुबह-सुबह किस ठरकी का मुंह दिख गया । हमेशा लार टपकाता रहता है कैस्टो मुखर्जी जैसी शक्ल है और खुद को शाहरुख खान समझता है ।
विनाश की एक लीला उत्तर बंगाल और सिक्किम में भी रची जा रही है।
तीस्ता नदी पर बनते बांधों के बारे में कई बार लिखा है जो बनने के दौरान ही कई बार बह चुके हैं और करीब सौ से ज्यादा लोगों की जान ले चुके हैं और जिनके कारण सर्दियों में तीस्ता एक सुंदर नदी के स्थान पर सड़ता नाला दिखने
लगी है।
अब उसी स्थान से सेवोक गंगटोक रेल लाइन का निर्माण शुरू हुआ है जिसमें भी अब तक दस से ज्यादा श्रमिकों की मृत्यु हो चुकी है, पहाड़ धंसने से। ये बहुत कच्चे पहाड़ हैं और यहां वर्षा का औसत प्राय: 3600 एमएम वार्षिक है। कई बार तो 24 घण्टे में ही 200 एमएम तक बारिश हो कर
भयंकर भू स्खलन होता है और सिलीगुड़ी गंगटोक सड़क बंद हो जाती है।
सुरक्षा के नाम पर ही इसे चौड़ा किया जा रहा है और इसी का नाम ले कर ये रेलवे लाइन बनाई जा रही है। सड़क चौड़ी करने में भी भयंकर भू स्खलन हो रहा है।
भाई, आप अपनी विदेश नीति में दूरदर्शी और दृढ़ सुधार लाकर
बरसो से यह सवाल घुमड़ता रहा है।उनकी गतिविधियां, पास मिले दस्तावेज,फोटोग्राफ, हस्तलिपि के बारे में जितनी अफवाहें बनी, उस पर किसी सरकार ने कोई टिप्पणी नही की।
नेहरू जिम्मेदार थे, हर बुराई के...तो उनकी पार्टी की सरकारें कभी यह खुलासा नही करेंगी।
आठ साल के अबाध कार्यकाल में इस मिस्ट्री का खुलासा मोदी सरकार ने नही किया।
कोहिनूर हीरा लाना सम्भव नही, अखण्ड भारत सम्भव नही, विश्वगुरु तो कोई पद नही होता, 5 ट्रिलियन की इकॉनमी भी अभी दशक भर नही होने वाली।
कम से कम रेनकोजी मन्दिर में रखी हड्डियों का डीएनए टेस्ट ही ला दो। जार्ज पंचम की मूर्ति के लिए बनी खाली छतरी में मूर्ति बिठाने से बड़ा अवदान यह भारतीय जनमानस के लिए होगा।
पर अगर जापान सरकार सहयोग न करे, तो भारतीय सीमाओं के भीतर बसे फैजाबाद के मालखाने में बंद,