बादशाह_वजीर_और_सियार (जनश्रुति)
सुना है ... शाम ढलते ही जब सियारों ने हुक्का हुवाँ शुरू किया तो बादशाह ने वजीर से पूछा -
" सियार क्यों चिल्ला रहे हैं।"
वजीर भी स्वतंत्र भारत के नौकरशाह टाइप ही था उसने तपाक से उत्तर दिया।
"हुजूर इन्हें ठंड लग रही है इसलिए चिल्ला रहे हैं।"
बादशाह को ये सुनकर बड़ा दुःख हुआ। सत्ता अक्सर जनता के दुखों में दुखी हो ही जाती है। फिर जनहित की योजनाएं बनती हैं। धनों का आवंटन होता है। यहाँ भी वही हुआ।रातों रात धन का आवंटन हुआ। सियारों को कंबल बांटने के लिए संविदाएं मंगाई गई। ठेका उठा...ड्रामा लंबा चौड़ा हुआ पर ठेका अंततः
बादशाह के छोटे भाई और दामाद को ही मिला। मंत्री जी को प्रतिवाद के लिए उनका हिस्सा पहले ही दे दिया गया। रानी के लिए हार और राजा के लिए मुकुट की भी ब्यवस्था की गई। बचा खुचा धन ठेकेदारों ने हड़प लिया।

सियारों ने तो फिर चिल्लाना ही था वे फिर चिल्लाये।
पर बादशाह रोज़ रोज़ उनकी सुने ये कोई जरूरी तो है नहीं...। आखिर वो वी आई पी है।

दो चार दिन बाद एक शाम बादशाह फिर बैठे थे तो उन्होंने सुना कि सियार फिर चिल्ला रहे हैं। वैसे भी सिंहासनों तक जनता की आवाज कभी कभी ही पहुंचती है। यहाँ भी पहुंची तो उन्होंने वजीर को तलब किया।
"कि जब सियारों को कंबल बांटने के लिए धन का आवंटन कर दिया गया तो अब सियार क्यों चिल्ला रहे हैं।''

वजीर इससे पहले भी कई जांच आयोगों में प्रमुख रह चुका था। उसे बादशाह के मूड का पूरा अंदाजा था। उसने तपाक से उत्तर दिया। "हुजूर आपने इन्हें कंबल बंटवाया था न इसीलिए
खुशी में अब ये आपको आशीर्वाद दे रहे हैं।"

वो जो परंपरा किसी काल्पनिक बादशाह ने शुरू किया था। वो अब तक कायम है। सियारों को कंबल अब भी बांटे जा रहे हैं और वो अब भी बादशाह को दुआ देने के लिए रात रात भर हुक्का हुवाँ चिल्लाते रहते हैं।

#चित्रगुप्त

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Jan 29
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अडानी ग्रुप की चरमराती वित्तीय हालत पर एक "सीरियस नोट" है..👇

अडानी ग्रुप की 5 कम्पनियों के लिए "शॉर्ट टर्म देनदारी" चुकाना किसी भी वक़्त एक चुनौती बन सकता है क्योंकि इन 5 कंपनियों के पास "ज़रूरत के मुताबिक़ कैश" नही है.."शॉर्ट
टर्म देनदारी" का मतलब 1 साल की देनदारी है..

इन 5 कंपनियों के नाम है
1. अडानी ग्रीन
2. अडानी पॉवर
3. अडानी टोटल गैस
4. अडानी ट्रांसमिशन
5. अडानी इंटरप्राइजेस

तो फिर आजतक इन कंपनियों का काम कैसे चल रहा है? सीधी सी बात है, जब तक दुकान चल रही है
सब ठीक है..जिस दिन "चेन" टूटी उसदिन बैंकों के लोन तो दूर की बात है "चाय पानी का बिल" भी पेमेंट नही होगा..

ये बात अडानी की बैलेंसशीट के आंकड़ों से पता चलती है..कोई कहानी नही बनाई गई है..कोई भी शख़्स ख़ुद इन कंपनियों की बैलेंसशीट चेक कर सकता है
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Jan 29
मुगल मुगल का जाप जो करते रहते हो,
दिल से राम राम इतना किया होता तो मोक्ष मिल जाता

मुगल तो बहुत पहले साफ हो गए अकबर या औरंगजेब के खानदान का कोई नजर नहीं आता राजनीति में भी नहीं है कोई पार्षद भी नहीं,न टीपू सुल्तान के न लक्ष्मी बाई के,ये सब अंग्रेजों से लड़े
बहुत राजा नवाब चमचे थे ब्रिटिश के,सिर्फ भारत में 642 राजाओं को मिलाने में बहुत मुश्किल आई,कश्मीर,जूनागढ़,हैदराबाद में मुस्लिम थे,लेकिन जोधपुर और जैसलमेर के राजपूत राजा जिन्ना के साथ एग्रीमेंट करके पाकिस्तान जाना चाहते थे,जिन्ना ने उन्हें हर सुविधा देने का वायदा किया था,
इधर नेहरू गांधी पटेल से ज्यादातर राजा डरते थे मेनन पटेल और माउंटबेटन के दबाव से जोधपुर के और जैसलमेर के राजा तैयार हुए,भारत में विलय के लिए दस्तखत करने के बाद जोधपुर के राजा इतने क्रोधित हुए कि मेनन के सर पर पिस्तौल तान दी,माउंटबेटन के समझाने से माने,एक पेन के अंदर पिस्तौल फिट थी
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Jan 29
तीसरा झटका आया यूरोपीय यूनियन से...

पहले बीबीसी डाक्यूमेंट्री और उसके बाद प्रधानमंत्री के चहेते कॉरपोरेट गौतम अडाणी समूह के खिलाफ अमेरिकी संगठन हिंडनबर्ग द्वारा जारी धोखाधड़ी, जालसाजी की रिपोर्ट के धक्के से मोदी सरकार अभी संभल भी नहीं पायी थी कि फ़िनिश ग्रीन लीग की राजनीतिज्ञ
और यूरोपीय संसद की सदस्य अल्विना अलामेत्सा ने भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन का मामला उठाकर मोदी सरकार को शर्मसार कर दिया है।

यूरोपीय संसद की सदस्य अल्विना अलामेत्सा ने कहा है कि भारत के इतिहास में संविधान का लागू होना एक महत्वपूर्ण क्षण था, लेकिन इस देश में वर्तमान में
मानवाधिकारों के उल्लंघन का साया छाया हुआ है।

अलामेत्सा के अनुसार उन्होंने हाल ही में पहली बार भारत का दौरा किया, जहां उन्होंने भारत के लोकतंत्र और मानवाधिकारों की स्थिति पर चर्चा करने के लिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, अधिकारियों, पत्रकारों और विद्वानों से मुलाकात की।
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Jan 29
राहुल गांधी 1 महीने पहले डॉ रघुराम राजन को एक इंटरव्यू में कहते है : "संसद के सिक्योरिटी गार्ड, जो कि उनके दोस्त भी है, भी अडानी के शेयर ख़रीद रहे है..ये ख़तरनाक है"..इसी नुक़्ते से मेरी बात पेश ए ख़िदमत है..
अगर आज की तारीख़ में मेरे पास अडानी के शेयर होते तो मैं क्या करता? मैं अपने कॉमन सेंस का इस्ते'अमाल करता..

- "Falling Knife" या'अनि गिरता हुआ धारदार चाक़ू कभी नही पकड़ना..अडानी के शेयर इस वक़्त "Falling Knife" है..चाक़ू कितना नीचे जाएगा ये किसी को नही मा'लूम..
पकड़ने पर हाथ कट सकते है..

- अगर किसी इन्वेस्टमेंट से मेरी रात की नींद ख़राब होती है तो अगली सुब्ह मैं अपने इन्वेस्टमेंट को रिव्यु करूँगा..अगर कॉन्फिडेंस बनता है तो ठीक है वरना बेच कर अपनी नींद को सही कर लूंगा..
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Jan 29
थ्रू स्ट्रगल टू द स्टार्स..

संघर्ष के रास्ते, सितारों तक। दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज का ये एंथम है- लोगो पर लैटिन में लिखा है- पर अरुदा दे अस्त्रा

बच्चियों को सँघर्ष के रास्ते, सितारे तक ले जाने के लिए हिंदुस्तान का पहला मेडिकल कॉलेज ,आज भी दिल्ली के दिल,
कनॉट प्लेस में स्थित है।

जिस देश मे स्त्री शिक्षा, परदे और हिजाब तले कुचली जाती हो, वहां 1918 में लड़कियों का मेडिकल कॉलेज खोलने वाली लेडी हार्डिंग का योगदान, किसी मायने में सावित्री बाई फुले से कम नही।
लेडी हार्डिंग की एक गन्दी आदत थी। वो मुगलिया आर्किटेक्चर की फैन थी।
दिल्ली और आसपास, वे मुगलिया इमारतों को देखने जाती। बड़ा प्रभावित हो जाती।
उनके पतिदेव, लार्ड हार्डिंग भारत के वाइसराय थे। उसी वक्त रायसीना में नई दिल्ली बस रही थी। लुटियन और बेकर, तमाम भवनों के डिजाइन बना रहे थे। वाइसराय हाउस, याने आज का राष्ट्रपति भवन इस दिल्ली का सबसे पहला
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Jan 29
आगे:
महात्मा गांधी की हत्या के तुरंत बाद आरएसएस समर्थकों द्वारा मिठाई बांटने की रिपोर्ट थी। फ़रवरी 24 1948 पर एक भाषण में, पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि“कुछ स्थानों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया गया ।
वे अच्छी तरह से जानते हैं कि झंडा नीचा दिखाकर वे खुद को गद्दार साबित कर रहे हैं।

”तीन रंग – सफेद आरएसएस (1948-1950)महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस और उसके वैचारिक भाई हिंदू महासभा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। जनता का रुझान और भावना उनके खिलाफ हो चुकी थी ।
सरदार पटेल चाहते थे कि आरएसएस अपने तरीके का परित्याग करे और राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल हों । पटेल के लिए, तिरंगा झंडा “एक धर्मनिरपेक्ष समाज का प्रतीक था”।सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर 1948-49 के दौरान लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए रखी शर्तों के बीच
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