एक बार पंडित जी, बाऊ साहब, लाला जी और रैदास जी कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें गन्ने का खेत दिखा तो चारों ने एक -एक तोड़ लिया चूसते हुए चलने लगे। कुछ दूर आगे जाने के बाद उन्हें खेत का मालिक मिल गया। उसने इन्हे गन्ना चूसते हुए देखा तो अंदर ही अंदर बहुत
गुस्सा हुआ। लेकिन ये चार थे वो अकेला था। मजबूरी में कुछ बोल न पाया और इनके साथ साथ बातचीत करते हुए चलने लगा।
थोड़ा चलने के बाद ही बातों बातों में उसने इन चारों की जाति पता कर लिया। फिर क्या था उसने अपनी चाल चलनी शुरू कर दी आखिर वो भी नाई का बेटा था, एक कहावत भी है
मनई में नौवा और पंछी में कौवा।
उसने बोलना शुरू किया -- "का रे अधम आदमी..." उसने रैदास को संबोधित किया था।
"ये तो पंडित जी हैं जन्म से लेकर मरण तक हमारा काम इनके बिना नहीं चलता, दूसरे ये बाऊ साहब हैं कहीं कोई जरूरत पड़े तो लाठी लेकर आ जायेंगे, तीसरे ये लाला जी कभी पैसा रुपया कम
पड़े तो उधार वगैरह दे देते हैं। इन लोगों ने गन्ना तोड़ा तो ठीक है कोई बात नहीं लेकिन तूने क्यों तोड़ा रे..." इतना कहकर वह रैदास जी के ऊपर जुट गया। बाकी तीनों का उसने तारीफ कर रखा था इसलिए ये कुछ नहीं बोले और उस बेचारे का कचूमर निकल गया।
जब नाई रैदास जी को मारकर थक गया तो आकर फिर इन तीनों से बात करने लगा। अब बारी लाला जी की थी। उसने कहा -- "का रे ललवा! पंडित जी और बाऊ साहब तो ठहरे धर्मात्मा आदमी इनकी कोई बात नहीं, पर तू तीन देता है फिर तीस वसूलता है तेरी कैसे हिम्मत हो गई गन्ना तोड़ने की?"
पंडित जी और बाऊ साहब की तारीफ हो रखी थी इसलिए वो इसबार भी नहीं बोले और उसने लाला जी को मारकर धुस्स कर दिया।
नाई यही नुस्खा दोहराता रहा और अंत में पंडित जी की भी पिटाई करके वह अपने घर चला गया।
कहने का तात्पर्य ये कि जो लोग आ आ कर तुम्हारी जातियों की दुहाई देते हैं और तुम्हें सातवें आसमान पर चढ़ा देते हैं दरअसल ये सब उसी नाई के भाई बंधु हैं इनका मकसद और कुछ नहीं बस तुम्हें मारकर धुस्स कर देना है।
तो बहनों और भाइयों एक रहो नेक रहो
दिल दो किसी एक को वह भी किसी नेक को
यह कोई तोहफा नहीं जो बांटते रहो हरेक को (अज्ञात)
"क्या वामपंथ को सामाजिक न्याय से खतरा है!" किसी साथी ने सवाल किया है ?
उनके लिए मेरा जबाब:-- सामाजिक न्याय की अवधारना एक सुधारवादी प्रक्रिया है,बाम पंथ के लिए सामंती -अर्ध सामंती समाज में जनवादी कार्यभार है जिसे पूंजीवादी पार्टियों की अपेक्षा बामपंथियों ने काफी अधिक उठाया.
लेकिन इसके साथ साथ जिस तीव, निर्मम और निर्णायक वर्ग संघर्ष तथा वैचारिक सघर्ष को चलाने की आवश्यकता थी वह संशोधनवादी- पूंजीवादी भटकाव के कारण पूंजीवाद और पूंजीवादी पार्टिययों के प्रभाव को बढ़ाता गया. लेफ्ट मजदूर और गरीब किसानों के हितों के बजाए धनी किसानों और पूंजीवाद के विकास
का हमराही बन गया. पूंजीवादी सत्ता में भागेदारी ने इसे जन आंदोलनों के नायक की जगह जनता पर दमन करने वाला खलनायक बन दिया. इसके नेता और कार्यकर्त्ता ngo के हिस्सेदार बनने लगे और जातिवादी गिरोहों के गुलाम, आज इनमें अधिकांश मार्क्सवाद, लेनिनवाद के वर्ग संघर्ष को छोड़कर post modernism
नियम, जो न्यूटन भी न बता पाए..😜👻
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👉नियम 1
यदि आप एक लाइन में भीड़ देखकर किसी दूसरी
लाइन में चले जाएं, तो वह लाइन तेज़ गति से आगे
बढ़ने लगेगी, जिसमें आप अब तक खड़े थे...😜
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👉नियम 2
जब भी कोई औजार हाथ से छूटेगा, वह हमेशा उस
जगह पर पहुँचेगा, जहाँ आपके हाँथ की पहुँच सबसे
मुश्किल होगी...😜
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👉नियम 3
जब भी आप पूरी तरह भीग चुके होंगे, टेलीफोन
की घंटी उसी समय बजेगी...😜
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👉नियम 4
किसी परिचित से आपकी मुलाकात की
संभावना उस समय सर्वाधिक होती है, जब आप
किसी ऐंसे शख्स के साथ हों, जिसके साथ आप
देखा जाना नहीं चाहते...
मतलब प्रेमिका के साथ किसी पार्क में बैठे हो और उसी समय किसी परिचित से सामना हो जाय ...😜
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👉नियम 5
जब आपके हाथ ग्रीस से पूरी तरह सन चुके होंगे,
आपकी नाक में खुजली शुरू हो जाएगी...😜
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👉नियम 6
टेलीफोन का नियम,
जब भी आप कोई राँग नम्बर डायल करेंगे, वह एन्गेज
कभी नहीं मिलगा।...😜
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और था उसका मेहनतकश नेता। जून की 6 तारीख जब मुंह अंधेरे ही अमेरिकी, कनाडियन और ब्रिटेन के फौजी, दो हजार शिप, फिग्रेट, डिस्ट्रॉयर्स, में सवार होकर नारमण्डी के तट पर पहुचे।
उनका स्वागत गोलियों की बौछार से हुआ।
1942 तक हिटलर की ताकत अपने उरूज पर थी। पूरा यूरोप मुट्ठी में था, आधा रूस कदमो में। ब्लित्कृग़ज़, याने तेज अचानक हमले की नीति से दुनिया स्तब्ध थी। सभ्य दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य..
हिटलर इसका बादशाह था। वो नाजी पार्टी का मुखिया भी था, सरकार का प्रमुख था, सेना का प्रमुख था,
विदेश नीति का प्रमुख था... अथाह ताकत-
अथाह जिम्मेदारी।
सफलता के साथ समस्या भी आती है। इतिहास में इतना लंबा समुद्र तट किसी के पास नही था। रशिया की अब तक हुई जीत ने विशाल भूभाग उनके कदमो में दे दिया था।
दर्जन भर देश ऐसे थे, जो कहने को आजाद थे।
ज़रा आढ़ती की मदद करा संतोषी माता
महान कवि प्रदीप उर्फ़ राम चन्द्र द्विवेदी की आज जयंती है । " हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के .... जैसे दर्जनों सार्थक गीत रचने के बाद उन्होंने जीवन के उत्तरार्ध में एक वाहियात काम किया ।
संतोषी माता फिल्म के गाने लिख कर अंध विश्वास के प्रसार में मदद करी । दरअसल संतोषी माता कोई थी ही नहीं । पुराणों - आख्यानों में उसका कोई उल्लेख नहीं मिलता । वह 1973 के आसपास इसी फिल्म की वजह से अवतरित हुई । 1971 के बांग्ला युद्ध की वजह से मंदी छा गयी ,
और आढ़तियों का गुड़ सड़ने लगा । आढ़ती स्वयं प्रोड्यूसर थे । संतोषी माता की कथा रची गई और फिल्म हिट हो गयी । संतोषी का प्रसाद गुड़ नियत किया गया । आढ़तियों का सड़ा गुड़ हाथ के हाथ बिका ।
संतोषी व्रत में खटाई निषिद्ध थी । जबकि संतोषी का रोल करने वाली एक्ट्रेस घर में चीनी
अरे दरवाजे पर बाबा आए हैं कुछ दे दो इनको
अरे मैं अखबार पढ़ रहा हूं तुम देख लो
अखबार में कौन से अच्छे दिन ढूंढ रहे हो 2 मिनट लगेंगे कुछ पैसे दे दो बाबा को ।
क्या मुसीबत है संडे के दिन भी चैन से नहीं बैठने देती हो
अच्छा देखता हूं
बच्चा दे दे कुछ बाबा को तेरी सब मुसीबतें टलेगी , तेरे सब बिगड़े काम बनेंगे
अलख निरंजन
आओ बाबा आओ इधर बैठ जाओ अभी खाना देती हूं ।
भूखे साधु बाबा को खिलाएगी बच्चा तेरा घर अन्न से भरा रहेगा
बाबा यह दुआएं पुरानी हुईं , पूरी दुनिया को अन्न खिलाने वाले किसान आजकल खुद भूखे हैं ।
गरीबी की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं
कर्ज में डूबे हुए हैं ।
अरे तुम भी यह बाबा से कैसी बातें कर रहे हो , जाओ तुम अखबार ही पढ़ो
मैं दे दूंगी खाना
मुझ किसान को समझा रहे हो भाई साहब ?
क्या क्या कहा बच्चा से सीधा भाई साहब , और तुम किसान ?
अडानी घोटाले में यकायक "IT सेल" ने अज़ीम प्रेमजी साहेब और उनकी कंपनी Wipro को निशाने पर लिया है..व्हाट्सएप घूम रहा है कि 'अज़ीम प्रेमजी साहेब के NGO अडानी को बरबाद करना चाहते है..शायद अब अडानी घोटाले में मुस्लिम एंगल लगाने की पुरज़ोर कोशिश होगी..
मोदी साहेब, आप देश की हर बैंक अडानी पर लुटा दीजिए..आपको कोई नही रोक सकता..पर 'अज़ीम प्रेमजी साहेब के ख़िलाफ़ बकवास को रोकिए..दुनियां मु'आफ़ नही करेगी..
मोदी साहेब, आपकी आने वाली 1000 पुश्तें और अडानी साहेब की 10,000 पुश्तें भी 'अज़ीम प्रेमजी साहेब की पांव की धूल की
'इज़्ज़त बराबर भी नही हो सकती..इस सच को मान लीजिए..
"IT सेक्टर" को कांग्रेस ने बनाया और आज हिंदुस्तान का IT सेक्टर दुनियां में हुकूमत करता है..अगर मज़हबी नफ़रत के लिए IT सेक्टर को कोई नुक़सान होता है तो कटोरा भी नसीब नही होगा..