यहाँ तुलसी ने लिखा है कि निषाद वेद और लोक दोनों में सब तरह से नीच हैं। #तुलसीदास_पोलखोल
अर्थ: (वे कहते हैं-) जो लोक और वेद दोनों में सब प्रकार से नीचा माना जाता है, जिसकी छाया के छू जाने से भी स्नान करना होता है, उसी निषाद से अँकवार भरकर (हृदय से चिपटाकर) श्री रामचन्द्रजी के छोटे भाई भरतजी (आनंद और प्रेमवश) शरीर में पुलकावली से परिपूर्ण हो मिल रहे हैं॥2॥ आगे पढ़िए
यहाँ देवताओं के मुँह से निषादराज को जगत में सबसे नीच और वशिष्ठ को महान कहलाया गया है।
अर्थ - श्री रघुनाथजी की भक्ति सुंदर मंगलों का मूल है, इस प्रकार कहकर सराहना करते हुए देवता आकाश से फूल बरसाने लगे। वे कहने लगे- जगत में इसके समान सर्वथा नीच कोई नहीं और वशिष्ठजी के समान बड़ा कौन है?॥4॥
मूल और अनुवाद दोनों गीता प्रेस प्रकाशित ग्रंथ से है। 2022
आदमी ये सब सुनता है। फिर सुनाने वाले के पैर छूता है और ऊपर से उसको पैसे भी देता है। मानसिक दासता का ये चरम रूप है। इससे मुक्ति ज़रूरी है।
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
ये ट्वीट 🧵विभाजन की त्रासदी के मारे, भारत में रह रहे दो करोड़ नागरिकता-विहीन, अभागे लोगों के बारे में, जो पाकिस्तानी फ़ौज से पीटकर 1971 के आसपास बांग्लादेश से आए। सरकार को चाहिए कि मिशन मोड में इनको नागरिकता दे। भारत के अलावा उनका कोई देश नहीं है। ⬇️ @narendramodi@RahulGandhi
बांग्लादेश की पाकिस्तान से आजादी भारत के लिए भी एक गौरवशाली क्षण था. 1971 का वह दृश्य देखकर भारत के लोगों का सीना आज भी चौड़ा हो जाता है, जिसमें लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा पाकिस्तान के 90,000 फौजियों से आत्मसमर्पण करवा रहे हैं.
भारत के पास इस युद्ध में शामिल होने का एक तर्क था. पाकिस्तान के अत्याचार के कारण बड़ी संख्या में बांग्ला भाषी शरणार्थी सीमा पार करके भारत आ रहे थे. इनकी संख्या इतनी ज्यादा थी कि अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ रहा था. ये लोग अलग-अलग शहरों में बिखर गए थे और इससे अराजकता फैल रही थी.
राम तुलसीदास के आराध्य है। ठीक है। उनको जितना बड़ा बताना हो बतायें। ये लेखक के लिए उचित भी है। लेकिन माता शबरी को इसके लिए “पापों की जन्मभूमि” कहना कितना सही है? तुलसीदास शबरी का कोई दोष या अपराध भी नहीं बताते। सिर्फ़ जन्म का संयोग है।
यही नहीं, तुलसीदास खुद शबरी के मुख से कहलवाते हैं:
पानि जोरि आगें भइ ठाढ़ी। प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी॥
केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी। अधम जाति मैं जड़मति भारी॥
The liberation of Bangladesh in 1971 was a major victory for India 🇮🇳. However, a crucial aspect was left unfinished - the 1971 refugees.
I urge all the political parties to come together and grant them citizenship with a sense of urgency. Thread 🧵 @narendramodi@RahulGandhi
The images of 90,000 Pakistani soldiers surrendering in front of Lt Gen Jagjit Singh Arora is still cherished as one of the most enduring images in India’s collective memory. But during this time of glory, the Indian state conveniently ignored one very important project.
The rulers of India at that time, decided not to give citizenship rights to the East Pakistan refugees. This made lakhs of sons and daughters of Partition “nowhere people.” To date, India does not have a national refugee policy.
अर्थात् “जगत में पुण्य एक ही है, (उसके समान) दूसरा नहीं। वह है- मन, कर्म और वचन से ब्राह्मणों के चरणों की पूजा करना। जो कपट का त्याग करके ब्राह्मणों की सेवा करता है, उस पर मुनि और देवता प्रसन्न रहते हैं॥”
- रामचरितमानस, उत्तरकांड, 7.45. गीता प्रेस
तुलसीदास की नीचता ये है कि उन्होंने ये बात राम दरबार में सीधे राम के मुँह से कहलवाई है ताकि भोली-भाली जनता सवाल न करे। तुलसीदास ने हिंदू समाज को खंड खंड करने में बड़ी भूमिका निभाई है और फिर ये किताब उन्होंने अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल को भेंट कर दी।
Adani Group directly employs 30,000 Indians, indirectly employs 3.5 lakh+ via contractors/suppliers. Regulators should do their job, but one should not demonise Adani based on report from US research firm not allowed to publish such research for US companies. #Adani#Hindenburg
Fitch and Moody's, two prominent rating agencies, affirm their stance and state that there is no reason for them to alter their rating for Adani's stocks. According to them, the company's cash flows is fine.
Goldman Sachs and JP Morgan both advised their clients to invest in the bonds, citing the strength of Adani's assets. No fear. No nothing.
तुलसीदास की रामचरितमानस जन-जन तक कांग्रेस के दौर में पहुँची। रामचरितमानस को स्कूल और कॉलेज सिलेबल और फिर दूरदर्शन के माध्यम से घर-घर तक पहुँचाने में बीजेपी या आरएसएस की कोई भूमिका नहीं थी। पूरा पढ़िए 🧵
रामचरितमानस का भौगोलिक क्षेत्र यूपी के दसेक ज़िले यानी अवध है। उसके बाहर हर किसी को बताना पड़ता है कि जो लिखा है, उसका मतलब क्या है। आज भी मेवाड़ और हरियाणा से लेकर बुंदेलखंड और मैथिली से लेकर छत्तीसगढ़िया अंचल का कोई आदमी रामचरितमानस की लाइनों का मतलब नहीं बता सकता।
फिर रामचरितमानस पूरे उत्तर भारत में कैसे पहुँची?
उसमें 20वीं सदी के प्रारंभ के “हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान” के राजनीतिक प्रोजेक्ट का हाथ है। 1906 में मुस्लिम लीग बन चुकी थी। हिंदू महासभा भी थी और कांग्रेस हिंदुओं की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी थी। ये तय हो चुका था कि भारत बंटेगा।