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Feb 13 27 tweets 6 min read
दो रुपए
ठिठुरन भरी सुबह में ट्यूशन पढ़कर लौट रहे बच्चे एक हाथ अपनी जेब में डाले और दूसरे हाथ से साइकिल का हैंडल सम्हाले झुंड में जोर जोर से बातें करते और ठठ्ठा लगाते जा रहे थे। सड़क किनारे थोड़ी थोड़ी दूर पर घर बने हुए थे। कुछ भैंसें और गायें सड़क के दोनो ओर बंधी हुई थीं।
अलसाए लोग मवेशियों को चारा पानी देते गोबर उठाते इधर से उधर आते जाते दिख रहे थे। औरतें सड़क किनारे बर्तन मांज रही थीं। कुछ छोटे बच्चे साइकिल का टायर छोटे डंडे से मारकर चला रहे थे। शकुन भी उनमें से एक था।
राम सरन पत्नी और मां की हजारों गालियां खाकर अब बिस्तर से उठा था।
मुंह फैलाते हुए तीन चार अंगड़ाइयां लेने के बाद उसने अलगनी पर टंगी अपनी पैंट की जेब को खंगाला और खाली हाथ बाहर निकल कर पत्नी से पूछा -
"मेरी पैंट की जेब में दो रुपए रक्खे थे तुमने निकाला क्या?"
"मैं तुम्हारे पैसे निकालकर क्या करूंगी?
तुम हो ही बड़े कुबेर के नाती जो तुम्हारी जेबों में पैसे भरे रहते हैं और मैं उसमे से निकालती रहती हूं।"
"मैने ये कब बोला यार? मसाला खाना था वही ढूढ़ रहा था।"
"खाओ मसाला खूब खाओ अभी देखा है कि पड़ोस का ही संतोष कुमार कैंसर से मरा है लेकिन आंख नहीं खुली इनकी?
मसाला खाने से बढ़िया है जहर ला दो मैं ही खा लेती हूं।"
पत्नी को गुस्से में देखकर वह कुछ नहीं बोला सीधे बाहर आया और वहां खेल रहे बेटे से पूछने लगा -
"शकुन भैया पैंट की जेब में दो रुपए रक्खे थे उसे निकाला है क्या? थोड़ा मसाला खाना था वही ढूढ़ रहा था।
निकाला है तो बता दो कुछ ले लिया हो तो भी कोई बात नहीं लेकिन ऐसे चोरी करना बुरी बात हैं न?"

"नहीं पापा मैंने नहीं निकाला... मैं कोई मसाला तो खाता नहीं हूं जो आपके दो रुपए निकालूंगा।" शकुन ने जवाब दिया और फिर खेलने लगा।
राम सरन थोड़ी देर घर के बाहर खड़ा कुछ सोचता रहा फिर ढाबली की ओर चल पड़ा। ढाबली थोड़ी ही दूर थी। जहां सबेरा होते ही पान मसाला गुटखा बीडी सिगरेट लेने वालों की भीड़ शुरू हो जाती थी। दुकान एक बूढ़ी अम्मा चलाती थीं। उनकी रोजी रोटी का जरिया वही दुकान ही थी, लेकिन जब भी कोई पान मसाला
या गुटखा लेने आता तो वो एक बात जरूर कहती थीं 'लो खाओ और मरो'। कई लोगों को उन बूढ़ी अम्मा का ये तकिया कलाम ऐसा रट गया था कि वो उनके बोलने से पहले ही कह दिया करते थे लो खाओ और मरो। बूढ़ी अम्मा सामने वाले की बात सुनकर हंसती और फिर वही वाली दोहरा देती लो खाओ और मरो।
लो खाओ और मरो में ऐसी प्यार भरी उलाहना छुपी हुई रहती थी कि कोई उनकी बात का बुरा नहीं मानता था बल्कि हंसते हुए निकल जाता था।

रामसरन उनके पास पहुंचा और कुछ दूर खड़ा होकर किसी और के आने का इंतजार करने लगा। क्योंकि बोहनी नहीं हुआ कहकर उसे वापस कर दिए जाने का डर भी लग रहा था।
जब उसके सामने एक ग्राहक आकर चला गया तो वह ढाबली पर पहुंचा और बूढ़ी अम्मा से इधर उधर की बातें करने लगा।

उधार लेने वालों की ये खास बात होती है कि वो बातों में पहले दुनिया भर की सैर कराता है फिर जाकर अंत में मुद्दे की बात पर आता है।
अनुभवजन्य दुकानदार उधार वालों की इस आदत से बखूबी परिचित होते हैं इसलिए रामसरन ने जैसे ही बातों को घुमाना शुरू किया बूढ़ी अम्मा बोल पड़ीं, "लेना क्या है वो बताओ उधार लेने आए होंगे इसीलिए बातें बना रहे हो…"

"अरे अम्मा वही मसाला खिला दो सुबह से सर घूम रहा है।"
"लो खाओ और मरो, कोई अच्छी चीज तो तुम लोग खाओगे नहीं बस यही है गू गोबर खाओ और पचर पचर थूको…"

एक बार मैने बूढ़ी अम्मा की बात सुनकर पूछा था। "अम्मा अगर आपको पान मसाले से इतनी ही नफरत है तो फिर आप बेचती ही क्यों हो?"
अम्मा ने अपना पेट दिखा दिया था "पापी पेट का सवाल है भैया ये न बेचूं तो क्या करूं?अब इस उम्र में कहां जाऊं मजदूरी करने कौन रखेगा मुझे काम परऔर दूसरी बात ये कि मेरे नहीं बेचने से ये कोई बिकना बंद तो हो नहीं जाएगा। खाने वाले तो खाएंगे ही,मैं बेचूं या कोई और बेचे क्या फर्क पड़ता है
बाप ने उम्र भर की बढ़ईगीरी से सड़क के किनारे जमीन लेकर नींव भरवा दिया था। बेटे ने उसमे मिट्टी भरवाकर एक तरफ दीवार खड़ी कर दी थी और उसी पर छप्पर डालकर रहने भी लगा था। राम सरन भी बढ़ईगीरी के काम में माहिर था लेकिन गांव में हर रोज काम तो मिलता नहीं था।
महीने में दस पांच दिन का कहीं मिल जाता था वो भी बड़ी मशक्कत के बाद। वह परदेस जाकर कमाई करता था तब ठीक ठाक कमाई हो जाती थी लेकिन बीवी और बच्चों को छोड़कर जाने की उसकी हिम्मत न होती थी। वह एकाध बार गया भी था लेकिन महीने दो महीने में ही भाग आया था।
रामसरन पढ़ा लिखा नहीं था। उसकी घरवाली ने भी कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था, फिर भी उन्होंने हम दो हमारे दो वाले नुस्खे का शब्दशः अनुपालन किया था। उनके दो ही बच्चे थे। बड़ा बेटा था उसका नाम शकुन था और दूसरी बेटी थी जो शकुन से छोटी थी उसका नाम गुड्डी था।
शकुन सड़क पर टायर चलाते हुए भागा तो सामने से आ रही मोटर साइकिल ने उसे ऐसी टक्कर मारी कि वह फुटबॉल की तरह उछलकर जमीन पर गिर गया। मोटरसाइकिल वाला टक्कर मारकर फरार हो गया था। गुड्डी ने देखा तो उसने हल्ला मचाया। रामसरन भी मसाला खाकर घर आ गया था और छप्पर के नीचे लेटा था।
वह भागकर आया उसके साथ ही उसकी बीवी भी भागकर आ गई थी। शकुन सड़क पर बेहोश पड़ा था। तुरंत ही रोना चिल्लाना शुरू हो गया। आसपास वाले भी दौड़कर आ गए। जा रहे राहगीर भी तमाशा देखने के लिए जुटने लगे। लोगों की भीड़ देखकर हर आने जाने वाला अपनी मोटर साइकिलें और साइकिलें वहीं खड़ी करके रुक
जाता था।छोटे घरों में कोई आपदा अकेले नहीं आती वह कई आपदाओं को साथ लेकर आती है। बच्चे को हस्पताल लेकर जाना था लेकिन पैसों की समस्या मुंह फैलाकर सुरसा की तरह सामने खड़ी हो गई। बेटा बेहोश सामने पड़ा था और रामसरन अपनी जेबें टटोल रहा था। रकम कितनी मिल सकती थी ये बात उसे भी पता थी
फिर भी वह अपनी सभी जेबें उल्टी करके उसमे ढूढ़े जा रहा था।
उसकी बीवी ने भी अपनी कान की बाली और नाक की नथनी निकालकर एक कागज मे पुड़िया बनाकर रामसरन की जेब में डाल दिया था। उसका घर गांव से बाहर होने के कारण ज्यादा लोग आसपास रहने वाले भी नहीं थे।
बगल का इकलौता घर था जिसके मालिक काम पर जा रखे थे। उसकी मालकिन कह रही थीं वह होते तो और कुछ इंतजाम हो जाता मगर अभी यह पांच सौ ही हैं इसे रखो बाद में वह आयेंगे तो तो उन्हे और लेकर भेज दूंगी।
घर के पीछे खेत में काम कर रही बच्चे की दादी भी भागकर आ गई थीं।
उन्होंने भी अपने हाथों में पहनी चांदी की चूड़ियां उतार कर रामसरन के हवाले कर दिया था। बच्चे की मम्मी अपनी संदूक खोलकर उसमे से भी कुछ ढूंढ रही थीं। शायद कुछ रखे हुए गहने थे जिसे निकालकर वह रामसरन को देना चाहती थीं।
औरतें गहने नहीं खरीदती दरअसल वो संपत्तियां जोड़ती हैं, जो उनके गाढ़े वक्त में काम आ सके। आज उनके घर में पुरानी टंगी किसी पैंट की जेब से कोई कील निकल रही थी तो किसी तकिए के अंदर से पुरानी पायल। जब बेटे की जिंदगी का सवाल हो तो पूरा परिवार कैसे
पाई पाई जोड़ लेता है ये सब आसानी से देखा जा सकता था।
गुड्डी दरवाजा पकड़े एक टांग पर खड़ी थी। उसका दूसरा पैर दरवाजे के ऊपर था। वह अपनी मां और दादी को अपने गहने ढूंढ कर देते हुए देख रही थी। रामसरन बेटे को गोदी में लिए बैठा किसी साधन का इंतजार कर रहा था।
जिसपर वह बेटे को लेकर हस्पताल तक जा सके। वह बार बार बेटे का मुंह अपने गालों से लगाकर उसके शरीर की गर्मी को महसूस करने की कोशिश कर रहा था। कुछ उत्साही लड़के आने जाने वालों को रोककर उनसे मदद मांगने की कोशिश कर रहे थे।
किसी राहगीर ने एक एक जानपहचान की जीप वाले को फोन कर दिया था वह फौरन आ गया। रामसरन बेटे को लेकर उसमे बैठ गया। जीप चलने ही वाली थी कि गुड्डी ने आवाज दी पापा रुक जाओ एक मिनट...।
लोग असमंजस में उसे देख रहे थे। गुड्डी दौड़कर आई। उसने अपने हाथों में छुपाए एक एक रुपए के दो सिक्के उनके हाथों में रख दिए।

#चित्रगुप्त

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Feb 14
नीचे फोटो ध्यान से देखिये....पिछे बैठे है तीन चिलमची एक कानूनची...सब मोदी मोदी कर रहे हैं . संसद को भाँड़ मंडली बना दिये हैं भँड़वे.....

मित्र के महाघोटाले पर महामानव का महामौन!

अडानी की कंपनियों में पैसा लगा रहीं शेल कंपनियों का कच्चा चिट्ठा जिन पर सन्नाटा छाया है:
1. इलारा नाम की कंपनी ने अडानी की कंपनी में 24,766 करोड़ निवेश किया है जो उसकी कुल पूंजी का 99% है।

2. Monterosa Investment Holdings ने अडानी की कंपनियों में लगभग 37,000 करोड़ रुपया निवेश किया।

3. Emerging Market Investment नाम की कंपनी जिसमें एक भी कर्मचारी नहीं है,
अडानी पॉवर में 8,200 करोड़ रुपये का निवेश करती है।

4. क्रिस्टा फंड्स ने 674 मिलियन डॉलर गौतम अडाणी की कंपनी में निवेश किया जो उसकी कुल कैपिटल का 89.5% है।

5. एपीएमएस इन्वेस्टमेंट फंड ने 18,986 करोड़ रुपया गौतम अडाणी की कंपनी में निवेश किया जो उसकी कुल पूंजी का 99.4% है।
Read 8 tweets
Feb 14
ख़बर ये है कि पूरा "अडानी गैंग" पिछले एक हफ़्ते से अबुधाबी में डेरा डाले बैठा है..अडानी गैंग "अबुधाबी इन्वेस्टमेंट ऑथोरिटी" (ADIA) और दूसरे 'अरबी शेख़ इंस्टिट्यूशन से 8000-10,000 करोड़ का इन्वेस्टमेंट मांग रहा है..
'अरबी अब तक पैसा लगाने तैयार नहीं है..'अरबियों को मुम्बई एयरपोर्ट, भारत के पोर्ट वग़ैरह पसन्द है..पर भारत के पोर्ट, एयरपोर्ट राष्ट्रीय सुरक्षा का मु'आमला है..अडानी को बचाने देश के पोर्ट, एयरपोर्ट कैसे बेचे जा सकते है?
अडानी मुसलमानों के पास क्यो गया? मोदी ने NRI को देश की ताक़त बताया था..अडानी को तो "हाऊडी अडानी" जैसा एक इवेंट करना था और मोदी उस इवेंट में बोलता : "अबकी बार अडानी सरकार"..
Read 4 tweets
Feb 14
करीब 12 सौ करोड़ की लागत से दुर्गम घाटियों और पहाड़ियों की बीच 13-14 साल में बनाने वाली जम्मू से कटरा रेल लाइन का उद्घाटन प्रधानमंत्री बनाने के महज दो महीने बाद 4 जुलाई 2014 को करते हुए मोदीजी ने कहा...

-देश की पिछली सरकारों ने 70 साल में कुछ नहीं किया...
16 अगस्त 2014 को देश में ही निर्मित जंगी जहाज INS कोलकाता को राष्ट्र को समर्पित करते हुए मोदीजी दहाड़े...

-देश की पिछली सरकारों ने 70 साल में कुछ नहीं किया...

24 सितंबर 2014 को मंगलयान के मंगल पर पहुंचने पर एक बार फिर मोदी जी ने हुंकार भरी...
-देश की पिछली सरकारों ने 70 साल में कुछ नहीं किया...

भारतीय नौसेना के सबसे ताकतवर युद्धपोत आईएनएस कोच्चि को 29 सितम्बर 2015 को देश के हवाले करते हुए मोदीजी चिल्लाये....

-देश की पिछली सरकारों ने 70 साल में कुछ नहीं किया...
Read 7 tweets
Feb 14
वैलेंटाइन डे की बधाई
बधाई उनको
जो प्रेम में पड़कर तोतले हुए
और उनको भी जो तोतले होने की कगार पर हैं।

वे जो सब छोडछाड़ कर सीमाओं पर गए
और हव्य हो गए अपने पर्स के गैलरी में अपनी प्रेमिका की तस्वीर लगाए लगाए
कुछ लाल पीले गुलाबों के साथ बधाई उनको भी।
थोड़ी सी बधाई उन गायों को भी
जो दुहकर छोड़ दी गईं
और जो कूड़े के ढेरों में मुंह मारने को संतप्त हैं।

बधाई उन सांड़ो को भी
गाय जिनकी माता है लेकिन जिन्हें
सिर्फ दूध पीना आता है।

बधाई उन समस्त जीव प्रजातियों को
जो बीते साल विलुप्त हुए
या इस साल विलुप्त होने वाले हैं।
बधाई उन बुजुर्गों को
जो वृद्धाश्रमों की शोभा हैं
और जिनके बच्चे पांच सितारा कंपनियों के स्टार

बधाई उस नव प्रसूता मां को
जो अपनी बच्ची को बेबी बैग में लादे
खाने की डिलीवरी करती है।

बधाई उस कलूटी स्त्री को जो भट्टे के लिए
ईंटे थापती है
सुखाती है
फिर चिमनी में लगाती है।
Read 6 tweets
Feb 14
तोब्रुक गिर चुका है।
" पिछले पखवाडे मे सैनिक बदकिस्मतीयों ने युद्ध के हालात पूरी तरह से बदल दिये है।हमने पचास हजार से ज्यादा जवान खो दिये हैें रोमेल 400 मील आगे बढ चुका है। और अब वो नील नदी के उपजाउ डेल्टा की तरफ बढ रहा है। इन घटनाओ के नतीजे कितने घातक होंगे, कहा नही जा सकता"
ब्रिटिश पार्लियामेण्ट मे चर्चिल की आवाज गूंज रही है।
पिछले प्रधानमंत्री नेविल चेम्बरलेन, हिटलर को समझने और सम्हाल पाने मे गच्चा खा गए थे। पूरे वक्त चर्चिल पार्लियामेण्ट मे शरमिंदा करने वालों मे सबसे आगे थे। पहले से ही हिटलर के खिलाफ सैनिक अभियानों की वकालत करते रहे थे।
जब चेम्बरलेन ने इस्तीफा दिया, चर्चिल को जिम्मेदारी मिली, और वे आज, इसमे फेल चुके थे।
1942 की जून तक, युद्ध लड़ते प्रधानमंत्री चर्चिल को दो साल हो चुके थे। लंदन पर दिन रात बम गिर रहे थे। एम्पायर का जलवा खत्म होने को था। हिटलर यूरोप का मालिक हो चुका था,
Read 8 tweets
Feb 14
ये सबसे बड़ा लॉस है।
हमारी सोसायटी में 5% लोग ही अर्थकर्म "चलाते" हैं। बाकी 95% महज उसे "चलाने में मददगार" होते हैं, इनकी नौकरी करते हैं।
जाने वाले 5% वो लोग हैं, जो वेल्थ क्रियेटर हैं। ध्यान दें, ये NRI पासपोर्ट वाले लोग नही है, ये वीजा लेकर पढ़ने-नौकरी के लिए जाने वाले
लोग भी नही है। ये नागरिकता "पूरी तरह छोड़ने" वाले लोग हैं।
ये वो हैं, जिन्होंने अन्यत्र सिटिजनशिप खरीदी है। सेटल्ड हैं, वेल ऑफ हैं, विदेशी नागरिकता खरीदने में सक्षम हैं। अर्थात, उस देश की इकॉनमी में हैवी इन्वेस्टमेन्ट का ऑफर देते हैं।
वहां सब्सटेंशियल वैल्यू की प्रॉपर्टी या बिजनेस खोलते हैं।
एक व्यक्ति अपने 10 करोड़ रुपये भी साथ लेकर गया, तो 2.25 लाख व्यक्ति से गुणा कर लें। सरकार के साल भर के बजट से ज्यादा है। लीगली लेकर गए। कोई सरकार, क़ानूम, भाषण, देशभक्ति इन्हें रोक नही सकता।
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