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Feb 21 19 tweets 4 min read
आई हैवन्ट डाइड येट !!!
लन्दन की पार्लियामेंट स्क्वेयर पर टहलते हुए अचानक गांधी दिख गए। बेहद आश्चर्य हुआ।ब्रिटिश क्राउन का सबसे बड़ा ज्वेल, हिंदुस्तान जिस इंसान ने अंग्रेजों से छीन लिया, उस शख्स की तांबे से बनवाई गई सजीव मूर्ति, उन अंग्रेजो ने अपनी संसद के सामने..
सबसे आइकॉनिक लोकेशन पर लगाई हुई है।
इस मूर्ति की पहले जानकारी न थी, कहीं पढ़ा न था। खोजबीन की, तो मालूम हुआ कि, 2015 में ही यह मूर्ति लगी है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन ने, गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के शताब्दी वर्ष पर इसका अनावरण किया था।
क्या विडंबना है, कि जिस दौर में जब गांधी को हिंदुस्तान से नकारने की आंधी उठी, तब दुनिया में उनकी स्वीकृति बढ़ती जा रही है।
और ये वैश्विक गांधी, भारत के आइकन नही है। भुलावे में न आइये। यह सिर्फ गांधी की निजी शख्सियत है, यह उनका दैवत्व है। भारत, तो उस शख्स का महज रंगमंच है।
गांधी का सम्मान,दुनिया मे भारत का सम्मान नही है। उस शख्स की सहृदय स्मृति है,जिसके बारे में आइंस्टीन ने कहा- "आने वाली पीढियां यह विश्वास नही करेंगी,कि हाड़ मांस का ऐसा शख्स कभी इस धरती पर हुआ था"
रामचन्द्र गुहा ने 2013 में गांधी की जीवनी लिखी,जिसके प्रचार के लिए अमेरिका गये थे
किताब उनके बिस्तर पर थी, कमरा साफ करने आये होटल के कर्मचारी ने किताब की तस्वीर देखी और पूछा- यह युवा गांधी हैं न??
वकील की पोशाक में, जवान गांधी को किताब के कवर पर पहचाने जाने से विस्मित गुहा में हामी भरी। कर्मचारी में कहा- मेरे देश मे गांधी का बड़ा सम्मान होता है।
अब पूछने की बारी गुहा की थी- तुम्हारा देश कौन सा है??
"डोमिनिकन रिपब्लिक" - जवाब आया।
तो गांधी ने डोमिनिकन रिपब्लिक का नाम शायद कभी न सुना होगा। लेकिन डोमिनिकन रिपब्लिक को गांधी का पता है।
वह जानता है कि सत्य, अहिंसा, प्रेम, सहिष्णुता औऱ सत्याग्रह, गांधी के सन्देश हैं।
यह आदिम जमाने के बुध्द, और ईसा के संदेशो की मौजूदा दौर में सततता है। इन संदेशो का मूल एक है। गांधी का फलसफा, किसी देश में, किसी दौर के सफल पॉलिटिशियन की यादगार स्पीच नही। यह एक जीवन है, जीवन शैली है।
जिस शताब्दी में दुनिया ने दो महायुद्ध देखे।
जब भाषा, धर्म, रंग, रेस के आधार पर उच्चता की लड़ाई में मानवता विनाश के मुहाने तक जा चुकी थी, उस वक्त गांधी की बातें उसे वापस मनुष्यता की तरफ लौटा लाती हैं।

तो यूरोप, अमेरिका, जर्मनी, रूस, इटली समेत तमाम यूरोप अगर गांधी को मानवता की रिसेंट मेमरी का मसीहा समझता है।
तो इसका भारत से लेना देना नही है।
गांधी की महानता, उस निर्भीकता में है, जिसे उन्होंने प्रश्रय दिया। महान वही है, जिसकी महानता आपको आतंकित नही करती। जिसकी आप आलोचना कर सकते हैं।

100 सालों से गांधी की अहिंसा को कमजोरी, और स्त्रैण बताया गया है।
उनके राजनैतिक निर्णयों पर सवाल हुए, रेसिस्ट कहा गया। यौन व्यवहार पर टिप्पणियां हुईं। गांधी पर तो हर किस्म का विमर्श खुला हुआ है।

चीन में माओ, पाकिस्तान में जिन्ना, वियतनाम में होची मिन्ह की आलोचना का विमर्श खुला नही है। आप लिंकन और बेंजामिन फ्रैंकलिन पर सवाल कर नही सकते।
लेकिन गांधी, नकारने के लिए भी उपलब्ध हैं। उन्हें मानिये, या न मानिये। आपकी मर्जी है..

लेकिन आप जानते है कि गांधी से दूर जाता हर मार्ग भयावह है। वह नफरत, दुश्मनी, और विनाश की ओर लेकर जाता है। कौतुक में आप कुछ दूर जाते हैं, औऱ फिर खून का गुबार देख लौट आते हैं।
आप मनुष्य है तो आपको गांधी की ओर ही लौटना है।
क्योकि गांधी आपकी ताकत है। गांधी, भीरुओ की ताकत है।

एक आम भीरू, डरपोक, शांति चाहने वाला इंसान जो विरोध से डरता है। क्रांति से डरता है, हथियार उठाकर आगे बढ़ने से डरता है। वह कानून, पुलिस, जेल, सरकार और मौत से डरता है।
गांधी उसे वहीं से उठाते हैं।
उसे अहिंसक रहते हुए, निडरता से दिल की बात कहने का आग्रह करते हैं। आपमे यह निडरता, भीतर के सत्य से आती है, कर्तव्य बोध जागने से आती है। दूसरों के दर्द को महसूस करने, और उसे दूर करने की जिम्मेदारी से आती है।
गांधी के हथियार मनोवैज्ञानिक है।वह चरखा कातने को कहते है, कपड़ो की होली जलवाते हैं, नमक बनवाते हैं।ये मामूली काम, प्रतिरोध का प्रतीक, क्रांति का हथियार बनाकर बापू, जनमानस को थमा देते हैं।अब भीरू से भीरू आदमी, जो हथियार उठाने से डरता है, हत्या करने से डरता है, बम नही चलाना चाहता.
तकली चलाता है। उसकी तरह लाखों चलाते हैं।
चरखा ही सबका रंग है, मजहब है, भाषा है। यह एकीकृत प्रतिरोध है। यह कोई अपराध नही, लेकिन आप जेल भी चले जाएं, तो भीतर कोई अपराध बोध नही। गर्व होगा। जब जेल जाना गर्व की बात बन जाये, तो उस कौम को कब तक दबाया जा सकता है।
इसलिए बूंद बूंद प्रतिरोध से बना सागर, उस ब्रिटिश साम्राज्य को बहाकर ले जाता है, जिसके इलाके में सूर्य अस्त नही होता था।
उसी पार्लियामेंट स्क्वेयर में विंस्टन चर्चिल की भी मूर्ति लगी है। जिस प्रधानमंत्री ने युद्ध लड़े, साम्राज्य बचाया, बनाया। वही चर्चिल, जिसने वार
एफर्ट के लिए बंगाल का चावल ब्रिटेन मंगवाकर, बंगाल के 4 लाख लोगों को भूखा मरने पर मजबूर कर दिया।
और जब इन मौतों की सूचना प्राइमिनिस्टर तक पहुँची, तो फाइल नोटिंग पर पूछा- देन वाय हैवन्ट गांधी डाइड येट ???
लेकिन गांधी मरा नही। वह फैल गया, दुनिया के हर कोने में। आज जितने देशो में गांधी की मूर्तियां लगी है, उस साम्राज्य में सूरज अस्त नही होता।
उसे भारत से हटाने की कोशिशें है। लेकिन वह जरा भी हिलता नही। वह अपने कातिलों से निगाहें मिला रहा है, हिंदुस्तान में।
औऱ लन्दन में वो चर्चिल की उस पार्लियामेंट की ओर देखकर मुस्कुरा रहा है। आप सहसा सुन सकें, तो धीमी, गम्भीर सी आवाज आती है..

आई हैवन्ट डाइड येट!!!!

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Feb 23
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विदेश मंत्री
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