#ChandrasekharAzad#Thread
“O old woman, don't come here, your son was a thief-dacoit, so the Goras killed him, the Bhil standing there laughingly said to an old woman wrapped in a dirty dhoti who was collecting wood in the forest.”
No, Chandu has sacrificed his life for freedom, said the old woman proudly. The name of that elderly woman was Jagrani Devi. This mother lovingly called that son Chandu and the world freed him”. Yes, we all know him by the name of Chandrashekhar Azad.
After father's death, Azad's poor destitute old mother instead of reaching out to anyone, used to collect wood and cow-dung from the forests and kept feeding herself by selling sticks and wood. Shameful thing is that his condition continued till 2 yrs (1949) after independence.
After this, Sadashiv ji brought her with him to Jhansi, keeping his promise with Chandrashekhar Azad, but his house was very small, so he arranged for Azad's mother to stay at the house of another friend of Azad, Bhagwan Das Mahore. Managed and served them.
In March 1951, when Azad's mother Jagrani Devi died in Jhansi, Sadashiv ji himself performed her last rites. After the death of Azad's mother, the people of Jhansi built a bench in her memory at a public place in her name.
The then Congress government of the state declared this construction as an illegal and illegal work done by the people of Jhansi. But the citizens of Jhansi decided to install the statue of Chandrashekhar Azad's mother, not giving importance to that mandate of the government.
When the government came to know that the statue of Azad's mother has been prepared and many former revolutionaries including Sadashiv Rao, Rupnarayan, Bhagwan Das Mahor are going to install the statue with the help of the people of Jhansi.
So he declared the establishment of the statue of the immortal martyr Chandrashekhar Azad's Matashree as a threat to the country, society and law and order of Jhansi and banned the program of establishment and imposed curfew in the entire Jhansi city.
But the public and the revolutionaries together set out to install the statue of Azad's mother. The then government, shocked by this horrendous flying on the streets of Jhansi under its order, ordered its police to shoot Sadashiv.
But keeping the statue of Azad's mother on his head, Sadashiv, who was moving towards the back, was surrounded by the public from all sides. Then the police lathi-charged the procession. Hundreds of people were injured, dozens were crippled and some even died.
The statue of Chandrashekhar Azad's mother could not be installed. Even 5 feet of land was not found in the country for a 2-3 feet statue of that great mother for whom Azad had sacrificed his life.
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हत्या केस में गया जेल तो बना ईसाई, बाहर आकर करवाने लगा धर्मांतरण: दूसरी बार हुआ रेप का केस दर्ज।
जानें ‘यशु-यशु’ गाकर वायरल होने वाले पादरी बजिंदर सिंह की पूरी हिस्ट्री, दो मिनट का ये थ्रेड आपका होश उड़ा देगा, अंत तक पड़ें।
पंजाब के कपूरथला में 22 साल की एक महिला ने पादरी बजिंदर सिंह पर उसकी किशोरावस्था में यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई है। पंजाब की जालंधर पुलिस ने ईसाई प्रचारक बजिंदर के खिलाफ यौन उत्पीड़न, आपराधिक धमकी देने और पीछा करने का मामला दर्ज कर लिया है। जालंधर पुलिस ने रविवार (2 मार्च) को इसकी जानकारी दी।
पीड़िता का कहना है कि वह दिसंबर 2017 में पादरी बजिंदर सिंह की मंडली में शामिल हो गई थी। इसके बाद 2020 में ‘वर्शिप टीम’ का हिस्सा बन गई। पीड़िता का आरोप है कि इस दौरान बजिंदर ने उसका फ़ोन नंबर ले लिया और उसे अश्लील मैसेज भेजना शुरू कर दिया। उस समय उसकी उम्र 17 साल थी। पीड़िता का आरोप है कि साल 2022 में बजिंदर ने उसके साथ गलत हरकत की।
FIR में कहा गया है, “साल 2022 में उसने (बजिंदर सिंह ने) मुझे रविवार को अपने केबिन में बैठाने लगा। जब मैं अकेली होती तो वह मुझे जबरन गले लगाता और गंदे तरीके से छूता था। जब मैं कॉलेज जाती थी तो वह अपनी कार से मेरा पीछा करने लगा। वह धमकी देता था कि अगर मैंने उससे शादी नहीं की या इस बारे किसीको बताया तो वह मेरे माता-पिता और भाई को मरवा देगा।
पादरी बजिंदर सिंह के खिलाफ पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354A (यौन उत्पीड़न), 354D (पीछा करना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज कर लिया है। बजिंदर को जुलाई 2018 में पंजाब के जीरकपुर में एक महिला से बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उससे भी पहले वह हत्या के एक मामले में जेल में बंद था।
कहा जाता है कि बजिंदर सिंह हमेशा सूट-बूट में रहता है और 24 घंटे सिक्योरिटी में घिरा रहता है। पादरी बजिंदर सिंह अपने भाषणों के दौरान सुंदर लड़कियों पर नजर रखता था। बाद में उन लड़कियों को अपनी स्पेशल टीम में शामिल करता था। इसके पहले जिस लड़की के साथ उसने बलात्कार किया, वह भी बजिंदरकी सभाओं में जाती थी। वहीं बजिंदर ने उसे देखा और फँसाया था।
इसे सेव कर सुरक्षित कर लें, ऐसी पोस्ट कम ही आती है..
कैसे पहचानें कि दैवीय शक्ति आपकी मदद कर रही है...?? अंत तक जरुर पढ़े🧵
इन 11 संकेतों से कर सकते हैं आभास दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें उनके जीवन में दैवीय सहायता मिलती है। किसी को ज्यादा तो किसी को कम। कुछ तो ऐसे हैं जिनके माध्यम से दैवीय शक्तियां अच्छा काम करवाती हैं। सवाल यह उठता है कि आम व्यक्ति कैसे पहचानें कि उसकी दैवीय शक्तियां मदद कर रही है या उसकी पूजा-पाठ-प्रार्थना का असर हो रहा है? इन 11 संकेतों से हम इसको महसूस कर सकते हैं-
1. अच्छा चरित्र -
शास्त्र कहते हैं कि दैवीय शक्तियां सिर्फ उसकी ही मदद करती है, जो दूसरों के दुख को समझता है, जो बुराइयों से दूर रहता है, जो नकारात्मक विचारों से दूर रहता है, जो नियमित अपने इष्ट की आराधना करता है या जो पुण्य के काम में लगा हुआ है। यदि आप समझते हैं कि मैं ऐसा ही हूं तो निश्चित ही दैवीय शक्तियां आपकी मदद कर रही हैं। आपको बस थोड़ा सा इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि आप अच्छे मार्ग पर हैं और आपको ऊपरी शक्तियां देख रही हैं।
औरंगजेब भारतीय इतिहास में सबसे बड़ा दुष्ट, क्रूर लेकिन भगोड़ा था
ऐसे दुष्ट की महिमामंडन करने वाले मूर्खों को शिक्षित करने का समय आ गया है, जिनके पूर्वज संभवतः औरंगजेब की क्रूरता के शिकार थे।
यह एक मिनट का थ्रेड👇आपको सच्चाई से अवगत करा देगा बस एक मिनट का समय निकालिए और अंत तक पढ़िए।
🔹 अपने ही साम्राज्य को नष्ट कर दिया
औरंगजेब को दुनिया का सबसे अमीर साम्राज्य (₹40 करोड़ वार्षिक राजस्व, 24 करोड़ लोग) विरासत में मिला। 1707 में उसकी मृत्यु हो गई और उस साम्राज्य को दिवालिया, बिखरा हुआ और विद्रोहों से भरा छोड़ दिया। उनके अपने बेटों ने उनके मरने से पहले ही सिंहासन के लिए लड़ाई लड़ी।
🔹 औरंगजेब ने मराठों से लड़ने में 27 साल बिताए, उन्हें कभी नहीं हराया:
1681–1707: औरंगजेब ने व्यक्तिगत रूप से मराठों के खिलाफ युद्ध का नेतृत्व किया। बीजापुर और गोलकुंडा पर कब्ज़ा किया (1686-87) लेकिन मराठा प्रतिरोध को तोड़ नहीं पाए। मराठों ने उनके शिविरों पर छापा मारा, उनकी आपूर्ति काट दी और उन्हें लगातार अपमानित किया।
क्या आप जानते हैं की धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का बदला कैसे लिया गया और किसने लिया ?
यह दो मिनट का थ्रेड👇आपके रोंगटे खड़े कर देगा! बस दो मिनट का समय निकालिए और अंत तक पढ़िए।
छत्रपति संभाजी की हत्या के बाद औरंगजेब के सेनापति जुल्फिकार खान ने रायगढ़ पर कब्जा कर छत्रपति संभाजी की पत्नी येसु बाई और उनके पुत्र को भी कैद कर लिया जिसके बाद छत्रपति संभाजी महाराज के छोटे भाई राजाराम जी महाराज छत्रपति के पद पर विभूषित हुए।
छत्रपति संभाजी महाराज को औरंगजेब ने 40 दिनों तक भयंकर यातनाएं देकर मारा था। इस हाहाकारी मृत्यु ने मराठों के सीनों में आग लगा दी। उनके सारे मतभेद खत्म हो गए और सिर्फ एक ही लक्ष्य रह गया राक्षस औरंगजेब का सर्वनाश।
संगमेश्वर के किले में जब शूरवीर छत्रपति संभाजी अपने 200 साथियों के साथ औरंगजेब के सिपहसालार मुकर्रम खान के 10 हजार मुगल सिपाहियों के साथ जंग लड़ रहे थे, उस वक्त छत्रपति संभाजी के साथ एक और बहादुर योद्धा अपनी जान की बाजी लगा रहा था जिसका नाम था माल्होजी घोरपड़े। छत्रपति संभाजी के साथ लड़ते हुए माल्होजी घोरपड़े भी वीरगति को प्राप्त हो गए और माल्होजी घोरपड़े के पुत्र संताजी घोरपड़े ने ही अपने युद्ध अभियानों से औरंगजेब की नाक काट डाली और औरंगजेब को इतिहास में भगोड़ा भी साबित कर दिया।
क्या सती प्रथा का वास्तविक रूप वही है जैसा आज तक हमने पढ़ा या फिर कुछ और? अगर वास्तविक रूप कुछ और है तो फिर हमें गलत क्यों पढ़ाया गया और हमारी किताबों में गलत लिखा किसने?
सच जानने के लिए इस थ्रेड🧵को अंत तक जरूर पढ़ें।
सती प्रथा को जानने से पहले हमें यह जानना पड़ेगा कि वामपंथी इतिहासकारोंऔर लेखकों द्वारा इस प्रथा के पीछे क्या तर्क दिया जाता था और क्या-क्या कारण बताए जाते थे, यह जानना ज्यादा जरूरी है।
पहला तर्क: सती प्रथा के पीछे जो तर्क दिया जाता है उसमें पहला तर्क है माता सती का, जिन्होंने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर लिया था। इस प्रथा का नाम जिनके नाम पर रखा गया वह थीं माता सती।
महादेव और माता सती:
माता सती भगवान शिव की अर्धांगिनी थीऔर प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। अपने पिताद्वारा भगवान शिव का अपमान किए जाने परमाता सती अत्यंत क्रोधित हो गईं औरक्रोधावश यज्ञ की अग्नि में स्वयं को भस्मकर लिया।
परंतु यहाँ एक बात सोचने की है, कि मातासती के पति यानी भगवान शिव तो जीवितहैं, हालांकि वे भगवान हैं, शंभू (अर्थात स्वयंउत्पन्न होने वाला) हैं, उनका कोई अंत नहींहै, उनकी कोई शुरुआत नहीं है। अब इनवामपंथी इतिहासकारों द्वारा दिया गया तर्कतो तर्कहीन हो गया।
दूसरा, माता सती के साथ किसी नेजबरदस्ती नहीं की थी। उन्होंने पति केअपमान को स्वयं का अपमान मानकरअपनी इच्छा से स्वयं को भस्म किया था।जिस प्रथा के नाम का आधार वामपंथी इतिहासकारों ने माता सती को बनाया था वह आधार ही आधारहीन हो गया।
जब इनका पहला तर्क काम में नहीं आयातो इन्होंने दिया दूसरा तर्क, वह क्या था?
क्या आप जानते हैं कि महाराज छत्रपति शम्भाजी राजे को उनके ही रिश्तेदारों के विश्वासघात के कारण मुगलों ने पकड़ लिया था
यह दो मिनट का धागा आपके रोंगटे खड़े कर देगा! बस दो मिनट का समय निकालिए और अंत तक पढ़िए
छत्रपति संभाजी महाराज का 1689 में संगमेश्वर में पकड़ा जाना उनके ही रिश्तेदार के विश्वासघात का सीधा परिणाम था
वे अपने विश्वसनीय सलाहकार कवि कलश, अपने सेनापति म्हालोजी घोरपड़े, अपने बेटे संताजी घोरपड़े और खांडो बल्लाल के साथ स्वराज्य की सेवा करने वाले दो यादव भाइयों के बीच विवाद को सुलझाने के लिए संगमेश्वर में थे।
इस मामले में अपेक्षा से अधिक समय लग गया, जिससे रायगढ़ के लिए उनके प्रस्थान में देरी हुई।
संभाजी महाराज ने एक अवसर को भांपते हुए खांडो बल्लाल को महारानी येसुबाई को श्रृंगारपुर से रायगढ़ ले जाने के लिए आगे भेजा।
इस बीच, उनके बहनोई, गणोजी शिर्के, जो अपने वतन (पैतृक भूमि अधिकारों) से संबंधित विवाद के कारण मुगलों के साथ चले गए थे, मुगल सेनापति मुकर्रब खान (या शेख निजाम) को संगमेश्वर में एक गुप्त मार्ग से ले गए।