क को खंभे पर चढ़ना नहीं आता, क को तार जोड़ना भी नहीं आता, क को मेन और अर्थिंग के बीच का अंतर भी पता नहीं है। क को ये भी पता नहीं है कि लाइट आती कहां से है और जाती कहां है? लेकिन क के पास उपरोक्त सभी की डिग्री है, और डिग्री भी सरकारी संस्थान की है।
संस्थान भी ऐसे संस्थान जहां से अमीर बाप की बेकार संतानों को हुनरमंद होने का प्रमाण पत्र दिया जाता है। जिनके भरोसे सरकारी नौकरियां मिलती हैं। वही सरकारी नौकरियां जो बिना घूस के नहीं मिलती वही घूस जो बाप के अमीर हुए बिना नहीं आता...।
क की नियुक्ति हो गई। उसे मोटी रकम (उसके हुनर के हिसाब से) मिलने लगी। अब क ने अपनी जगह काम करने के लिए ख को रख लिया। वह ख जो हुनरमंद तो था लेकिन जिसके पास अपने हुनर को साबित करने के लिए डिग्री नहीं थी। वही डिग्री जो पैसा देकर मिलती है। वही पैसा जो उसके बाप के पास नहीं था।
अब क के वेतन के दसवांस से भी कम पैसों में ख काम करता है। वह कर भी रहा है क्योंकि वह नहीं करेगा तो उसकी जगह ग तैयार है। क्योंकि ग के पास भी हुनर तो है लेकिन डिग्री नहीं है।
अब ख और ग काम करते हैं, और क हड़ताल करते हैं। उन्हे अपने तनख्वाह में वृद्धि की चिंता है।
उन्हे अपने बच्चों के लिए नई डिग्री खरीद लेने की चिंता है। जिससे वो सरकारी जमाई बन सकें साथ ही ख और ग से काम भी ले सकें।
ख और ग क्या करते हैं? वो लाइट बनाते कम और बिगाड़ते ज्यादा हैं। क्योंकि बनाने से तो उन्हे पैसे मिलेंगे नहीं...। इसलिए वो बिगाड़ते हैं।
तार को जोड़ते भी ऐसे हैं जिससे वो जल्दी छूटें। उन्हे कोई फिर फोन करे वो फिर बनाने आएं और अपना चार्ज करें।
अब बात करते हैं जूनियर इंजीनियर की ... जो पैदाइशी हरामखोर हैं। इनके साथ भी वही क वाली समस्या है। इनके पास भी डिग्री तो है बाकी कुछ नहीं है। काम करने के नाम पर इनकी
नानी मर जाती है। कोई सुझाव हो तो उसे इन्हे लिखना नहीं आता। इनकी लाखों की तनख्वाह तो जैसे इन्हें जनता को सताने के लिए मिल रही हो? इन्हे फोन करो तो ये फोन नहीं उठाते। लाइट आने जाने की सूचना देते हुए इनके हाथों में दर्द हो जाता है।
सरकार जी ये जितने भी नमूने हैं इन सबको बर्खास्त करके नए ख और ग की नियुक्ति करो। हम दो चार दिन और बिना बिजली के रह लेंगे। लेकिन इनकी तनख्वाह बढ़ाकर इनकी हरामखोरी को और बढ़ावा देने का कदम तो बिलकुल भी मत उठाना...
चूंकि भारत में मूर्खता का स्वर्णकाल चल रहा है तो स्वाभाविक रूप से थम्ब ग्रेजुएट यानी अंगूठा छाप लोग विद्वान बनकर न केवल ज्ञान बघार रहे हैं, बल्कि दुनियाभर में आजमाई हुई चिकित्सा पद्धति—ऐलोपैथी को 'जुगाड़ सिस्टम' बता रहे हैं।
और, कमाल तो यह कि जब खुद की जान पर बन आती है तो इसी आधुनिक चिकित्सा पद्धति के सामने दंडवत लेट जाते हैं।
आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार की झौंक में संन्यासियों जैसे कपड़े पहनने वाले कॉरपोरेट धंधेबाज राम किसन यादव उर्फ रामदेव ने एक बार फिर एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली पर न सिर्फ सवाल
खड़े किये हैं, बल्कि इसे जड़ से खत्म करने का वचन भी दिया है।
उन्होंने कहा है कि लोग आयुर्वेद पर ज्यादा विश्वास कर रहे हैं जबकि एलोपैथी में केवल जुगाड़ से काम चलाया जा रहा है। एलोपैथी विदेशी गुलामी की संकेतक है। इसे मिटाना होगा।
नाम तो सुना ही होगा। वो जज, जिसने जवाहरलाल नेहरू के दांत खट्टे करके, उनका भ्रस्टाचार उजागर कर दिया। इसलिए न्यायमूर्ति छागला का नाम व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी में काफी लोकप्रिय ह।
आज हम व्हाट्सप की छागला डिश में रायता फैलाएंगे। तो आइए शुरू करते हैं।
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स्वाद खराब करने के लिए हम डिश में पहले पहले मुसलमान डालते हैं। तो भक्तजनों, छागला साहब का पूरा नाम मोहम्मद अलिकरीम छागला था।
बूहूहू..
और इतना ही नही, वो जिन्ना की मुस्लिम लीग से भी जुड़े थे। जिन्ना ब्रिलिएंट वकील थे, नेता थे, बाम्बे बार के मेम्बर थे ( व्हिस्की-रम वाला बार नहीं बे, वकील वाला बार) तो छागला साहब बचपन से ही जिन्ना बनना चाहते थे।
असफल देश ( Failure state ) और असफल सरकार का अंतर समझने के लिए पड़ोसी देश की गतिविधियों का अध्ययन करे फिर अपने गिरेबान मे झाँके।
सत्ता की हवस और सिर्फ चुनाव जीतने की ललक किसी काका ईदी अमीन को युगांडा के विनाश का कैसे जिम्मेदार बना सकता है।
पहला चुनाव अन्ना के फर्जीवाड़े से जीता गया और उससे पहले पशे पर्दा ताकतों से समझौते किये, उनकी तमाम शर्ते मानी विश्व बैंक के आगे घुटने टेके लेकिन पत्थर अक्ल असफल ही रहा।
अगली बार फिर वायदा किया, मुल्क बेचा, अलिफ़दानि के माध्यम से ट्रांसफर किया लेकिन किसी का भी भला नही कर सका
क्योकि समर्थक भी इनके जैसे थे और संस्थाओ मे भी अपने जैसे भर दिये।
ब्रिटेन में हमारे हाई कमीशन से हमारा तिरंगा उतारा गया, सरकार ने औपचारिक पत्र भेज कर फेक फोटो लगा दी जिसमे तिरंगे को बैनर की तरह दिखाया गया है ।
TMC, बसपा, YSR कांग्रेस, TRS, ओवैसी, BJD, AAP ये सारे दल विपक्ष है ही नही..इनका काम बीजेपी को मदद करना है..तो इनके बारे में जितनी कम बातें की जाए उतना बेहतर है..
अखिलेश यादव को इस "कैटेगरी" में नही डालना चाहता..अखिलेश यादव 60% विपक्ष है..
पर उनकी मजबूरियां भी है और उत्तरप्रदेश की राजनीति ज़रा अलग ढंग की है..वक़्त आने पर अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ ही रहेंगे..
क्या TMC या AAP या सपा एक दूसरे को अपने राज्य में 1 सीट भी देंगे? और दे भी क्यों? ये लोग अपने अपने राज्य में क़ाबिलियत रखते है और इनका विपक्ष कांग्रेस है..
विपक्षी एकता का कभी भी ये मतलब नही है कि एक दूसरे के साथ सीट का समझौता हो..विपक्षी एकता का सीधा सा मतलब है कि माहौल ऐसा बनाया जाए ताकि बीजेपी की शिकस्त हो..
इस माहौल को बनाने के लिए कांग्रेस, शिवसेना, राजद, नीतीश कुमार, शरद पवार काफ़ी है..UPA 2 ममताजी के बिना चली थी..