सत्य बहुत कडवा होता है और तथ्य बहुत क्रूर होते है, इन दोनों को झेल पाना हर किसी के बस की बात नही होती।
जानिये कुछ कडवी सचाइयां और कुछ तथ्य जो पंजाब और पुरे देश में फैलाए गये है।
1. पहला झूठ:- सिक्खो को आरक्षण नही मिलता...
सच:- सिक्खो मे केवल 25% आबादी जट्टो की है, (1/25)
जो सामान्य वर्ग मे आते है। बाकी के 75% सरदार रामदासिये और मजहबी सिक्ख है, जो दलित वर्ग मे आते है, इन्हे SC/ST का आरक्षण, तथा अनूसूचित जाति एवं जनजाती एट्रोसिटी एक्ट का पूरा संरक्षण भी मिलता है।
2. दूसरा झूठ:- सिक्ख धर्म मे ऊँच नीच, भेदभाव और जाति प्रथा नही है।
(2/25)
सच:- इससे बड़ी दोगली और बेतुकी बात हो ही नही सकती। पंजाब मे तो स्पष्ट विभाजन रेखा है।
रामदासियो और मजहबी सिक्खो के गुरूद्वारे अलग है, और जट्टो के अलग। जट्टो के गुरूद्वारे मे आज तक कोई मजहबी सिक्ख ग्रंथी नही बना है। ना ही बन सकता है।
गुरूद्वारे को तो छोड ही दीजिए, (3/25)
सेना की भर्ती मे भी आपको इस सामाजिक विभाजन की जड़े नजर आ जायेंगीं।
जट्ट-सिक्ख को केवल सिक्ख रेजीमेंट मे भर्ती किया जाता है, उसके लिए आपको जट्ट जाति का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होता है।
जबकि अन्य छोटी जातियां जैसे तरखान, जुलाहे, रामदासिये और मजहबी सिक्ख चाहकर भी (4/25)
सिक्ख रेजीमेंट मे भर्ती नही हो सकते।
उनके लिए अलग से रेजीमेंट खडी की गई है जिसे सिख लाइट इन्फेंट्री बोलते है।
अपने नरवणे साहब उसी रेजीमेंट से है। कुल मिलाकर जट्ट को सिख लाइट इन्फेंट्री मे भर्ती नही किया जाता और मजहबी तथा रामदासिये सिक्ख (दलित सिक्ख) रेजीमेंट मे भर्ती (5/25)
नही हो सकते।
3. तीसरा झूठ:- जातिगत भेदभाव।
सच:- सबसे ज्यादा जातिगत भेदभाव आपको सिक्खो मे ही मिलेगा। बहुत सालो से रामदासिये सिक्खो ने गुरूद्वारो को छोडकर अपने लोकल गुरू मानने शुरू कर दिये थे। कभी निरंकारियो के पास भटके, तो कभी व्यास वाले आश्रम के अनुयायी बने।
बहुजन समाज (6/25)
पार्टी के नेता कांशीराम पंजाब से थे और रामदासिया सिक्ख थे, अंतत: स्वयं बौद्ध धर्म का अनुयायी बताने लगे, और बाद में मायावती ने पार्टी टेक ओवर कर ली। रामदासिया समुदाय के ही लेखक है गुरूनाम सिंह मुक्तसर उन्होने तो बाकायदा किताबे लिख लिखकर सिक्खो को बौद्ध साबित कर दिया है।
(7/25)
भेदभाव का ये आलम है कि आज पूरा का पूरा रामदासिया और महजबी सिक्ख समुदाय पगडी, जटा जूट बाँधकर, गले मे क्रास लटकाये थोक के भाव क्रिस्चियन बन रहे है।
और इनका दलित मुख्यमंत्री चन्नी क्रिस्मस मनाने मे बिजी रहता था, क्योंकि चन्नी खुद क्रिस्चियन है, केवल राजनैतिक लाभ के लिए (8/25)
पगड़ी बाँधे घूम रहा है।
अगर जाति आधारित भेदभाव सिक्ख धर्म मे है ही नही, तो सिक्खो मे बौद्ध और क्रिस्चियन धर्म की घुसपैठ कैसे हो गई?
4. चोथा झूठ:- आईडेंटिटी क्राईसिस।
सच:- पंजाबी लेंग्वेज मे हो रही उर्दू की घुसपैठ के कारण इनमे आईडेंटिटी क्राईसिस हो गया है। ये कमीने (9/25)
मुस्लिम विशेषकर पाकिस्तानी मुस्लिमो के कारण स्टॉकहोम सिंड्रोम के शिकार है।
बेअदबी उर्दू का शब्द है। कोई बताये कि पंजाबी मे बेअदबी का समानार्थी शब्द क्या है? ये लोग भिंडरवाले को 'मर्द ए मुजाहिद' लिखते है।
बताओ तो सही नीले घाघरे वालो कि मुजाहिद का पंजाबी भाषा में (10/25)
समानार्थी शब्द क्या है? बात बात मे कौम का ढिंढोरा पीटने वालो, कौम का मतलब देश होता है, तो सिक्ख संम्प्रदाय के लिए कौम शब्द लिखने का मतलब क्या हुआ?
बेअदबी, मुजाहिद, कौम नाम के शब्द जब ग्रंथ साहिब मे है ही नही, तो तुम कहाँ से उठा लाये बेअदबी।
ये विशुद्ध रूप से इस्लामी (11/25)
काॅन्सेप्ट है, जो तुम अपने स्टाॅकहोम सिंड्रोम से पीडित होने के चलते इस्लामिक परम्पराओ से उठा लाये हो।
पहले सुना करते थे कि कुरान की बेअदबी हो गई। अब ग्रंथ साहिब की भी बेअदबी होने लगी है। इनका तो इतिहास बोध ही मर चुका है।
गंगू ब्राहम्ण ने गुरू के साहेबजादो को पकड़वा दिया (12/25)
तो पूरी ब्राह्मण जाति गुनाहगार है, मगर ये तो बताओ कि पकड़ा किसने था, दीवार मे किसने चुनवाया था?
गुरू अर्जन देव के कत्ल करवाने वाले जहाँगीर का धर्म क्या था? गुरू तेगबहादुर का कत्ल करवाने वाले का धर्म क्या था?
उसको भी छोड़ो, जरा ये बताओ कि नांदेड मे गुरू गोविंद सिंह की (13/25)
हत्या किसने करी थी? सोते हुए गुरू के सीने मे तलवार किसने भौंकी थी। और साथ ही ये भी बताना कि उन पठानो को बचपन से अपने बच्चो की तरह पाला किसने था?
भाले, तलवारो, कृपाणो से लैस ये नीले घाघरे वाले शूरमा यानि निहंग टाईप की प्रजाति गुरूद्वारो मे पाई जाती है।
वैसे तो ये पल्टन (14/25)
गुरूद्वारो मे दान मे मिले अनाज पर पलती है।
मगर ऐंठ और मडक ऐसी है कि मानो खालसा राज के इकलौते सिपाही यही है। ये खुद को गुरू गोविंद सिंह की फौज मानते है।
इनकी नसो मे हिंदू विरोध, ब्राहम्मणो के लिए जहर भरा होता है। देवी देवताओ की बुराई और सिक्ख धर्म की सर्वोच्यता का दम (15/25)
भरने वाले ये लोग ही मिलेंगे।
अधिकांशत निहंग आपको रामदासिये, तरखान या फिर मजहबी सिक्ख संप्रदाय से ताल्लुक रखने वाले मिलेंगें। जबकि इनके जत्थेदार हमेशा ज्यादातर जट्ट सिक्ख होते है।
इस में मनोरोगी भरे पड़े है।
वैसे तो ये लोग घर परिवारो से सन्यास ले चुके, मगर खालिस्तानी (16/25)
ऐजेंडे को पूरा करने के लिए यह घाघरा पल्टन बाकायदा घोडो पर सवार होकर किसान आंदोलन के नाम पर सिंघू बार्डर पर मौजूद थी।
मतलब सूत ना कपास, और जुलाहे से लट्ठम लट्ठ...
खालसा ऐड के नाम पर शाहीन बाग़, रोहिग्याओ, यमन, सीरिया मे लंगर चलाने तो पहुँच गये, अपनी सेवा का हवाला देकर (17/25)
अफगानिस्तान मे गुरूद्वारा क्यों नही बचा सके तुम लोग? और ये भी जरूर बताना कि वहाँ से भागकर भारत ही क्यों आये? चले जाना चाहिये था इराक, ईरान, सीरिया और पाकिस्तान जिनके लिए तुम लंगर चलाते रहे हो, शायद वहाँ तुम्हारा धर्म ज्यादा सुरक्षित रहता और बेअदबी नही होती।
करतारपुर के (18/25)
नाम पर बाजवा और इमरान के जूते चाटने को आतुर लोग ये कभी नही बतायेंगें कि पंजा साहब, करतारपुर के गुरूद्वारो मे काम करने वाले स्थानीय मुस्लिम वहाँ गुरूद्वारो मे जूते पहनकर हर जगह क्यों घूमते है? तब शायद ग्रंथ साहेब की बेअदबी नही होती होगी?
एक आखिरी सवाल पुराने ग्रंथ साहेब (19/25)
को तुम ताख मे सजाकर, पालकी मे, ढककर, स्वर्ण मंदिर मे जमा कर देते हो।
जरा ये भी तो बताओ कि नये ग्रंथ साहेब की छपाई जब प्रिटिंग प्रेस मे होती है, तो कागज और स्याही कैसे बनती है, छपाई के बाद जिल्द बंधती है, तब क्या कोई ग्रंथ साहेब को छूता है, या आटोमैटिक मशीन से छपकर जिल्द (20/25)
बंधकर आ जाती है?
ग्रंथ साहेब मे लिखी गुरूबाणी पवित्र शब्द है। ग्रंथ साहेब को मार्गदर्शन करने वाला ग्रंथ, और सच्चे गुरू का रूतबा देना भी मान्यताओ के अनुरूप है, मगर उन्हे गुरू ही रहने दो। आसमानी किताब मत बनाओ जो किसी के छूने भर से अपवित्र हो जाये।
बेअदबी की थी मस्सा रांघड (21/25)
ने बेअदबी की थी, अहमदशाह अब्दाली ने, बेअदबी करी थी, जहाँन खाँ ने, बेअदबी की थी मियाँ मन्नू ने।
मराठे तो हिंदू थे ना, जिन्होने अमतृसर को बचाने के लिए अफगानो को पेशावर तक खदेडा था। लाहौर पर काबिज रहे, और सिक्खो तथा स्वर्ण मंदिर के लिए खून बहाया।
जिनको तुम दुशमन मानते हो (22/25)
ना नीले घाघरे वालो उन्ही की वजह से आज तक तुम्हारा अस्तित्व मौजूद है।
और जिन्हे लंगर खिलाकर, गुरूघर मे नमाज की सफे (कतार) लगवाते हो ना उन्होंने मौका मिलते ही बेअदबी ही की है। और वो लोग आगे भी करेंगे।
वैसे तो सिर पर बंधा चूंडा (केश) बुद्धि हर लेता है, फिर भी अगर कहीं (23/25)
खोपड़ी मे अक्ल बची है तो इतिहास उठाकर पढ लो, शायद अक्ल आ जाये।
सुनो, तुम समर्थन करोगे मुसल्लों का और खालिस्तान का, जब हम तुम्हें भी आतंकवादी कहेंगे अथवा देश विरोधी कहेंगे, तब तुम चूड़ियां फोड़कर विधवा विलाप करने लगोगे।
दरअसल तुम्हारा ये आचरण हीं तुम्हारा प्रमाण पत्र (24/25)
एक बार प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी ने पूछा था, “जिस मजहबी विश्वास में मुसलमानों की इतनी श्रद्धा है, उसमें ऐसा क्या है जो सब जगह इतनी बड़ी संख्या में हिंसक प्रवृत्तियों को पैदा कर रही है”?
दुर्भाग्य से अभी तक इस पर विचार नहीं हुआ... जबकि पिछले (1/41)
दशकों में अल्जीरिया से लेकर अफगानिस्तान और लंदन से लेकर श्रीनगर, बाली, गोधरा, ढाका तक जितने आतंकी कारनामे हुए, उनको अंजाम देने वाले इस्लामी विश्वास से ही चालित रहे हैं...!! अधिकांश ने कुरान और शरीयत का नाम ले-लेकर अपनी करनी को फख्र से दुहराया है... इस पर ध्यान न देना (2/41)
राजनीतिक- बौद्धिक भगोड़ापन ही है...!!
कानून और न्याय-दर्शन की दृष्टि से भी यह अनुचित है... सभ्य दुनिया की न्याय-प्रणाली किसी अपराधी, हत्यारे के अपने बयान को महत्व देती है, उसकी जांच भी होती है...!! मगर उसे उपेक्षित कभी नहीं किया जाता... क्योंकि उससे हत्या की प्रेरणा (3/41)
सैफई वाले जब यूपी में सत्ता में आते थे तो एक पुरस्कार बांटते थे... यश भारती... पुरस्कार पाने का कोई मानदंड नही था... एकदम रेवड़ी की तरह बांटा जाता था... सिर्फ एक मानदंड था, पाने वाला या अहीर हो या फिर मुसलमान... शादी विवाह में घूम के बिरहा गाने वाले तथाकथित लोक (1/11)
गायकों को दिया था... घूम के दंगल लड़ने वाले पहलवानों को मिला है, पर एशियाई गेम्स के मेडलिस्ट या अर्जुन अवार्ड्स पाने वालों को नही मिला...
हद तो तब हो गयी जब यश भारती पाने वाले सभी लोगों को टोंटी जादो ने 50,000 रु महीना पेंशन बांध दी... आजीवन 50,000 मिलेगा... ऐसे (2/11)
रेवड़ियां बांटते हैं ये लोग...
उसी तरह कांग्रेसी अशोक चक्र बांट गए...
अरे भैया... कारगिल में 450 से ज़्यादा जाबाज़ सिपाही शहीद हुए थे... उनकी वीरता के किस्से सुन के रोंगटे खड़े हो जाते हैं... उनमे से ज़्यादातर जब मिशन पे जाते थे तो जानते थे कि निश्चित वीरगति होगी... (3/11)
जब हम युवा हो रहे होते हैं, तब शरीर के हार्मोन और मन की उड़ान हमें विपरीत लिंग की ओर आकर्षित करती हैं। युवतियों का युवकों में और युवकों का युवतियों में आकर्षण सहज रूप से होता है। यह प्राकृतिक है। समाज में इस सहज प्राकृतिक भावना के कारण उलझन उत्पन्न न हो, विसंगतियां पैदा न (1/12)
हों, इसलिए विवाह संस्था का अस्तित्व है। कुछ वर्षों पहले तक युवावस्था आते ही युवाओं की सगाई कर दी जाती थी, या शादी कर दी जाती थी पर विदाई/गौना अमूमन तभी होता था जब शरीर पूर्ण परिपक्वता प्राप्त कर ले।
अब यह प्रैक्टिस तमाम अच्छे अथवा बुरे कारणों से बन्द है। पर शरीर और (2/12)
मन तो वही है। कानून बदल गए हों, पर प्राकृतिक नियम तो बदलने से रहे। युवा तन/मन को एक साथी चाहिए ही, वह प्रेम करेगा ही। और प्रेम के लिए वह अपने आसपास ही नजर दौड़ाएगा। जो उपलब्ध होगा, वही अप्रोचेबल होगा।
एक प्रश्न अक्सर उठाया जाता है कि हिन्दू लड़की को मजहबी लड़के क्यों (3/12)
27 फरवरी 1915 मे एक दल बना 'हिन्दू महासभा', इनका नारा: हिन्दुओ एकजुट हो जाओ, 1915 से 2014 तक 99 साल मे इनसे हिन्दू एकजुट नहीं हुए।
29 आगस्त 1964 मे एक दल बना 'विश्व (1/7)
हिन्दू परिषद', इनका नारा: हिन्दुओ एकजुट हो जाओ, 1964 से 2014 तक 50 साल मे इनसे हिन्दू एकजुट नहीं हुए।
19 जून 1966 मे फिर एक दल बना 'शिवसेना', इनका नारा: हिन्दुओ एकजुट हो जाओ, 1966 से 2014 तक 48 साल मे इनसे हिन्दू एकजुट नहीं हुए, क्योंकि खुद कभी महाराष्ट्र से बाहर नहीं (2/7)
निकले।
1 अक्टूम्बर 1984 मे फिर एक दल बना 'बजरंग दल', इनका नारा: हिन्दुओ एकजुट हो जाओ, 1984 से 2014 तक 30 साल मे इनसे हिन्दू एकजुट नहीं हुये।
और भी बहुत से छोटे छोटे हिन्दू दल बने हिन्दू वाहनी, हिन्दू रक्षा दल, हिन्दू सेना, हिन्दू युवा दल इत्यादि, इन सब दल से आजतक देश (3/7)
70 साल तक ऐसे ही हरामखोरों व मुफ्तखोरों को तरह तरह की सरकारी योजनाओं के मार्फ़त पाला पोसा गया और एक स्थायी वोटबैंक बनाया गया...
जिन्हें इतनी भी समझ नहीं है कि वो क्या बक रहा है और किसके लिए क्या मांग कर रहा है... कल देखा कि तिरंगा झंडा अतीक अहमद की कब्र पर ओढ़ा रहा था...
(1/6)
और खड़े होकर जोर जोर से मेरे देश का झंडा अमर रहे चिल्ला रहा था... एकाएक मुझे लगा कि यह व्यक्ति किसी और देश से आया है और अपने देश के झंडे व अपने देश के महान नेता की हत्या पर शोक व्यक्त कर रहा है...
फिर एकाएक देखा कि ये तो अंग्रेजों के द्वारा निर्धारित किया गया तीन रंगों के (2/6)
बराबर हिस्सेदारी दर्शाता तिरंगा झंडा है जिसे भारत का झंडा कहते हैं 75 वर्ष से... वैसे भारत का झंडा तो अंग्रेजों व मुसलमानों के आक्रमण करने से पहले भगवा ध्वज ही रहा है... और हिन्दूओ को अपने ध्वज से ही अपनी पहचान कायम रखने की जरूरत है...
चच्चा की मेहनत आखिरकार कौम के लिए रंग लाने लगी है... आजादी के समय 3 करोड़ आबादी थी भारत में... आज 75 वर्ष बाद उन 3 करोड़ लोगों ने दिन रात मेहनत कर करके अपनी कौम की आबादी 40 करोड़ के पार पहुचाते हुए भारत को विश्व की सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला तोहफा दे दिया...
बेगैरतों को (1/4)
75 सालों से सब कुछ मुफ्त में ही मिलता रहा सरकारी योजनाओं के मार्फ़त... और इन्होंने अपने साथ तथाकथित नशेड़ी वर्ग के हिन्दूओ को भी मिला लिया...
मोदी के आने के बाद असन्तुलित वोटबैंक को संतुलित करने की कोशिश करते हुए भी इन्हें मुफ्त में पालने पोसने की मजबूरी बनी हुई है... (2/4)
जातिवादी कीड़े मकोड़े व तथाकथित आसमानी रंग व हरे रंग के विपक्षी दलों के वोटबैंक के बराबर मात्रा में हिन्दूओ का वोटबैंक स्थायी रूप धारण नहीं कर लेगा... तब तक चच्चा की नाजायज औलादों को पालना पोसना मोदी की भी मजबूरी बनी रहेगी...
एक बार हिन्दूओ का स्थायी अडिग वोटबैंक बन जाने (3/4)