कर्नाटक चुनाव में मुस्लिम आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। आज गृहमंत्री अमित शाह ने भी इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरा है। ऐसे में ये जानना दिलचस्प होगा कि देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल के मुस्लिम आरक्षण पर क्या विचार थे, जिन्हें जानकर (1/8)
आप हैरान रह जाएंगे। अगर आज सरदार पटेल की भाषा में कोई नेता बोल दे तो उसे तत्काल “सांप्रदायिक” या फिर “इस्लामोफिबिक” साबित कर दिया जाएगा।
तो हुआ यूं था कि आजादी के सिर्फ 13 दिन बाद यानी 28 अगस्त, 1947 को संविधान सभा में मुस्लिम लीग (जो पाकिस्तान बना देने के बाद भी भारत (2/8)
में ही रुक गये थे) और कांग्रेस के मुस्लिम सदस्य चुनावों में मुस्लिम रिज़र्व सीट की मांग कर रहे थे। इस मांग का समर्थन करते हुए कांग्रेस के सदस्य नजीरुद्दीन अहमद ने संविधान सभा में बड़ी चालाकी के साथ कहा,
“हिंदू बड़े भाई हैं, और मुसलमान छोटे भाई। यदि बड़े भाई अपने छोटे (3/8)
भाई की मांग को स्वीकार कर लेंगे तो उन्हें अपने छोटे भाई का प्यार मिलेगा, नहीं तो वे हमारा प्यार गंवा देंगे।”
इस पर सरदार पटेल ने जो संविधान सभा में कहा, उसे प्रत्येक भारतीय को अवश्य जानना चाहिए, उन्होंने कहा कि,
“यहां बहुत मीठी-मीठी बातें की गईं लेकिन इसके अंदर जहर की (4/8)
खुराक भी मिली हुई है। मैं छोटे भाइयों यानी मुसलमानों का प्रेम गंवा देने के लिए तैयार हूं। हमने आपका प्यार देख (भुगत) लिया है। आपको अपनी हरकतों में परिवर्तन करना चाहिए, नहीं तो आपकी यह मांग मानने से बड़े भाई यानी हिंदुओं की मौत भी हो सकती है। आप लोग यह तय कीजिए कि आप देश (5/8)
को सहयोग देना चाहते हैं या फिर तोड़-फोड़ की चालें आजमाना चाहते हैं।
सरदार पटेल आगे कहते हैं कि,
“कोरी बातों से कोई काम नहीं चलेगा। आप अपनी मानसिकता पर फिर से विचार करें। आपको जो चाहिए था, वह पाकिस्तान के रूप में आपको मिल गया है। याद रखिए, पाकिस्तान के निवासी नहीं बल्कि (6/8)
आप लोग ही पाकिस्तान बनाने के लिए जिम्मेदार हैं। आप लोग ही पाकिस्तान आंदोलन के अगुआ थे। अब आपको क्या चाहिए, हमें सब पता है। हम नहीं चाहते कि देश का फिर से बंटवारा हो जाए। जिन्हें पाकिस्तान चाहिए था, उन्हें वह मिल गया है। जिनकी पाकिस्तान में श्रद्धा है, वे वहां चले जाएं और (7/8)
सुख से रहें।”
सोचिये यही “पाकिस्तान चले जाइये” वाली बात आज कोई बोल देता है तो पूरा सिकलुर जमात का इकोसिस्टम उस पर राशन पानी लेकर चढ़ दौड़ता हैं। ऐसे लोगों को सरदार पटेल के ये महान विचार पता होना चाहिए।
उन्नीसवीं शताब्दी के गहरे अंधकार में अगर कोई मात्र भारत ही नहीं बल्कि पश्चिम को भी भारतीय दर्शन और परम्पराओं की ज्योति से प्रकाशमान करने का दम रखते थे, तो वह हैं स्वामी विवेकानंद। परिस्थितयों ने भले उनको बनाया हो लेकिन वो कभी उनके दास नहीं बने। वह एक सन्देश लेकर आए (1/13)
थे, जो पृथ्वी पर उपस्तिथ हर मनुष्य के लिए विद्यमान है। वह था, “अभय बनो।”
बीसवीं शताब्दी में स्वाधीनता का आंदोलन जब चरम पर था, उस समय विवेकानंद ज्वाला- समान एक नाम थे। ऐसा नाम जो भारत माता को एकमात्र अपना आराध्य मानकर जीवन उनके चरणों में समर्पित करने की प्रेरणा देते (2/13)
थे। भगिनी निवेदिता अपनी पुस्तक “दी मास्टर एज आई सॉ हिम” में लिखती हैं कि उनके लिए भारत के लिए चिंतन करना श्वास लेने जैसा था।
इस लेख में स्वामी विवेकानंद और बाल गंगाधर तिलक के राष्ट्रीय चिंतन पर प्रकाश डालने का मैं प्रयास करूँगा।
जनता कहती है कि हिंदू प्रधानमंत्री वही गलती कर रहे हैं जो पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने की थी।
अगर आप अंबेडकर की किताब पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन पढ़ेंगे तो आपको उसमें एक बहुत कटु सत्य पढ़ने को मिलेगा। उस किताब में लिखा है कि पंजाब में बहुत लंबे समय तक मुस्लिम शासन (1/14)
रहा जिसकी वजह से बहुत तेजी से पंजाब का इस्लामीकरण हुआ। बाद में सिखों ने अपनी बहादुरी से पंजाब में मुस्लिम शासन का खात्मा भी कर दिया लेकिन उन्होंने मुस्लिम संस्कृति का विनाश नहीं किया इसी वजह से आखिरकार पंजाब हिंदुओं के हाथ से निकलना तय हो गया!
जैसी हालत पंजाब के समाज की (2/14)
महाराजा रणजीत सिंह के समय थी। ठीक वैसे ही हालत आज के हिंदुस्तान की है। और अगर हिंदू प्रधानमंत्रियों ने वही गलती करी जो महाराजा रणजीत सिंह ने की थी तो ये तय मानकर चलिए कि इस बचे हुए हिंदुस्तान की हालत वैसी ही होगी जैसी पंजाब की आज की तारीख में है। (यहां मैंने पाकिस्तानी (3/14)
एंटोनिया मायनो ने जब मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुना तो सिर्फ उसने यह नहीं देखा कि यह अन्य गुलामों में बेहतर गुलाम हैं, क्योकि कांग्रेस में गांधी परिवार की गुलामी करने में बहुत से कांग्रेसी नेता मनमोहन से भी कई गुणा ज्यादा हैं, एंटोनिया मायनो ने देखा (1/17)
कि यह गुलाम तो हैं ही लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यह हैं कि यह अपने मासूम चेहरे के पीछे बहुत बड़ा धूर्त और मक्कार इंसान हैं (वैसे मैं व्यक्तिगत रूप से एंटोनिया मायनो के इस पारखी नजर की दाद देता हूँ), जिसकी मासूमियत भरे चेहरे के आड़ में भ्रष्टाचार का कारनामा करने में बहुत (2/17)
सहूलियत होगी क्योंकि इसके मासूम चेहरे को देखकर लोगो को इसपे संदेह भी नहीं होगा। बाथरूम में रेन कोट पहन कर नहाने वाला व्यक्ति इसे मोदी ने भरी संसद में ऐसे ही नहीं कहा था!!
आगामी कर्नाटक चुनाव की तैयारियों के बीच गांधी परिवार के प्रति अपनी गुलामी को प्रदर्शित करते हुए (3/17)
देश के लिए कानून बनाने का शौक रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के मीलॉर्ड, बंगाल, तमिलनाडु और केरल सरकारों को बर्खास्त करने की हिम्मत करें या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ढोल बजाना बंद करें।
यह बात सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश कई बार कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट का बनाया कानून (1/9)
देश का कानून होता है जबकि अदालत के पास कानून बनाने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है क्योंकि यह संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है।
सुप्रीम कोर्ट किसी सरकार को केंद्र द्वारा बर्खास्त किए जाने पर उसे पुनर्स्थापित कर सकता है। पिछले 9 साल से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम (2/9)
पर देश में कई बार अराजकता फैलाने के भी अनुमति दी गई जैसे किसान आंदोलन और CAA के खिलाफ शाहीन बाग़ में।
लेकिन अब समय आ गया है बंगाल, तमिलनाडु और केरल की सरकारों को करोड़ो लोगों की द केरला स्टोरी फिल्म देखने के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात करते हुए फिल्म को बैन करने के अपराध (3/9)
केरला स्टोरी वाली घटना यानी लव जिहाद में या दूसरे तरीकों से किशोरावस्था में हिंदू लड़के और लड़कियों का ब्रेनवाश करके, उन्हें अपने इस्लाम के जाल में फंसा कर उन्हें या तो बच्चा पैदा करने वाली फैक्ट्री बना देना या फिर आतंकी बना देना, यह सब कुछ सिर्फ केरल में नहीं हुआ (1/10)
इन लोगों ने यह प्रयोग श्रीलंका में भी किया था।
आप लोगों को 2018 में कोलंबो और उसके आसपास हुए सीरियल ब्लास्ट वाली घटना याद होगी जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे।
इस घटना को लव जिहाद में फंसकर हिंदू से मुसलमान बनी एक लड़की ने अंजाम दिया था।
इस घटना के बाद श्रीलंका सरकार (2/10)
ने जब जांच के आदेश दिए, तब श्रीलंका में ऐसी कुल 100 से ज्यादा लड़कियों का पता चला जो या तो बौद्ध थी या सिंघली थी या तमिल हिंदू थी, जिन्हें एक संगठित गिरोह ने लव जिहाद में फंसा कर मुसलमान बना दिया था।
और श्रीलंका के मुस्लिम मौलवी उसकी ट्रेनिंग लेने केरल के उसी बदनाम (3/10)
पीके फिल्म इस अंतिम दृश्य के साथ समाप्त हो जाती कि "मुसलमान कभी धोखा नहीं देता" सरफराज (अब्दुल) धोखेबाज नहीं हैं।
'द केरला स्टोरी' का निष्कर्ष आपको पता है? "अब्दुल धोखा देने के लिए ही प्यार करता है।" यह (1/8)
दोनों फिल्में एक दूसरे से एकदम विपरीत हैं।
जैसे जादूगर अपने खेल में पहले तो कबूतर, टॉर्च, कोल्ड ड्रिंक एक के बाद एक वस्तु निकालता जाता है, आपको लगता है यह जादू दिखा रहा है, लेकिन वास्तव में उसका मुख्य उद्देश्य अंतिम में दृष्टिगोचर होता है जब वह अंत में आपके सामने पैसे के (2/8)
लिए झोली फैला देता है।
जादूगर का उद्देश्य आपको जादू दिखाना नहीं अपितु जादू के नाम पर अपने भोजन पानी की व्यवस्था करना हैं।
ऐसे ही पीके फिल्म का जादूगर आमिर खान हिन्दुओं की कुछ रूढ़िवादी मान्यताओं, कुरीतियों, अंधविश्वास को स्पष्ट करने का जादू दिखाता है और उससे आप फूलकर (3/8)