#स्वतंत्र
एक थे भैया भजपैया !!
यही नाम था, थोड़ा अजीब.. पर था तो क्या करें। तो भैया को एक बार गुफा में ध्यान करने की हुनक हुई। तो चल पड़े गुफा खोजने.. मिल भी गयी।
गुफा, जाहिर है जंगल मे होगी, और जंगल तो पहाड़ पर होगा। तो पहाड़ी जंगल मे भैया भजपैया ने गुफा
खोजकर ध्यान लगाया। समझ मे आया कि पीछे, कोई पहले ही ध्यान लगाया हुआ है।
भालू था..
तो भालू साहब को अपनी गुफा में किसी और का ध्यान लगाना.. शायद पसंद नही आया, तभी तो रेस शुरू हुई। भैया भजपैया जीत रहे थे, काहे की भालू पीछे था, भैया आगे थे।
पर दो की रेस जीतने में कतई मजा न था। तो एक शेर भी रेस में कूद पड़ा। लेकिन रॉकेट हमारे भैया .. भैया भैया भैया, तो अभी भी लीड कर रहे थे।
गौरवर्णी, रक्ताभु, कोमल, रसीले और यम्मी थे, तो एक भेड़िया भी पीछे लग गया।
जंगल मे तूफान मचा था, आगे आगे भैया, पीछे पीछे भालू, शेर और भेड़िया..
की तभी रेस खत्म हो गयी !!!
एक्चुअली, रेस ट्रेक खत्म हो गया था।
पहाड़ी की कगार आ गयी थी, सामने गहरी घाटी थी। घाटी की दीवार से एक पेड़ उगा था, जिस पर एक अजगर जीभ लपलपा रहा था। भैया ने आव देखा न ताव, अजगर की पूंछ पकड़ी और लपककर कूद गए।
अब ऊपर शेर, भालू और भेड़िया थे, नीचे गहरी खाई थी। एक हाथ से अजगर की पूछ पकड़े हुए भैया .. बीच मे झूला झूल रहे थे।
तभी सामने एक बेल दिखी।
बेल में काली रसीली बेरी लगी हुई थी। भैया ने दो बेरी तोड़ी, खाकर देखा।
बोले- बहुत ही टेश्टि बेरी है।
प्राण संकट में हो, और व्यक्ति रसीली बेरी के गुण गाकर रसास्वादन कर रहा हो, तो उसे भैया भजपैया कहते हैं। रेलवे का ढांचा दरक रहा हो, टूट बिक रहा हो, आम आदमी का सफर दूभर कर वन्दे भारत की चमक दिखाएं, उसे भैया भजपैया कहते हैं।
दरकते शहर में दसियों हजार बेघर हो रहे हों,और नीचे सुरंग खोदकर कोई विश्वस्तरीय परियोजना का जाप करे, उसे भैया भजपैया कहते हैं। सूखती गंगा की छातियों पर जो क्रूज का विलास रचाये उसे भैया भजपैया कहते हैं।
कथा का सार यह है, कि भग्न सामाजिक ताने बाने,
डूबती अर्थव्यवस्था की खाई में झूलते भारत को, यहाँ वहाँ जो रंगीन सपनीली परियोजनाएं गिनाई जाती हैं न दोस्त...
वो बहुत ही "टेष्टि बेरी" है.. #रिबोर्न_की_बोधकथाऐं
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*कर्नाटक की हार के बाद भाजपाई बौखलाए हैं। बिकाऊ और देश के गद्दार पत्रकार, सड़कछाप, दो कौड़ी के भाजपाई और फेंक न्यूज़ IT सेल वाले मिलकर जनता को माँ बहन की गालियां दे रहे हैं।*
*सोचिए, ये कितने बड़े हिंदू-हितैषी हैं कि 83% हिंदू आबादी वाले राज्य का ऐतिहासिक फ़ैसला इन्ह
स्वीकार नहीं है।*
*यह वही प्रदेश है जहां भाजपा की लूट ने लोगों की जान ली। जनता से लगातार सरकारी उगाही की गई। कारोबारियों ने आत्महत्याएं कीं। दो-दो असोसिएशन प्रधानमंत्री मोदी से शिकायत करते रहे लेकिन उन्होंने कान नहीं दिया। लूट जारी रही और जब चुनाव आया तो पहुँच गये- मैं कर्नाटक
का बेटा हूं, मेरा कर्नाटक से बचपन का रिश्ता है।*अटल बिहारी वाजपेयी एक चीनी कहावत बार-बार दोहराते थे, कि आप कुछ समय के लिए कुछ लोगों को मूर्ख बना सकते हैं। हमेशा के लिए सबको मूर्ख नहीं बना सकते। भाजपा ऐसी घटिया नीच पार्टी बन गई है जो अपने ही नेताओं और उनके अतीत से कुछ सीखने को
देश के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बनने से पहले भी मनमोहन सिंह भारत सरकार मे उच्च पदों पर रहे थे. उनके साथ उन दिनों उनके पर्सनल स्टॉफ मे काम करने वालो मे से एक से मुलाक़ात करने का अवसर मिला. उन्होंने एक रोचक बात बताई. मनमोहन सिंह से मिलने वालो मे सरकारी काम के सिलसले मे भी लोग
मिलते थे और निजी तौर पर भी. लेकिन जो लोग निजी तौर पर मिलते थे, उन्हें अपनी जेब से चाय पिलाते थे, सरकारी खर्चे से नहीं...
मै तो मनमोहन सिंह के इस काम को ईमानदारी मे भी नहीं रखता. कोई विरला शख्स ही होगा, जो ऐसा करता होगा. शायद मनमोहन सिंह, ईमानदारी से ज्यादा अपनी आत्मा की आवाज
को सुनने मे ज्यादा विश्वास करते होंगे..
वो भी चाहते तो राज्य सरकार के चुनावों मे जा जा कर अपने किये हुई उपलब्धियों का ढिंढोरा पीट कर वोट पा सकते थे. लेकिन जो व्यक्ति, अपने चाय के पैसे सरकारी खरचे से नहीं पिला सकता, वो प्रधानमंत्री रहते हुए, पार्टी वाला काम क्यो करेगा.
चौथी फेल मंगलू राजा, दरबार में बैठा, मक्खियां मार रहा था, कि तभी दरबार में सूचनामंत्री का प्रवेश हुआ, मक्खी मारने का असफल प्रयास करते हुए मंगलू राजा उत्साहित होकर बोला-- बको सूचनामंत्री, क्या खबर लाये हो ? सूचनामंत्री राजा मंगलू की भाषा शैली से थोड़ा असहज हुआ,
पर राजा की चौथी फेल मार्कशीट का ध्यान आते ही सहज भाव से बोला --महाराज खबर अच्छी नहीं है, हम कर्नाटक दुर्ग हार चुके है। इतना सुनते ही मंगलू राजा अपनी सीट से उछल पड़ा, और कड़ककर सूचनामंत्री से बोला, ये कैसे हुआ ? कर्नाटक में तो मैंने जबरदस्त "नाटक" किया था ?
वहां तो जनता को " अंधभक्त" बनाने के लिए मैंने कितनी "रथ रैलियां" की थी ? फिर कैसे हार गये ? सूचना मंत्री आवेश में बोला--हां, की थी आपने "रथ रैलियां" ? पर वहां की जनता आपकी तरह चौथी फेल नहीं है, .... वो......
खिचड़ी को जो भी कहो ये ट्रम्प कार्ड है, खिचड़ी पूरी तरह सेक्युलर है और हर भारतीय को प्रिय है।
मुगलों को और भगवान जगन्नाथ ,दुर्गा सबको प्रिय है,औरंगज़ेब तो रोज़ खिचड़ी ही खाता था अपनी टोपी बनाने और कुरान लिखने से हुई कमाई से।
दरअसल खिचड़ी उन चंद उर्दू लफ़्ज़ों में से है जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई।
खिच्चा मतलब चावल और दाल,इसी से खिचड़ी शब्द की उत्पत्ति हुई।सिकन्दर के मंत्री सेल्यूकस ने खिचड़ी का उल्लेख किया है इसा पूर्व।तेरहवीं सदी में इब्न बतूता और अन्य यात्रियों ने खिचड़ी
का उल्लेख किया।इसा पूर्व भारत में ज्वर,बाजरा,कोदो,रागी,मुंग,उड़द, चना वगैरह आम जनता खाती थी।
मुगलों ने इसमें गोश्त मिला दिया।बहुत तरह की खिचडिया बनती हैं।कर्नाटक का बिसिबेलेभाथ हो या तमिल पोंगल या बीफ या गोश्त के साथ पकी हलीम या हरयाणा का बाजरे का खीचड़ा,
क्या आप जानते हैं की समयसूचक AM और PM का उद्गगम भारत में ही हुआ था …??
लेकिन हमें बचपन से यह रटवाया गया, विश्वास दिलवाया गया कि इन दो शब्दों AM और PM का मतलब होता है :
AM : Ante Meridian
PM : Post Meridian
एंटे यानि पहले, लेकिन किसके? पोस्ट यानि बाद में, लेकिन किसके? यह कभी साफ नहीं किया गया, क्योंकि यह चुराये गये शब्द का लघुतम रूप था।काफ़ी अध्ययन करने के पश्चात ज्ञात हुआ और हमारी प्राचीन संस्कृत भाषा ने इस संशय को साफ-साफ दृष्टिगत किया है। कैसे? देखिये...
AM = आरोहनम् मार्तण्डस्य
PM = पतनम् मार्तण्डस्य
सूर्य, जो कि हर आकाशीय गणना का मूल है, उसी को गौण कर दिया। अंग्रेजी के ये शब्द संस्कृत के उस वास्तविक ‘मतलब' को इंगित नहीं करते।
आरोहणम् मार्तण्डस्य यानि सूर्य का आरोहण या चढ़ाव। पतनम् मार्तण्डस्य यानि सूर्य का ढलाव।
रफूगर का काम सिलाई करना नहीं था बल्कि बादशाह की बातों को रफू करना था !
दरअसल वह रफूगर बादशाह की हर बात की मरम्मत इस तरह करता कि जनता वाह वाह करती और तालियां बजाती ..!
एक दिन बादशाह दरबार लगाकर जनता को अपने जवानी की शिकार का किस्सा सुना रहे थे ..?
जोश में आकर कहने लगे ....
एक बार तो ऐसा हुआ कि मैंने आधे किलोमीटर दूर से एक हिरन पर निशाना लगाया ..! तीर सनसनाता हुआ गया और..
हिरन की बायीं आंख में लगकर दायें कान से होता हुआ पिछले पैर की
दायीं टांग के खुर में लगा ...
बादशाह को उम्मीद थी कि जनता वाह वाह करेगी !
परन्तु ये क्या !?
चारों तरफ शांति ..
बादशाह भी समझ गया कि मैंने ज्यादा लम्बी छोड़ दी ..!
बादशाह ने तुरंत रफूगर की ओर देखा ..!
रफूगर उठा और बोला :- हजरात में इस वाकए का चश्मदीद गवाह हूं !..