#इतिहास नहीं #चश्मा बदलें
मैंने हजार साल के इतिहास को साफ किया
सब बादशाहों को निकाल दिया
स्याही पोत दी हर नाम पर
बाबर हुमायूं अकबर जहाँगीर शाहजहाँ को बेकिताब किया
बहादुरशाह ज़फ़र भी निर्वासित हुए
पन्ने फाड़ दिये मंगोल मुग़ल लोधी गुलामवँश के
ताजमहल को तेजोमहल किया
कुतुबमिनार और लाल क़िला तंबू से ढक दिया
इतिहास के पन्नों से फिर भी खून का रिसाव हो रहा
तलवारों और चीख़ों की आवाज़ें आ रही
घोडों की टापें हाथियों की चिंघाड़
दक्षिण के चोल चेर काकितेय राष्ट्रकूट पंडियन पल्लव लड़ रहे
उत्तर में चंदेल परमार सोलंकी प्रतिहार तलवारें भाँज रहे
बंगाल के पाल सेन लड रहे थे
मौर्य गुप्त कोशल मगध सीमाओं का विस्तार कर रहे
चोल राजेन्द्र साम्राज्य इंडोनेशिया तक ले गये
राजपूतों मराठों सिक्खों की तलवारें खिंची
दरबारों में भाई सामँत षड़यंत्र रच रहे
इतिहास के हर पन्ने पर खून की लकीरें पड़ी थी
जैन बौद्ध शैव वैष्णव सबमें वैमनस्य था
दूसरों की आँखे फोड़ रहे घट्टे में सिर पीस रहे
राजसत्ता की एक सी लिप्सा है
राजाओं बादशाहों का एक ही इतिहास है
दूर देशों से हूण शक यूनानी अरब आये
जीते हारे घर बसा के यहीं के हो गये
इस देश की मिट्टी में मिली सबकी मिट्टी
अब कौन जानें किसकी रगों में किसका खून बह रहा
जनता के मुद्दों की बात करो
इतिहास के पन्ने नहीं अपना चश्मा बदलो
वक्त आ गया है चश्मे का नंबर बदलो
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"हाथी नही गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है.."
जंगल का सबसे ताकतवर, विशालकाय, इंटेलिजेंट, सामाजिक, शाकाहारी जीव, जिसे ऐसे गगनभेदी नारों से बेवकूफ बनाकर सवारी गांठी जाती है। हाथी सिकंदर के दौर से, राजाओं की लड़ाइयां लड़ता रहा है, उनका हौदा पीठ पर ढोता रहा है।
शीश का दान कर, वह पूजनीय बन सकता है, मगर राजा नही।
नो पॉलिटिक्स- ऑनली वाइल्डलाइफ सीरीज में गिरगिट, शेर, गैंडे, जंगली गधे, मगरमच्छ, उल्लू, गिद्ध पर बात हो चुकी, मगर हाथी यहां भी उपेक्षित रह गया। तो आज बात हमारी, याने हाथी की..
धरती पर चलने वाला सबसे विशालकाय मेमल, हाथी है। संस्कृत के हस्ति शब्द से इसका प्रादुर्भाव है। जहां सारे हाथी पकड़कर सेवा में लाये जायें, वह माइथोलॉजिकल शहर हस्तिनापुर कहलाया।
अंग्रेजी में एलिफेंट कहते है, जो ग्रीक शब्द एलिफ़ास से बनता है।
सोलहवीं कड़ी: बुढापा वरदान... या अभिशाप ?? जापान: पहला भाग
यदि पुनर्जन्म होता हो, और मुझसे पूछा जाए कि मैं अगला जन्म कहाँ लेना चाहूंगा.... तो निःसंदेह मैं जापान में ही पैदा होना चाहूंगा.
जापान भौगोलिक दृष्टि और मानसिकता में अमेरिका से बिलकुल ही उलट है और दुनिया के सबसे
उम्रदराज लोगों का हब है.
अमेरिकन जहां मौजमस्ती भरा, खूब खाते-पीते, आराम पसंद, बेहद खर्चीले होते हैं, लेकिन जापान के लोग मितव्ययी, शुचिता पूर्ण, शांत और सभ्य जीवन पसंद करते हैं.
हालांकि बुद्ध भारत में पैदा हुए, लेकिन वास्तव में बुद्ध को जिन्होनें अपने व्यवहार में उतारा है,
वे है जापानी.
गीता के कर्मयोग को हमनें तो सिर्फ मुखौटा भर बना रखा है, लेकिन कर्मयोगी यदि वास्तव में कोई है, तो वे हैं जापानी. “ कर्म ही पूजा है” ये बात उनपर शत-प्रतिशत लागू होती है.
कर्मठ तो इतने ज्यादा होते हैं, कि १६ घंटे काम करने में भी उन्हें कोई परेशानी नहीं होती.
28 मई माफिवीर का जन्मदिवस होता है। दो राष्ट्र सिद्धांत की दूसरी धुरी, और गांधी हत्या के कटघरे में नाथूराम गोडसे के सहगामी रहे सावरकर के अवदानों को राष्ट्र भरे मन से याद करेगा।
कृतघ्न राष्ट्र उन्हें अपने टैक्स के पैसों से महज 60 रुपये मासिक ही दे सका था। लेकिन अब सम्पूर्ण संसद उनके आदर्शों को समर्पित होगी।
क्या ही यादगार घड़ी होगी, जब विश्व की सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद, भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के कटु आलोचक के नाम होगी।
लोकतंत्र की मजार बनने जा रहे इस कॉफिन नुमा भवन की खूबसूरती और भव्यता, मुमताज की कब्र पर बनने ताज महल की सादगी को मात करेगी।
कॅरोना की 4 लाख मौतों के बीच बने 20 हजार करोड़ के सेंट्रल विस्टा का केंद्रबिंदु, डेढ़ हजार करोड़ का ये शाहकार जब किसी मैगलोमानियक के हाथों उद्घाटित होगा,
Manish Singh Reborn
दिल्ली किसी काम से जाना होता है, तो चांदनी चौक के पराठे भी खा लेता हूँ।
सेल्फी लेकर "ईटिंग पराठा एट पराठे वाली गली, लाइफ रॉक्स" कैप्शन के साथ डाल देता हूँ। दो चार लाइक आ जाते हैं।
वैसे ही प्रधानसेवक, जिस किसी देश मे सरकारी काम से जाते हैं, वहां इंडियन पगलों का एक मजमा जरूर लगाते है। अब विदेश दौरे का कुछ लाभ देश को हो न हो, मीडिया को मस्त तस्वीरें मिल जाती है।
पर मेरे साथ ऐसा कभी न हुआ, कि काम के लिए जाना कैंसल हो जाये, तो खाली पराठे की फोटो के लिए दिल्ली चला जाऊं।
लेकिन फ्री का प्लेन एवलेबल हो तो ऐसा किया जा सकता है। जिस क्वाड बैठक के लिए प्रधानसेवक का ऑस्ट्रेलिया टूर बना था, वो पहले ही रद्द हो चुकी थी। अमेरिका जापान नही आ रहे।
रात के 11 बजे के करीब आप की आंख लगी हो। फिर रात के तीसरे पहर में अचानक आप की नींद टूटे और आप पाएं कि आपको बाथरूम जाने की अर्ज महसूस हो रही है। आप लधु शंका से फारिग होकर वापिस बिस्तर पर आते हैं तो पाते हैं कि इस नैप ने आपके
मस्तिष्क को इतना तरोताजा कर दिया है कि वो अब किसी हिरन की भांति कुलांचे भर रहा है। दिमाग में एक से बढ़कर एक विचार आ रहे हैं। आप हर विचार को एक लाजवाब पोस्ट के रूप में देखते हैं। लेकिन समस्या ये है कि विचार इस तेजी से आ रहें जैसे हिरणों का कोई झुंड एक भूखे शेर के सामने
से निकल रहा हो। और शेर कन्फ्यूज कर जाए कि आखिर किसे पकड़े। रात के दो बजे विचारों की इस रेलम पेल में किसी एक विचार को भी पकड़ना बहुत मुश्किल है। और आखिर में मेरे हाथ लगता है..... घण्टा
सोचता हूँ आखिर इस तरह की स्थिति से दो चार होने पर जो आदमी के हाथ लगता है।