12 . उन्हें एक भी भव में छोटी या बडी बिमारी नहीं हुई।
13. वे भले 32000 देशों के राजा बने फिर भी उन्होंने
कभी भी युद्ध या किसी भी प्रकार का संहार नहीं किया था I
14. पूर्व के एक भी भव में उन्होंने किसीके साथ बैर नहीं बाँधा था I
15. उनका छोटे से छोटा भव एक लाख वर्ष का था I
शांतिनाथ दादा की जितनी भी बातें कहे उतनी कम ही है I
उनका ध्यान करने से, उनके नाम का जाप करने से तन मन और आत्मा को शांति मिलती है । दुखी जीवों को परमात्मा शान्तिनाथ का स्मरण दर्शन पूजन करने से लाभ होता है।
शास्त्र के विपरित कुछ लिखा हो तो मिच्छा मि दुक्कडं🙏 #जिनवाणी
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अमूल्य अवसर
दिनांक 17 मई , वैशाख वदी १३ , बुधवार ,
श्री शांतिनाथ भगवान का
जन्म एवं मोक्ष कल्याणक
व
दिनांक 18 मई , वैशाख वदी १४ , गुरुवार ,
श्री शांतिनाथ भगवान का दीक्षा कल्याणक
जिसको भी जीवन में
सुख - शांति - सुविधा - संतति - संपत्ति - समृद्धि - सन्मति -
सन्मार्ग - सद्गति - समभाव - समाधि एवं सिद्धगति की अपेक्षा हो उनको विशेष रूप से
छट्ठ ( बेला, 2 उपवास) अथवा
2 आयंबिल नही तो
2 एकासना या
2 बियासन करके
शांतिनाथ भगवान के नाम की दो दिन में 125 या
20 + 20 माला गिननी चाहिए ।
मंत्र :
ॐ ह्री अर्हम श्री शान्तिनाथाय नमः #Jainism 🙏
दोनों दिन ........
भव्य स्नात्र महोत्सव , प्रभुजी की नयनरम्य अंगरचना , सामायिक , प्रतिक्रमण , पूजा , जाप , भक्ति - भावना करें ,
जैन धर्म में 18 प्रकार के पाप बताए गए हैं : 1. प्राणातिपात : हिंसा , कोई भी जीव के प्राण को घात करना , पीड़ा देना , मानसिक त्रास देना वो द्रव्य हिंसा है। रागादि भाव के साथ आत्मगुण को दबाना या घात करना वो भाव हिंसा है।
2. मृषावाद : असत्य बोलना , छल , कपट , मान और माया
माया अर्थात बाहर कुछ मन मे कुछ और। धन , धान्य के परिवार के लाभ या लोभ के कारण असत्य वचन बोलना। झूठी साक्षी देना।
3. अदत्तादान : अदत्त - चोरी , आदान लेना। चोरी से छुपा के लेना। पूछे बिना लेना। राज्य के कर आदि छुपाना वो भी चोरी है। एक परमाणु जितना भी चोरी करना भी अदत्तादान है।
4. मैथुन : विषयभोग , काम वासना , इन्द्रियों का असंयम , पांचेय इन्द्रियों के भोगों की लोलुपता , विजातीय की भोग वासना।
5. परिग्रह : धन धान्यादि संग्रह करके उसमें मान, दिखावा, ममत्व करना। आवश्यक संग्रह करके भी ज्यादा की तृष्णा करना। जितना भी है उसके उपयोग में नियंत्रण नही रखना।