Radhika Deshpande Profile picture
May 18 9 tweets 4 min read Twitter logo Read on Twitter
घूंघट की आड से बुर्क़ा के बुर्ज तक।
ये मेरी स्टोरी है। मेरा नाम संस्कृति है और मैं भारत वर्ष में रहती हूं। जिसे आप देवभूमि, तपोभूमि के नाम से जानते थे। संस्कार जिसके धमनियों में बहता था और सभ्यता का आंचल खुले आकाश में उड़े खड़ी रहती वो मां भारती मैं ही थी। #TheKerelaStory १/९ Image
मेरी अस्मिता जागृत थी और मैं एक स्वामिनी, समानाधिकारीनी थी। मैं संस्कृती, नाम तो सुना होगा? ये मेरी स्टोरी है।
में आज घूंघट ओढ़े क्यों खड़ी हूं ये जानने के लिए मैंने घूंघट क्यों पहना और कैसे पहना ये जानना आवश्यक है। दरअसल हिन्दू परंपरा में घूंघट था ही नहीं। २/९
किसी भी पुराने मंदिर के अवशेष देख लीजिए या किसी भी पुराण को पढ़ लीजिए। माथे पर कुमकुम टीका लगाए भारत मां की धरती पर उज्वल भविष्य का बीज बोते हुए मैं चलती थी, गजगामिनी की भांति। पश्चिमी आक्रांताओं ने आक्रमण किया हमारी धरती पर। हमारी सभ्यता को लूट लिया। ३/९
काले कपड़ों के कैदी, काला कलेजा लिए आए काला काल लेकर। मुझे गृहकैद कर दिया गया। गजगामिनी अनुगामिनी बन कर रहने लगी। मुखड़ा घूंघट में कैद हो गया, मेरे विचारों पर परदा डाल दिया गया और मेरे अस्तित्व पर चादर चढ़ाई गई। ये सब होता रहा और मैं सहती रही। असहाय, बेबस, ४/९
अबला कहकर ‘स्त्री‘ ये शब्द कब केवल "औरत" (योनि से संबंधित) तक सीमित रह गया पता ही नहीं चला।
क्या मैं कमजोर थी? क्या मैं किसी षड़यंत्र का शिकार हो गई थी? कब घूंघट का परदा बन गया और कब परदे को मैं बुर्ज समझ बैठी पता ही नहीं चला। लोग यही सोचेंगे ना कि मैं सब सहती रही, ५/९
क्यों मैंने आवाज़ नहीं उठाई? मेरी चीख पहुंचती भी कैसे? जब समाज गूंगा और बहरा हो गया था। पुकारती भी किसको, आक्रोश करती भी कैसे जब इंसान इंसान ना रह कर हैवान बन, अपने आप को देवता समझ बैठा।
मैं संस्कृति हूं। मैं आज भी टिकी हूं। आक्रांताओं ने मुझ पर हमले किए, मुझे खंडित किया, ६/९
मुझे अपवित्र ठहराया।
लेकिन आज मैने वो घूंघट उतार दिया है। किसी संदेह में मत रहना कि मैं बड़े बड़े बुर्जों से डर जाऊंगी।
"मैं एक स्त्री हूं, मैं कुछ भी कर सकती हूं।"
भारत की संस्कृति ने कई वार झेले. घायल हुई लेकिन अब वो बुर्क़ा नहीं पहनेगी। ७/९
एक स्त्री यदि ठान ले कि उसे उमाभारती के लिए क्या और कैसे करना है, तब और तब ही भारत का स्वर्णिम काल निश्चित है।
मेरी सहेलियों, संस्कृति अकेली नहीं है, इस अग्निपरीक्षा में ऐसे कई देशों की संस्कृतियों को उस रेगिस्तान से बचाकर अपने घर लौटाना होगा। ८/९
संस्कृति की स्टोरी पूर्ण करने के लिए आप को भी उसका साथ देना होगा। अधिक से अधिक मात्रा में इस विषय में बोलें, इसे लोगों तक पहुंचाएं। आवाज उठाएं।
।।वन्दे मातरम्।।
रानी - राधिका देशपांडे
#thekerelastory #thinktank #Notjustafilm #mythoughts #like #share #wakeup #VipulAmrutlalShah ९/९

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with Radhika Deshpande

Radhika Deshpande Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @radhikaonstage

May 16
"चार कागद, दोन सह्या, एक शिक्का" ते "चार हात, दोन फोन, एक नाथ."
"सियावर रामचंद्र की जय"

मी १८ एप्रिल ला माझी बाजू मांडत एक पोस्ट केली होती. त्या व्हायरल झालेल्या सोशल मीडिया पोस्टचा हा उत्तरार्ध. १/९
@mieknathshinde @ChDadaPatil @Dev_Fadnavis @ponkshes Image
मी मागच्या पोस्ट मध्ये म्हणाले होते, "मी माघार घेतला, हार मानली नाही. माझी मुलं आणि मी नाटक करणार, हॉल मिळणार, दणदणीत प्रयोग आम्ही करणार पण माझ्या सकट बाल कलाकारांसाठी ज्यांनी हॉल उपलब्ध करून दिला नाही, त्रास नाही तर छळ केला त्यांना २/९ Image
हे उद्याचे नागरिक धडा शिकावल्याशिवाय राहणार नाहीत." तसेच घडले.
ताजे टवटवीत फोटो आहेत, आठवणींच्या पेटीत मऊ मखमली शालीत ठेवण्यासारखे. त्यात आहेत नेते, अभिनेते, मंत्री, महामंत्री , प्रचारक, स्वयंसेवक, महागुरू आणि डॉक्टर. फोटो वर्तमानातला आहे. ३/९ Image
Read 9 tweets
Jan 16
परीकथा

ही कथा एका परीची आहे. कथेत नाट्य आहेच. कारण परी नाटकातली आहे आणि नाटक खरंखुरं आहे, कारण कथेत मी आहे. मग त्यातली परी कोण असेल बरं? मी!😁
१९ वी महाराष्ट्र शासन बालनाट्य स्पर्धा, जळगाव येथे मी परीक्षक म्हणून गेले. नाट्य स्पर्धेत भाग घेता घेता लहानपणी स्वप्न पाहिलं होतं १/६ twitter.com/i/web/status/1…
की मोठी झाल्यावर एक दिवस मी देखील माझ्या वडीलांसारखी परीक्षक होईन.
भरपूर नाटकं पाहता येतील, परीक्षण मी धीरगंभीर चेहरा ठेवून करेन, शिष्ठासारखी नाटक बघेन. मार्क देताना पक्षपात होणार नाही ह्याची खबरदारी घेईन. माझ्या लहानपणी २/६
परीक्षक कोण आहेत, ते कसे दिसतात, त्यांचा मूड कसा आहे, त्यांनी कोणते कपडे घातले आहेत? हळूच तिरक्या नजरेने एकदातरी मी परीक्षकांना निरखून पाहायचे. आज मला पाहत असतील का पडद्या मागे लपलेले छोटे कलाकार? नक्कीच पाहत असतील. मला माझीच गम्मत वाटली. ३/६
Read 6 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Don't want to be a Premium member but still want to support us?

Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal

Or Donate anonymously using crypto!

Ethereum

0xfe58350B80634f60Fa6Dc149a72b4DFbc17D341E copy

Bitcoin

3ATGMxNzCUFzxpMCHL5sWSt4DVtS8UqXpi copy

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!

:(