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नवंबर के आख़िरी सप्ताह और दिसम्बर के पहले सप्ताह यानि लगभग 15 दिन में पाँच अलग-अलग राज्यों में जाना हुआ. दिल्ली से उड़ीसा, उड़ीसा से मध्यप्रदेश, मध्यप्रदेश से वापसी दिल्ली, फिर दिल्ली से कर्नाटक और राजस्थान, फिर दिल्ली घर वापसी. सफ़र बहुत भागदौड़ वाला रहा लेकिन थकान नहीं (2/2) 

सवर्ण जानवर को तो टच करता था, गौमूत्र और गोबर का सेवन भी करता था, लेकिन दलितों की परछाई पड़नेभर मात्र से उन्हें लिंच तक कर देता था. महिलाओं और शूद्रों को पढ़ने देने तक का अधिकार नहीं था क्योंकि यहां बीमार और दुष्ट व्यक्ति मनु का विधान चलता था. 2/2
https://twitter.com/Arjun_Mehar/status/1467079110476197894.@Arjun_Mehar भाई महिला की बॉडी है इसलिए आप शायद जजमेंटल हो गए, लेकिन एक पुरुष की बॉडी पर कोई सवाल नहीं होता जब वो नागा बन कर घूमता है, जब वो लड़कियों को देखकर हस्तमैथुन करने लगते हैं, वीर्य फेंकने लगते हैं, जब वो अपनी लपलपाती आंखों से बलात्कार करते हैं और पता नहीं क्या क्या? 1/2
अपने वजूद का पता चला, उनकी किताबों और विचारों ने हमें हमारा होना समझाया.
के लिए जो कमेंट किया है, उससे पता चलता है कि विकास को समाजिक न्याय की बिल्कुल भी समझ नहीं है, ना ही उन्हें बाबा साहेब के संघर्ष का रत्ती भर भी एहसास है. अगर समाजिक न्याय की समझ विकास को है भी तो शायद उनके मन में बाबा साहेब के प्रति घृणा का भाव है जो ज्यादातर विशेषाधिकार 1/2
सावित्री बाई फुले पढ़ाना छोड़ देंगी. लेकिन प्रथम महिला टीचर ब्राह्मणवादियों के आगे नहीं झूकीं. वे जब भी पढ़ाने जातीं तो 2 साड़ी साथ लेकर जाती. रास्ते में गोबर फेंकने वाले ब्राह्मणों का मानना था कि शूद्रों और महिलाओं को पढ़ने का अधिकार नहीं, यह पाप है, मनु के विधान के खिलाफ है 1/2
मैं साथ दूंगी उन सभी का
दलित सवर्णों के तालाब से पानी निकालने की सोच भी नहीं सकते थे, इसलिए महार जाति के लोग पेशवाओं के ब्राह्मणवादी व्यवस्था से लड़ने के लिए ब्रिटिश सेना में शामिल हुए.
पढ़िए कविता- 'ऐसे गिराना मनु की मूर्ति!'