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https://twitter.com/rangnathsingh_/status/1660486627456679937एक तो छात्र जीवन में ही इन्हें लम्बे लेख लिखने, वर्तनी-व्याकरण सुधारने की आदत होती थी। ऊपर से संपादक जो कि स्वयं वर्षों से ये काम कर रहे होते थे, उनकी निगरानी भी होती थी। जब पत्रकारिता की पढ़ाई-कोर्स किये लोग आने लगे तो खर्च बचाने के लिए संपादकों की संख्या घट गयी।
कहानी कुछ यूँ है कि एक व्यक्ति था, जिसके परिवार में तीन ही लोग - वो स्वयं, उसकी पत्नी और एक बेटा था। एक दिन सुबह वो बाजार से पाव भर मीट खरीद लाया और पत्नी को बनाने के लिए देकर खेतों पर, अपने काम पर चला गया।
https://twitter.com/TheSquind/status/1659791738125586432Bommai renovated and restored the sugar factory in Mandya which had been stopped for decades. BJP went down to the 3rd place. @BJP4India also lost Yadagiri, Haveri, and Chikmagalur constituencies that have new medical colleges now.
इससे पहले कि इस बात पर आयें कि ये तस्वीर उल्टी क्यों लग रही है हम चलें कटरा केशवदेव, यानि जिसे हमलोग आमतौर पर मथुरा के कृष्ण जन्मस्थान मंदिर के नाम से जानते हैं। पाहली बार इसे 1071 में महमूद गजनवी का हमला झेलना पड़ा था।
जाट बहुल इलाकों के इस विद्रोह में स्थानीय मीना, मेव, अहीर, गुज्जर, नरुका, पंवार सभी शामिल हो गए। मंदिरों को तोड़ने आई सेनाओं का सशस्त्र विरोध होने लगा। मथुरा के इलाके का फौजदार, अब्दुन नबी खान, विद्रोह को कुचल कर मंदिरों को तोड़ने आगे आया।
मंदिर प्रांगण में जिन मूर्तियों की पूजा होती है उन्हें लकड़ी से बनाया जाता है। मुख्यतः इसमें नीम की लकड़ी इस्तेमाल होती है। इन चारों मूर्तियों में भगवान जगन्नाथ की मूर्ती 5 फुट 7 इंच की होती है और उनके फैले हुए हाथ 12 फुट का घेरा बनाते हैं।

तीर इंडेक्स और मिडिल फिंगर, यानि की प्रथमा और मध्यमा उँगलियों के बीच पकड़ा जाता है। जैसा कि कई बार दल-हित चिन्तक बरगलाते हैं, वैसे चुटकी में पकड़कर तीर नहीं चलता। ऐसे कठिन प्रश्नों से दल हित चिंतकों को डर लगता है।
जब द्वित्तीय विश्वयुद्ध के लिए सैनिकों की जरुरत पड़ी तो जान देने वाले सैनिक कहाँ से आते? जाहिर है वो भारत जैसे देशों से लिए गए, जो फिरंगी हुक्मरानों की गुलामी करने के लिए मजबूर थे। रॉयल ब्रिटिश नेवी का भारतीय हिस्सा अपने 1939 के आकार से बढ़कर 1945 में करीब दस गुना हो चुका था।