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हर्यक वंश (544 ई. पू. से 412 ई. पू. तक),

इस वंश का सबसे प्रतापी राजा बिम्बिसार (544 ई. पू. से 493 ई. पू.) था। इस वंश ने गिरिव्रज को अपनी राजधानी बनाया। बिम्बिसार का उपनाम श्रेणिक था। हर्यक वंश कुल के लोग नागवंश की एक उपशाखा थे। इसने कौशल एवं वैशाली के राज परिवारों से
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वैवाहिक सम्बन्ध क़ायम किया। उसकी पहली पत्नी महाकोसला पसेनजीत की बहन थी, जिससे उसे काशी नगर का राजस्व प्राप्त हुआ। उसकी दूसरी पत्नी चेल्लना वैशाली के लिच्छवी प्रमुख चेटक की बहन थी। इसके
पश्चात् उसने मद्र देश (कुरु के समीप) की राजकुमारी क्षेमा के साथ अपना विवाह कर मद्रों का
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सहयोग और समर्थन प्राप्त किया। महाबग्ग में उसकी 500 पत्नियों का उल्लेख है। कुशल प्रशासन की आवश्यकता पर सर्वप्रथम बिम्बिसार ने ही ज़ोर दिया था। बौद्ध साहित्य में उसके कुछ पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं। इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

1. सब्बन्थक महामात्त (सर्वमहापात्र)- यह
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▪ चीन में कम्युनिस्ट विचारधारा को सख्ती से लागू किया जा रहा है. ऐसे में धर्मों पर बहुत दबाव है. चीनी के बौद्ध इस बात से नाराज हैं कि शियान में बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा तोड़ी जा रही है....
▪ शांक्सी के उत्तरी प्रांत में लिनफेन शहर की सरकार ने शहर के कमर्शियल सेंटर में
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तथागत बुद्ध को समर्पित एक तीन चेहरे वाली प्रतिमा को गिराने का चीनी सरकार ने आदेश दिया, जिसे जीन्यू टाउन कहा जाता है। अधिकारियों ने कहा कि बौद्ध प्रतिमाओं को दस मीटर से अधिक ऊंचाई की अनुमति नहीं है । इसे विध्वंस से बचाने के लिए, केंद्र के डेवलपर ने मूर्ति को एक नए
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स्थान पर स्थानांतरित कर दिया।
▪ मेन्झू शहर में, सांईसुई पैलेस में एक बौद्ध मंदिर के बाहर पानी के फव्वारे के साथ बनी प्रतिमा को ध्वस्त कर दिया ।
▪ ग्वांगडोंग का दक्षिणी प्रांत में इंडोनेशिया और चीनी बौद्धों द्वारा जुटाई गई धनराशि से निर्मित लगभग 23 मीटर ऊंची प्रतिमा को
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एकदा वाचुन तर बघा डोळ्यात पाणी येईल...
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांना भेटण्यासाठी किंवा त्यांचे विचार ऐकण्यासाठी लोक काय करायचे त्याचे ज्वलंत उदाहरण-
१८ जूलैला डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर नागपूर
येथे एका परिषदेसाठी गेले 'डिप्रेस्ड क्लास
ऑफ इंडिया ' ह्या आपल्या पक्षाचे नाव
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बदलून 'शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन ऑफ इंडिया '
असे नामकरण त्यांनी केले .
त्यावेळी त्यांनी तिथे भाषण केले .
भाषण झाल्यानंतर डॉ. बाबासाहेब
संध्याकाळी काही कार्यकर्त्यांसोबत
आयोजित केलेल्या स्वागत
पार्टीसाठी जात असताना अचानक
रस्त्यावर त्यांच्या समोर फाटलेल्या -
विटलेल्या
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जुनेऱ्यातील कापडी अंगावर
असलेल्या चार-पाच वृद्ध
स्त्रिया त्यांना आडव्या आल्या .
" आमचे आंबेडकरबाबा कुठं हायती जी ? "
एकीने किलकिल्या डोळ्यांनी पाहत
बाबासाहेबांनाच विचारले .
त्या स्त्रियांची अवस्था पाहून
बाबासाहेब क्षणभर स्तब्ध उभे राहिले .
" मीच आहे आंबेडकर " बाबासाहेब
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मगधातील पहिली लेणी
तथागत बुद्धांच्या निर्वाणानंतर त्याच्या अनुयायांनी वेळोवेळी संगिती ( धर्मपरिषदा ) बोलावल्या . ह्या परिषदांतून बौद्ध धर्माच्या नीतितत्त्वांची महती विशद करण्यात आली . अशी पहिली परिषद मगधचा राजा अजातशत्रू ह्याने वेभार डोंगरातील सत्तपर्णी ह्या

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लेणीत भरवली . गिरिकंदरातील एकांत , सुंदर वनसृष्टी व शांत वातावरण ह्यामुळे अशा लेण्या बौद्ध भिक्षूना सोयिस्कर ठरतील ह्या भावनेतून गुहाशिल्पांच्या निर्मितीची सुरुवात झाली असावी . बुद्धाने आपल्या अनुयायांना गिरिकंदरात व लेण्यात राहण्याचा आदेश दिला होता . मात्र

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अजातशत्रूच्या काळातील ( इसवी सनपूर्व ४ ९१-४५९ ) अशा लेण्यांची विशेष माहिती उपलब्ध नाही . डोंगराचा अंतर्गत प्रस्तर खोदून त्यातून मानवनिर्मित लेणी निर्माण करण्याचा प्रथम प्रयत्न सम्राट अशोकाच्या काळात झालेला दिसतो . अशोक व त्याचा

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इस चित्र में सम्राट अशोक के हाथ में जो राजदंड है
उस पर बैल की प्रतिमा है।
दक्षिण भारत में सतपुडा, सह्याद्री रेंज के निचले हिस्से में कृषि कार्य के लिए भैंसे का इस्तेमाल किया जाता था, जबकि गंगा और सिंधु क्षेत्र में बैल का इस्तेमाल किया जाता था ।

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भारतीय इतिहास में आर्यावर्त और दक्षिणापथ को एक करने वाले प्रथम शासक मौर्य ही थे।यानि उस समय खेती के यंत्रों का विकास हुआ औरनांगर (हल)को लोहे का फाल जोड़ा गया उसी तरह संपूर्ण जंबूद्वीप को एक सूत्र में बांधने के लिए कृषि उत्पादन पर चलने वाले व्यापार और निर्यात का

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विपुल विकास हुआ । इस समय अशोक ने जो भिक्खु भारत भर भेजे उनमें अर्हत महादेव को सतपुड़ा आंध्र अमरावती क्षेत्रों कीतरफ भेजा गया ।उन्होंने महाराष्ट्र व कर्नाटक के किसानों को कृषि कार्य के लिए रेड़े (भैंसे) की जगह बैलों के इस्तेमाल के लिए बेंदुर और पोला जैसे

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दहा पारमिता संपादन करा
मुख्य लेख: पारमिता
दहा पारमिता ह्या शील मार्ग आहेत..

1)शील : शील म्हणजे नीतिमत्ता, वाईट गोष्टी न करण्याकडे असलेला मनाचा कल.
2) दान : स्वार्थाची किंवा परतफेडीची अपेक्षा न करता दुसऱ्याच्या भल्यासाठी स्वतःची मालमत्ता, रक्त, देह अर्पण करणे.
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3) उपेक्षा : निरपेक्षतेने सतत प्रयत्‍न करीत राहणे.
4) नैष्काम्य : ऐहिक सुखाचा त्याग करणे.
5) वीर्य : हाती घेतलेले काम यत्किंचितही माघार न घेता अंगी असलेल्या सर्व सामर्थ्यानिशी पूर्ण करणे.
6) शांती : शांति म्हणजे क्षमाशीलता, द्वेषाने द्वेषाला उत्तर न देणे.
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7) सत्य : सत्य म्हणजे खरे, माणसाने कधीही खोटे बोलता कामा नये.
8)अधिष्ठान : ध्येय गाठण्याचा दृढ निश्चय.
9)करुणा : मानवासकट सर्व प्राणिमात्रांविषयी प्रेमपूर्ण दयाशीलता.
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