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Feb 12, 2023, 8 tweets

अफगानिस्तान में जैनधर्म

अफगानिस्तान प्राचीनकाल में भारत का ही भाग था, जहाँ श्री आदिनाथ के पुत्रों का शासन हुआ करता था, उस समय अखंड भारत के इस क्षेत्र जिसे वर्तमान में (अफगानिस्तान) में सर्वत्र जैन मुनि भ्रमण किया करते थे।चीनी यात्री ह्वेनसांग ६८६-७१२ ईस्वी के यात्रा के विवरण के

अनुसार कपिश देश में १० जैनमंदिर थे । वहाँ जैन मुनि भी धर्म प्रचारार्थ विहार करते हैं।
अफगानिस्तान के सुदूर प्रान्त में प्राप्त 5000 वर्ष प्राचीन 24

तीर्थंकर भगवान की प्रतिमाएं हुई। तीर्थंकर भगवान के समवसरण

को भी बहुत सुंदर तरह से उत्कृष्ट किया हुआ है ।

एक बार भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के भूतपूर्व संयुक्त महानिर्देशक श्री टी. एन. रामचंद्रन अफगानिस्तान गये । उन्होंने एक शिष्टमंडल के नेता के रूप में यह मत व्यक्त किया था, कि यहाँ जैन तीर्थंकरों के अनुयायी बड़ी संख्या में थे। उस समय एलेग्जेन्ड्रा में जैनधर्म का व्यापक प्रचार था।

अफगानिस्तान की राजधानी 'काबुल' में भी जैनधर्म का प्रसार था। वहाँ आज भी जैन - प्रतिमायें उत्खनन में निकलती रहती हैं।

हिन्द्रेशिया, जावा, मलाया, कम्बोडिया आदि देशों में जैनधर्म, इन द्वीपों के सांस्कृतिक इतिहास और विकास में भारतीयों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

इन द्वीपों के प्रारंभिक अप्रवासियों का अधिपति सुप्रसिद्ध महापुरूष 'कौटिल्य' था, जिसका कि जैनधर्म-कथाओं में विस्तार से उल्लेख हुआ है। इन द्वीपों के भारतीय आदिवासी विशुद्ध शाकाहारी थे। इन देशों से प्राप्त मूर्तियाँ तीर्थंकर मूर्तियों से मिलती जुलती है।

यहाँ पर चैत्यालय भी मिलते हैं, जिनका जैन परम्परा में बड़ा महत्व है।

• दक्षिण पूर्व काबुल की चट्टानी तलहटी में मेस अयनक स्थित मेस अयनक में 5,000 साल पुरानी एक बस्ती है जिसमें 100 एकड़ का प्राचीन मन्दिर परिसर शामिल है, जिसमें से 10 प्रतिशत की खुदाई आज तक की जा चुकी है।

अब तक, पुरातत्वविदों ने कई प्रतिमाएं, नक्काशी, पांडुलिपियों, सिक्कों, औजारों और बर्तनों को बरामद किया है और अनुमान है कि खुदाई को पूरा करने में कम से कम 30 साल लगेंगे।

हालाँकि, यह सब तब से खतरे में है जब से खान मंत्रालय ने पुरातात्विक स्थल के नीचे और आसपास स्थित तांबे के भंडार

अधिकार बेच दिए हैं।

स्पष्ट हैं, इस भरत क्षेत्र के आर्य खण्ड में सर्वत्र जैन धर्म व्याप्त रहा है, जिसके साक्ष्य यदाकदा लगभग हर देश में प्राप्त होते ही रहते हैं। पंचम काल के प्रभाव से यह वैभवशाली प्राचीनता कई वर्षो से संकुचित होती आ रही है
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