कुत्सित “स्टैण्डप-कामेडी” व्यंग्य तो दूर, न विनोद है न हास्य है, बस विवर्ण गाली-गलोज की अनायास वृत्ति है, कुण्ठिता और कुरूपा।
एक समय...
भारतेंदु हरिश्चन्द्र की बहुसंख्य गद्य एवं पद्य रचनाओं में satire पूरे उस्लास पर है। उनकी “क्यों सखि सजना? नहिं, अंग्रेज़” पर समाप्त होने वाली असंख्य पहेलियों में परिपक्व व्यंग्य पाएँगे...
प्रेमचंद के अनेकानेक कथानकों में बिना एक कटु शब्द बोले ही निपट घायल कर देने की क्षमता है - “पण्डित मोटेराम जी शास्त्री” पढ़ कर देखिये...
के पी सक्सेना ... एक और विलक्षण नाम... आपको इनके लेख सुध हैं? ...
नरेन्द्र कोहली केवल गुरु गंभीर साहित्य ही नहीं भीषण व्यंग्य भी लिखते रहे। अनेक व्यंग्य लिखे हैं। एक से बढ़ कर एक अद्भुत उपन्यास हैं...
कुण्डली छन्द से या तो गिरिधर स्मृति में आते हैं, या काका हाथरसी। सारे स्टैण्डप वालों से अधिक टैलेंट तो काका की दाढ़ी के एक बाल में रहा होगा!