इस देश के तिरंगे में जो केसरिया रंग हैं इसमें के बड़ा हिस्सा उन वीरांगनाओ का भी जिन्होंने त्याग किया हैं ।
ना जाने कितने "आरतीयो" ने अपने सिद्धार्थ ,जाने कितनी "ऋतंभराओ"ने अपने "रणविजय" इस देश की रक्षा के लिए कुर्बान कर दिए ।
#थ्रेड
इसी धरती से निकला है एक इतिहास का एक त्याग भरा किस्सा।
माँ पन्ना धाय का ।
दे दी उन्होंने धर्म के लिए अपने पुत्र की बलि ।
हमारे यहाँ कवि है "सत्यनाराण गोयनका" उन्होंने इस त्याग के लिए क्या प्रसंग लिखा है साझा करता हूँ ।
राणा सांगा के, कुम्भा के, कुल को करने निर्वश चला।
उस ओर महल में पन्ना के कानों में ऐसी भनक पड़ी।
वह भीत मृगी सी सिहर उठी, क्या करे नहीं कुछ समझ पड़ी।
तत्क्षण मन में संकल्प उठा, बिजली चमकी काले घन पर।
धन्ना नाई की कुंडी में, झटपट राणा को सुला दिया।
ऊपर झूठे पत्तल रख कर, यों छिपा महल से पार किया।
फिर अपने नन्हेंमुन्ने को, झट गुदड़ी में से उठा लिया।
राजसी वसनभूषण पहना, फौरन पलंग पर लिटा दिया।
शोणित प्यासी तलवार लिये, देखा कातिल था खड़ा वहां।
पन्ना सहमी, दिल झिझक उठा, फिर मन को कर पत्थर कठोर।
सोया प्राणोंकाप्राण जहां, दिखला दी उंगली उसी ओर।
छिन में बिजलीसी कड़क उठी, जालिम की ऊंची खड्ग उठी।
शोणित से सनी सिसक निकली, लोहू पी नागन शांत हुई।
इक नन्हा जीवनदीप बुझा, इक गाथा करुण दुखांत हुई।
जबसे धरती पर मां जनमी, जब से मां ने बेटे जनमे।
ऐसी मिसाल कुर्बानी की, देखी न गई जनजीवन में।
धरती के सब हीरेपन्ने, तुझ पर वारें पन्ना देवी।
तू भारत की सच्ची नारी, बलिदान चढ़ाना सिखा गयी।
तू स्वामिधर्म पर, देशधर्म पर, हृदय लुटाना सिखा गयी।
बड़ा होकर ये युवराज निर्माण करता है "उदयपुर" शहर को ।
ऐसी ना जाने कितनी कहानियाँ वीरता की इस धरा के डग डग पे बिखरी पड़ी हैं ।
बलिदान देना हमने माँ पन्ना धाय से सीखा हैं ।
आज भी पूरा उदयपुर शहर ,राजा उदय सिंह से पहले माँ पन्ना के आगे शीश झुकता है ।
मां से बड़ा कुछ नहीं ,उनके त्याग से बड़ा कुछ नहीं ।
ऐसी बहुत सी कहानियां है जो सिमटी पड़ी हैं इस धरा के भीतर ।