ब्रम्हांड की कुछ विशेष ऊर्जाओं के प्रति साँप बहुत संवेदनशील होते है,भगवान शिव के गले में जो साँप लिपटा है,वो किसी पर प्रतीक स्वरूप नहीं है इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण है,मानव शरीर मे कुल 114 ऊर्जा चक्र होते है।
शिवजी चन्द्रमा का उपयोग सजावट के रूप में करते है,शिवजी एक बहुत महान योगी है जो अधिकाधिक या पूरे समय सुरूर में ही रहते है,किंतु अधिक सतर्क भी रहते है,क्योंकि सुरूर का आनंद लेने के लिये आपको सतर्क रहना आवश्यक है,
भगवान शिव का त्रिशूल जीवन के 3 मूलभूत सिद्धान्तों का प्रतिनिधित्व करता है,ये जीवन के मूलभूत आयाम है जिसके कई मायने है,इसका एक मायना है,इड़ा, पिंगला,सुषुम्ना ये नाड़ियों का प्रतिनिधित्व करती है,कुल 72000 नाड़िया होती है।
नंदी प्रतीक है अनंत प्रतीक्षा का,भारतीय संस्कृति में प्रतीक्षा को सर्वश्रेष्ठ माना गया है,कौन जानता है की आराम से बैठना व प्रतीक्षा करना भी स्वाभाविक रूप से ध्यान है,नंदी आराम से बैठे है वो नही जानते कि कल शिव बाहर आयेंगे वह इंतजार कर रहे है और सदैव इंतजार करेंगे
शिवजी को हमेशा त्रिम्बक के रूप में दर्शाया गया है,क्योंकि उनके पास तीसरी आँख है,इसका ये मतलब नही की उनके माथे पर आँख है,ये एक प्रतीक है अलौकिक शक्ति है,
शिवलिंग भगवान शिव की उपस्थित को दर्शाने वाली प्रतीकात्मक छवि है,जो शिवजी की सम्पूर्ण ब्रम्हांड में और सर्वत्र शिवजी की अदृश्य उपस्थित को दर्शाता है,इसका आशय शिवजी आरंभ है लेकिन अमर है अविनाशी है,शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पूरे ब्रम्हांड की उत्पत्ति और गति है,
"ॐ नमः शिवाय"