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@VandanaJayrajan जब भी भगवान और धर्म की बात आती है तो लोग आधुनिक विज्ञान का समर्थन करते है,वो ईश्वर बनाई इस सृष्टि में घटने वाले,आश्चर्यजनक जादुई अनुभवों को भूल जाते है,हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवता है,और भगवान शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक है।
@VandanaJayrajan भगवान शिव को शिवलिंग के रूप में भी पूजा जाता है,जिसे त्रिमूर्ति अर्थात(रचयिता,रक्षक,विध्वंसक)में प्रतीक के रूप विराजमान है,भगवान शिव के बारे में कुछ वैज्ञानिक तथ्य नीचे दिये है।👇
@VandanaJayrajan 1.भगवान शिव का नाग व विशुद्धि चक्र से संबंध-:
ब्रम्हांड की कुछ विशेष ऊर्जाओं के प्रति साँप बहुत संवेदनशील होते है,भगवान शिव के गले में जो साँप लिपटा है,वो किसी पर प्रतीक स्वरूप नहीं है इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण है,मानव शरीर मे कुल 114 ऊर्जा चक्र होते है।
@VandanaJayrajan इन 114 ऊर्जा चक्रों में से 7 मौलिक चक्र गले की नलियों में रहते है और विशुद्धि चक्र गले मे कंठ के नीचे जो गड्ढे जैसा स्थान होता है वहाँ उपस्थित है,इसका साँप के साथ बहुत गहरा संबंध है,विशुद्धि चक्र जहर को रोकता है,और साँप जहर पीता है,सारे कारण एक दूसरे सर जुड़े हुए है।
@VandanaJayrajan विशुद्धि अर्थात शुद्धि अर्थात फिल्टर,विशुद्धि मानव शरीर मे फ़िल्टर का कार्य करता है,विशुद्धि जितनी शक्तिशाली होगी,व्यक्ति के शरीर की छानने की क्षमता उतनी मजबूत होगी विशुद्धि चक्र शिवजी का केन्द्र है,विशुद्धि विशाखा से जानी जाती है जो किसी भी जहर को शरीर मे प्रवेश नही करने देता,
@VandanaJayrajan जरूरी नही की जहर आपके शरीर मे भोजन के द्वारा ही जाय,जहर के प्रकार से प्रवेश कर सकता है,गलत विचार,गलत व्यवहार,अभद्र वाणी,नकारात्मक ऊर्जा आदि भी आपके शरीर को विषाक्त कर सकती है,यदि आपके शरीर की विशुद्धि सक्रिय है तो आप इन विषों से बच सकते क्योंकि फिल्टर की प्रक्रिया सुचारू होगी,
@VandanaJayrajan यह आपको इन सभी दुष्प्रभावों से बचाती है,अर्थात विशुद्धि अत्यधिक क्रियाशील होती है तो व्यक्ति की अन्तःशक्ति इतनी मजबूत होती है कि आस पास की का कोई भी दुष्प्रभाव व्यक्ति को प्रभावित नही कर पाता,व्यक्ति अन्तःकरण से अत्यधिक शक्तिशाली हो जाता है,
@VandanaJayrajan 2.शिव के वृद्धिशील होने के पीछे के वैज्ञानिक कारण
शिवजी चन्द्रमा का उपयोग सजावट के रूप में करते है,शिवजी एक बहुत महान योगी है जो अधिकाधिक या पूरे समय सुरूर में ही रहते है,किंतु अधिक सतर्क भी रहते है,क्योंकि सुरूर का आनंद लेने के लिये आपको सतर्क रहना आवश्यक है,
@VandanaJayrajan जब व्यक्ति भी मदिरा का सेवन करता है तो जागता रहता है,सुरूर का आनंद लेता है,इसी तरह योगी भी पूर्ण रुप से सुरूर में होते हुए भी पूर्ण सतर्क है,योग का विज्ञान आपको आंतरिक रूप से सुरूर में रहने का आनंद देता है,और आपको स्थिर और सतर्क भी रखता है।
@VandanaJayrajan 3.त्रिशूल का रहस्य,
भगवान शिव का त्रिशूल जीवन के 3 मूलभूत सिद्धान्तों का प्रतिनिधित्व करता है,ये जीवन के मूलभूत आयाम है जिसके कई मायने है,इसका एक मायना है,इड़ा, पिंगला,सुषुम्ना ये नाड़ियों का प्रतिनिधित्व करती है,कुल 72000 नाड़िया होती है।
@VandanaJayrajan शिवजी का डमरू केवल एक वाद्ययंत्र नही,ये प्रतीक है सम्पूर्ण ब्रम्हांड का जो लगातार विस्तारित हो रहा है और विध्वंसित भी हो रहा है और फिर विस्तारित भी हो रहा है,यह एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है
@VandanaJayrajan 5.नंदी का प्रतीक
नंदी प्रतीक है अनंत प्रतीक्षा का,भारतीय संस्कृति में प्रतीक्षा को सर्वश्रेष्ठ माना गया है,कौन जानता है की आराम से बैठना व प्रतीक्षा करना भी स्वाभाविक रूप से ध्यान है,नंदी आराम से बैठे है वो नही जानते कि कल शिव बाहर आयेंगे वह इंतजार कर रहे है और सदैव इंतजार करेंगे
@VandanaJayrajan प्रतीक्षा व्यक्ति की ग्रहणक्षमता का सार है,मंदिर जाने से पहले नंदी के पास बैठना चाहिये आप स्वर्ग जाने की कोशिश में नही न ही कुछ पाने की अपेक्षा है बस आराम से बैठे है,व्यक्ति के इस आचरण को गलत समझा जाता है किंतु ये एक गुण है
@VandanaJayrajan प्रार्थना का मतलब है आप भगवान से बात करने की कोशिश कर रहे है,ध्यान का मतलब आप भगवान को सुन रहे है,आपके पास बोलने को कुछ नही केवल सुने आराम से बैठ कर ये ही नंदी का गुण व विशेषता है,नंदी बहुत सतर्कता से बैठे है ना कि निष्क्रिय होकर ,यही ध्यान है,
@VandanaJayrajan सुषुम्ना मानव शरीर विज्ञान का महत्वपूर्ण पहलू है,जीवन तभी शुरू होता है जब सुषुम्ना में ऊर्जा का प्रवाह होता है,आप आंतरिक संतुलन प्राप्त करते है,जो कुछ भी बाहर होता वो आपके भीतर एक स्थान होता है,जो कभी भी विचलित नही होता वहाँ तक बाहरी स्थितियों का प्रभाव नही होता
@VandanaJayrajan शिवजी की तीसरी आँख-:
शिवजी को हमेशा त्रिम्बक के रूप में दर्शाया गया है,क्योंकि उनके पास तीसरी आँख है,इसका ये मतलब नही की उनके माथे पर आँख है,ये एक प्रतीक है अलौकिक शक्ति है,
@VandanaJayrajan यदि आप अपनी अन्तःशक्ति को विकसित व शक्तिशाली करना चाहते है,तो आपको स्वयं अपनी आंतरिक ऊर्जाओं को योग व ध्यान की क्रियाओं के द्वारा जागृत करना पड़ेगा,जब आपकी आंतरिक ऊर्जाएं जागृत हो जाएंगी तो आपको स्वयं में शक्ति का अहसास होगा,अर्थात तीसरे नेत्र के खुलने की अनुभूति होगी।
@VandanaJayrajan वास्तव में शिवजी की तीसरी आँख ही दृष्टि की है जिससे सुरुरावस्था में भी सम्पूर्ण ब्रम्हांड पर नज़र रहे,और 2 आँखे संवेदनशील अंग की तरह कार्य करती है इसलिये कहते है संसार एक भ्रम है,मोह है,इसका मतलब यह नही की संसार मे सब मोह है,बस जो लालच आपको है जो आप सोच रहे है वो मोह है।
@VandanaJayrajan तीसरी आँख का आशय शरीर की आंतरिक उर्जा को जागृत करना,तीसरी आँख खुलने का मतलब आप सांसारिक मोह माया से परे हो गये है,आप जीवन को सिर्फ सात्विक दृष्टि अर्थात जीने के लिये जो जरुरी भौतिक साधना की आवश्यकता है,वहाँ तक अपने खुद को सीमित कर लिया है
@VandanaJayrajan 7.शिवलिंग
शिवलिंग भगवान शिव की उपस्थित को दर्शाने वाली प्रतीकात्मक छवि है,जो शिवजी की सम्पूर्ण ब्रम्हांड में और सर्वत्र शिवजी की अदृश्य उपस्थित को दर्शाता है,इसका आशय शिवजी आरंभ है लेकिन अमर है अविनाशी है,शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पूरे ब्रम्हांड की उत्पत्ति और गति है,
@VandanaJayrajan भगवान शिव कृपालु है,दयालु है अनादि है अविनाशी है,वो परिवर्तनशील व अपरिवर्तनशील है,भोले-भाले है इसलिये उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है,लेकिन साथ साथ तांडव के रूप में उच्च क्रोध का पर्याय भी है,शिव मृत्यु के या मोक्ष के बाद के जीवन का भी प्रतीक है,
@VandanaJayrajan भगवान शिव को कई नामों से पुकारा या जाना जाता है,महादेव,भोलेनाथ,नीलकंठ,त्रिलोकेश्वर,श्रीकांत,गंगाधर, जटाधर,मृत्युंजय,आदि ऐसे कुल 108 नाम है,औऱ भारतीय संस्कृति में व शास्त्रों में 108 का बहुत महत्व है,जाप करने की माला में 108 मनके शिव के प्रतीकात्मक है ऐसा कह सकते है,
@VandanaJayrajan और अंत में मैं वंदना मैडम,को धन्यवाद करता हूँ इतनी अच्छी जानकारी साझा करने के लिये,भारतीय संस्कृति व सृष्टि के निर्माता भगवान शिव के ब्रम्हांड में अस्तित्व से देश व जनता को रूबरू कराया,
"ॐ नमः शिवाय"
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