सरस्वती एक पौराणिक नदी जिसकी चर्चा वेदों में भी है,ऋग्वेद (२ ४१ १६-१८) में सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है,यह नदी सर्वदा जल से भरी रहती थी और इसके किनारे अन्न की प्रचुर उत्पत्ति होती थी,
सरस्वती नदी का नाम तो सभी ने सुना लेकिन उसे किसी ने देखा नहीं,माना जाता है कि प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है इसीलिए उसे त्रिवेणी संगम कहते हैं।
3
पांच सवाल हैं:-
1.क्या कभी सरस्वती नदी का अस्तित्व था?
2.था तो क्या है इसका वैज्ञानिक आधार?
3.यदि सरस्वती नदी थी तो वह क्यों लुप्त हो गई?
4. क्या सरस्वती नदी कभी गंगा से मिली?
5.यदि सरस्वती नदी थी तो क्या था उसका इतिहास?
सिंधु नदी
अधिकतर इतिहासकार भारत के इतिहास की पुख्ता शुरुआत सिंधु नदी की घाटी की मोहनजोदड़ो और हड़प्पाकालीन सभ्यता से मानते थे लेकिन अब जबसे सरस्वती नदी की खोज हुई है,भारत का इतिहास बदलने लगा है,अब माना जाता है कि यह सिंधु घाटी की सभ्यता से भी कई हजार वर्ष पुरानी है।
माना जाता है कि सुमेरू के ऊपर अंतरिक्ष मे ब्रह्माजी का लोक है जिसके आस-पास इंद्रादि लोकपालो की 8नगरियां बसी है,गंगा नदी चंद्रमंडल को चारो ओर से आप्लावित करती हुई ब्रह्मलोक(हिमवान पर्वत)मे गिरती है और सीता,अलकनंदा,चक्षु और भद्रा नाम से 4भागो मे विभाजित हो जाती है
समुद्र में मिल जाती है?
सीता पूर्व की ओर आकाश मार्ग से एक पर्वत से दूसरे पर्वत होती हुई अंत में पूर्व स्थित भद्राश्ववर्ष (चीन की ओर) को पार करके समुद्र में मिल जाती है।
संस्कृत ग्रंथों के अनुसार?
धर्म और संस्कृत ग्रंथों के अनुसार सरस्वती का अस्तित्व था,ऋग्वेद में सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है और इसकी महत्ता को दर्शाया गया है संस्कृत की कई पुस्तकों में भी इसका उल्लेख है सरस्वती को भी सिन्धु नदी के समान दर्जा प्राप्त है,
ऋग्वेद के अनुसार?
ऋग्वेद की ऋचाओं में कहा गया है कि यह एक ऐसी नदी है जिसने एक सभ्यता को जन्म दिया। इसे भाषा, ज्ञान, कलाओं और विज्ञान की देवी भी माना जाता है,ऋग्वेद की ऋचाओं को इस नदी के किनारे बैठकर ही लिखा गया था, लेकिन इस नदी के अस्तित्व को लेकर बहुत वाद-विवाद हुआ है।
ऋग्वेद में सरस्वती?
ऋग्वेद में सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है,महाभारत में सरस्वती नदी के प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती आदि कई नाम हैं। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को 'यमुना के पूर्व' और 'सतलुज के पश्चिम' में बहती हुई बताया गया है,
महाभारत में सरस्वती?
महाभारत में भी सरस्वती का उल्लेख है और कहा गया है कि यह गायब हो गई नदी है। जिस स्थान पर यह नदी गायब हुई, उस स्थान को विनाशना अथवा उपमज्जना का नाम दिया गया,..
फ्रेंच प्रोटो-हिस्टोरियन माइकल डैनिनो
एक फ्रेंच प्रोटो-हिस्टोरियन माइकल डैनिनो ने नदी की उत्पत्ति और इसके लुप्त होने के संभावित कारणों की खोज की है,वे कहते हैं कि ऋग्वेद के मंडल 7वें के अनुसार एक समय पर सरस्वती बहुत बड़ी नदी थी, जो कि पहाड़ों से बहकर नीचे आती थी,
नदी के मूल मार्ग का पता?
उन्होंने बहुत से स्रोतों से जानकारी हासिल की और नदी के मूल मार्ग का पता लगाया,ऋग्वेद में भौगोलिक क्रम के अनुसार यह नदी यमुना और सतलुज के बीच रही है और यह पूर्व से पश्चिम की तरह बहती रही है,
करीब 5 हजार वर्ष पहले?
डैनिनो का कहना है कि करीब 5 हजार वर्ष पहले सरस्वती के बहाव से यमुना और सतलुज का पानी मिलता था। यह हिमालय ग्लेशियर से बहने वाली नदियां हैं,इसके जिस अनुमानित मार्ग का पता लगाया गया है,
पटियाला से करीब?
पटियाला से करीब 25 किमी दूर दक्षिण में सतलुज (जिसे संस्कृत में शतार्दू कहा जाता है) एक उपधारा के तौर पर सरस्वती में मिली,
नदी के होने के प्रमाण?
इस क्षेत्र में नदी के होने के कुछ और प्रमाण हैं। इसरो के वैज्ञानिक एके गुप्ता का कहना है कि थार के रेगिस्तान में पानी का कोई स्रोत नहीं है लेकिन यहां कुछ स्थानों पर ताजे पानी के स्रोत मिले हैं,
सेटेलाइट चित्र -:
यह 6 नदियों की माता सप्तमी नदी रही है। यह 'स्वयं पायसा' (अपने ही जल से भरपूर) औरौ विशाल रही है। यह आदि मानव के नेत्रोन्मीलन से पूर्व काल में न जाने कब से बहती रही थी। एक अमेरिकन उपग्रह ने भूमि के अंदर दबी इस नदी के चित्र खींचकर पृथ्वी पर भेजे,
सतलुज और यमुना नदी?
उनका यह भी कहना है कि किसी समय सतलुज और यमुना नदी इसी नदी में मिलती थी। सेटेलाइट द्वारा भेजे गए चित्रों से पूर्व भी बहुत भूगर्भ खोजकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके हैं,
प्रवाह?
अगर सतलुज और यमुना के प्रवाह में आप सरस्वती का भी प्रवाह जोड़ देंगे तो आपको इसका अंदाजा होगा कि इस नदी की क्या ताकत रही होगी,
पृथ्वी की संरचना?
ऐसा प्रतीत होता है कि पृथ्वी की संरचना आंतरिकी में हुए बदलाव के चलते सरस्वती भूमिगत हो गई और यह बात नदी के प्रवाह को लेकर आम धारणा के काफी करीब है,
वैश्विक सूखा?
लगभग इसी काल में एक वैश्विक सूखा पड़ा जिसके कारण संसार की सभ्यताएं प्रभावित हुईं और इसका दक्षिण योरप से लेकर भारत तक पर असर हुआ। करीब 2200 ईसा पूर्व में मेसोपोटेमिया की सुमेरियाई सभ्यता पूरी तरह खत्म हो गई,
धाराएं समाप्त हो गईं?
भूकम्पों जैसे बड़े भौगोलिक परिवर्तनों के चलते नदी की दोनों ही बड़ी धाराएं समाप्त हो गईं। इसका एक परिवर्तन यह भी हुआ कि राजस्थान का बहुत बड़ा इलाका बंजर हो गया,
वैज्ञानिक शोध-:
सरस्वती नदी कभी गंगा नदी से मिली या नहीं मिली, यह शोध का विषय अब भी बना हुआ है। वैदिक काल में एक और नदी दृषद्वती का वर्णन भी आता है। यह सरस्वती नदी की सहायक नदी थी,
सरस्वती लुप्त हो गई?
एक और जहां सरस्वती लुप्त हो गई, वहीं दृषद्वती के बहाव की दिशा बदल गई। इस दृषद्वती को ही आज यमुना कहा जाता है,इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है,
धार्मिक उल्लेख-:
महाभारत (शल्य पर्व) में सरस्वती नामक 7 नदियों का उल्लेख किया गया है। एक सरस्वती नदी यमुना के साथ बहती हुई गंगा से मिल जाती थी
प्राचीन धारा?
उस सरस्वती नदी की प्राचीन धारा भी अब नियमित रूप से प्रवाहित नहीं होती है। उसके स्थान पर 'सरस्वती' नामक एक बरसाती नाला है, जो अंबिका वन के वर्तमान स्थल महाविद्या के जंगल में बहकर जाता हुआ यमुना से मिलता है। साथ ही सरस्वती कुंड भी है,
ब्रह्मपुत्र?
भारत के एक और सिन्धु नदी और उसकी सहायक नदियां बहती हैं तो दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियां बहती हैं। दोनों के बीच सरस्वती, यमुना और गंगा का जल भारत के हृदय में है। पांचों और उनकी सहायक नदियों से जुड़ा यह संपूर्ण क्षेत्र भारतवर्ष कहलाता था,
सरस्वती का उद्गम-:
वैदिक धर्मग्रंथों के अनुसार धरती पर नदियों की कहानी सरस्वती से शुरू होती है। सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती सर्वप्रथम पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से प्रकट हुई।
सरस्वती का उद्गम, मार्ग और लीन-:
महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा-सा नीचे आदिबद्री नामक स्थान से निकलती थी। आज भी लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं
सरस्वती के निकट ही दृषद्वती नदी बहती?
सरस्वती के निकट ही दृषद्वती नदी बहती थी,मनु ने सरस्वती और दृषद्वती नदियों के दोआब को 'ब्रह्मावर्त' प्रदेश की संज्ञा दी है,ब्रह्मावर्त का निकटवर्ती भू-भाग 'ब्रह्मर्षि प्रदेश' कहलाता था,
सरस्वती के तीर्थ-:
पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से आगे सुप्रभा तीर्थ से आगे कांचनाक्षी से आगे मनोरमा तीर्थ से आगे गंगाद्वार में सुरेणु तीर्थ, कुरुक्षेत्र में ओधवती तीर्थ से आगे हिमालय में विमलोदका तीर्थ हैं,
हड़प्पा, सिंधु और मोहनजोदड़ों सभ्यता?
हड़प्पा, सिंधु और मोहनजोदड़ों सभ्यता का प्रथम चरण 3300 से 2800 ईसा पूर्व, दूसरा चरण 2600 से 1900 ईसा पूर्व और तीसरा चरण 1900 से 1300 ईसा पूर्व तक रहा। इतिहासकार मानते हैं कि यह सभ्यता काल 800 ईस्वी पूर्व तक चलता रहा,
2003 से लेकर 2008-अध्ययन?
इसी बात का समर्थन करने वाला एक और अध्ययन 2003 से लेकर 2008 में किया गया। यह अध्ययन रोमानिया, पाकिस्तान, भारत, ब्रिटेन और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने किया था,
हड़प्पा काल के शुरुआती स्थल?
हड़प्पा काल के शुरुआती स्थल घग्घर-हाकरा नदी घाटी में थे, कुछ सिंधु घाटी में तो कुछ गुजरात में थे। बाद के समय में घग्घर-हाकरा घाटी में ऐसे स्थलों की संख्या कम होती गई और गंगा के मैदान तथा सौराष्ट्र में बढ़ गई,