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देव उठनी एकादशी पर तुलसी विवाह क्यो?

इसे जानने के लिये ये जानना जरूरी है कि तुलसी कौन थी व इसकी उत्पत्ति कैसे हुई,
तुलसी कौन थी?

पौराणिक कथानुसार``तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था,राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा,पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,
जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.
वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.
एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा```
स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर```आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते,मैं अपना संकल्प
नही छोडूगी,जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी,
उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके,सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता,
फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है,
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिये,
जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ,और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये,
सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी,
उनकी राख से एक पौधा निकला तब
भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से
इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे "शालिग्राम" के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी जी के भोग``````स्वीकार नहीं करुगा,
तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे,
और तुलसी जी का विवाह " शालिग्राम जी "के साथ कार्तिक मास में``````किया जाता है.
देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है,
देवउठनी एकादशी,
इस एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी,देवोत्थान एकादशी और देव उठनी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है,देव उत्थानी और देवउठनी के नाम से भी जाना जाता है,कार्तिक मास शुक्ल पक्ष एकादशी हिंदू धर्म के लिए काफी खास मानी जाती है,
माना जाता है कि भगवान विष्णु कार्तिक मास के शुरू होने से 4 महीने पूर्व ही सो जाते हैं,इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य हिंदू धर्म में नही किया जाता है,
देवउठनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु अपनी निद्रा को त्यागते हैं,
विष्णु पुराण के मुताबिक भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक राक्षस का वध करने के बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को क्षीर सागर में श्री हरि ने शेषनाग की शय्या पर शयन किया था,और
4 माह बाद भगवान ने अपनी निद्रा तोड़ी थी तब से इसे हिंदू धर्म में खास महत्व दिया जाता है,
इस एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी,देवोत्थान एकादशी और देव उठनी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है,वहीं भगवान की शयन को निद्रा अल्पनिद्रा और योगनिद्रा कहा जाता है,
पौराणिक मान्यताओं व ज्योतिष के हिसाब से इस दिन किये जाने वाले कार्य

1)
इस दिन तुलसी के पौधे के निकट गाय के घी मे दीपक जलाने साथ ही ओम् वासुदेवाय नमः मंत्र के जाप करते हुए 11 बार परिक्रमा करने से पूरे साल लक्ष्मी और विष्णु की कृपा बनी रहती है। इससे कभी भी आर्थिक संकट नहीं आता है
2)
धन की इच्छा रखने वाले लोग इस दिन किसी भी विष्णु मंदिर में जाकर सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इस दौरन खीर और मिठाई में तुलसी का पत्ता रखना ना भूलें

3)
नारियल और बादाम भी मंदिर में चढ़ाने से भगवान विष्णु खुश होते हैं,
4)
इस दिन पीले रंग का वस्त्र, पीले रंग के फूल, पीले रंग के फल या अनाज का दान करने या गरीबों में बांटने से भी भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है,

5)
इस दिन तीर्थ स्थान पर जाकर स्नान करें और गायत्री मंत्र का जाप करें,इससे सौभाग्य का प्राप्ति होती है,
6)
इस दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है,दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है,

देवी तुलसी आठ नामों वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नंदिनी, कृष्णजीवनी और तुलसी नाम से प्रसिद्ध हुईं हैं,
श्री हरि के भोग में तुलसी दल का होना अनिवार्य है,
भगवान के गले मे माला और चरणों में तुलसी चढ़ाई जाती है,
हिंदू धर्म में मंत्रों का काफी महत्व माना जाता है, करीब सारे विधि विधान मंत्रों के द्वारा ही संपन्न होते हैं,
देवउठनी एकादशी के दिन मंत्रोच्चारण, स्त्रोत पाठ, शंख घंटा ध्वनि एवं भजन-कीर्तन द्वारा देवों को जगाने का भी विधान है,
इस दिन ये मंत्रोच्चार करें-:

उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥

उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥

शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
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