सन 711ई. की बात है।अरब के पहले मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने मुल्तान विजय के बाद एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था।हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं।
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तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी,उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी।फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला
आठ वर्ष का बालक तक्षक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था,उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी,और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतो से होकर
25 वर्ष बीत गए।अब वह बालक बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था।वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था।वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी।उसकी आँखे सदैव प्रतिशोध की वजह से अंगारे की तरह लाल
इस बार फिर से सभा बैठी थी,अरब के खलीफा से सहयोग लेकर सिंध
महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर,बोले-"अपनी बात खुल कर कहो तक्षक,हम कुछ समझ नही पा रहे।"
"महाराज,अरब सैनिक महाबर्बर हैं,उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे।
महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले-
"किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक।"
तक्षक ने कहा-"मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों।ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज।इनके लिए हत्या और बलात्कार
"पर यह हमारा धर्म नही हैं बीर"
"राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज,और वह है प्रजा की रक्षा।देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज,जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था।ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर
महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा,सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था।महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए।
आधी रात्रि बीत चुकी थी।अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी।अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी।
इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था।वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी। आज माँ और बहनों
उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर
विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा,उनमे तक्षक का कहीं पता नही था।सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा-लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही
*इतिहास साक्षी है,इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों कीें भारत की तरफ आँख उठा कर
तक्षक ने सिखाया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण दिए ही नही,लिए भी जाते है,साथ ही ये भी सिखाया कि दुष्ट सिर्फ दुष्टता की ही भाषा जानता है,इसलिए उसके दुष्टतापूर्ण कुकृत्यों का प्रत्युत्तर उसे उसकी ही भाषा में देना चाहिए अन्यथा वो आपको कमजोर ही समझता रहेगा
भारत के इतिहास की यह गौरवशाली कथा उच्च कोटि की ही है।
बस आपसे इतना निवेदन है कि
पसन्द आये तो forward अवश्य करें
फारवर्ड ऐसे लोगो को करें जो इसको समझे साभार
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले-"किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक। "
तक्षक ने कहा-"मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों।ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज।इनके लिए हत्या और बलात्कार ही
"पर यह हमारा धर्म नही हैं बीर"
"राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज,और वह है प्रजा की रक्षा।देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज,जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था।ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो
महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा,सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था।महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ गए।
आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पडी।
इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था।वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी।आज माँ और बहनों की
उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर
विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था।सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा-लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक
*इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों कीें भारत की तरफ आँख
*तक्षक ने सिखाया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण दिए ही नही, लिए भी जाते है, साथ ही ये भी सिखाया कि दुष्ट सिर्फ दुष्टता की ही भाषा जानता है, इसलिए उसके दुष्टतापूर्ण कुकृत्यों का प्रत्युत्तर उसे उसकी ही भाषा में देना चाहिए अन्यथा वो आपको कमजोर
*विनम्र निवेदन*
भारत के इतिहास की यह गौरवशाली कथा उच्च कोटि की ही है।
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फारवर्ड ऐसे लोगो को करें जो इसको समझे साभार
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