श्रीमज्जगद्गुरु भगवत्पाद आद्यशंकराचार्यजी का आविर्भाव अखण्डभारतवर्ष में दक्षिणभारत के केरलप्रदेश में स्थित नम्बूदरीपाद ब्राह्मणों के "कालड़ी ग्राम" में ७८८ ई. में हुआ था।
उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तरभारत में व्यतीत किया।
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#आदिशंकराचार्य
उनके द्वारा स्थापित "अद्वैतवेदान्त सम्प्रदाय"
9वीं शताब्दी में काफी लोकप्रिय हुआ।
उन्होंने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सनातन सिद्धान्तों को पुनर्जीवित किया।
उन्होंने ईश्वर को पूर्ण वास्तविक स्वरूप में स्वीकार किया और साथ ही इस जगत् को मायामय एवं मिथ्या बताया।
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शंकराचार्य ने संन्यासाश्रम की अक्षुण्णता हेतु भारत के चारों दिशाओं में चारपीठों की स्थापना की।
'गीता' अनुसार जब धर्म की हानि होती है, तब ईश्वरावतार होता है।
धर्म और समाज को व्यवस्थित करने के लिए भगवान् शिव ही आद्यशंकराचार्य के रूप में पधारे।
#शिवसर्वज्ञाचार्य_शास्त्रार्थसभा
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7 वर्ष की आयु में वेदाध्ययन..
8 वर्ष में संन्यास..
16 वर्ष में ग्रन्थलेखन पूर्ण करके विद्वानों से शास्त्रार्थ हेतु शंकरदिग्विजय पदयात्रा ..
32 वर्ष की आयु में केदारनाथ धाम में समाधिस्थ हुए..
भगवत्पाद आद्यशंकराचार्य को नमन।
#शिवसर्वज्ञाचार्य_शास्त्रार्थसभा
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