भर्तृहरि ने लिखा है—
ददतु ददतु गालीर्गालिमन्तो भवन्तो
वयमपि तदभावाद्गालिदानेसमर्थाः।
जगति विदितमेतद्दीयते विद्यमानं
न हि शशकविषाणं कोऽपि कस्मै ददाति॥
(वैराग्यशतक, संकीर्णश्लोक २५)
कोई गाली दे तो भर्तृहरि के समान उत्तर में “गालिमन्तो भवन्तः”/“आप तो गालीवाले हैं” कह दीजिए।