आइए बात करते हैं उस अमर बलिदानी की जिसने इस जघन्य हत्याकांड का प्रतिशोध लेने के लिए 21साल प्रतीक्षा की..
#उधम_सिंह
चाचा ने नेशनल हेराल्ड में लिखा,"इस हत्या पर दुख है किंतु पूरी आशा है कि इस से भारत के राजनीतिक भविष्य पर कोई दूरगामी प्रभाव नहीं पड़ेगा।"
ये दोनों ही वक्तव्य 15/3/1940 के 'नेशनल हेराल्ड' और 'हरिजन'में प्रकाशित हुए।
उधम सिंह का जन्म 26/12/1899 को पंजाब के गाँव उपाली में हुआ जहाँ उनके किसान पिता सरदार टहल सिंह उपाली रेल्वे क्रॉसिंग पर चौकीदार का काम करते थे।उनके बचपन का नाम शेर सिंह था।
अनाथालय में शेर सिंह ने सिख धर्म की दीक्षा ली जिसके बाद उन्हें उधम सिंह नाम दिया गया।
1918 में मैट्रिक पास करने के बाद 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया।
उन्होंने निर्दोष मारे गए लोगों का बदला लेने की ठानी।
उन्हें क्रांति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाले सरदार भगतसिंह थे।
1924 में उधमसिंह गदर पार्टी से जुड़े।
उनके पास अवैध हथियार और गदर पार्टी का प्रतिबंधित परचा गदर-इ-गूंज (क्रांति की आवाज़) का बरामद होना। उन पर मुकदमा चला और पाँच साल की कैद हुई।
1931 में जेल से बाहर आने पर उनकी गतिविधियों पर नजर रखी जाने लगी।
13 मार्च 1940 को माईकल ओ डायर केक्सटन हाल, लंदन में ईस्ट इंडिया संगठन और सेंट्रल एशियन सोसायटी की संयुक्त बैठक को संबोधित करने वाले थे।
बुढ़े होने तक प्रतीक्षा करने का क्या अर्थ है?
मरना तो जवानी में ही चाहिए..वही सही है और मैं वही कर रहा हूँ।
उन्होंने कहा कि
मैं अपने देश के लिए जान दे रहा हूँ ।
मैंने ऐसा किया क्यों कि मेरी उससे दुश्मनी थी।"
और मातृभूमि के लिए प्राण देने से बढ़ कर कोई सम्मान क्या होगा।"
फिर न्यायाधीश की ओर देख कर उन्होंने कहा,"ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो। आप कहते हैं कि भारत में शांति नहीं है। हमारे यहाँ सिर्फ़ गुलामी है।"
उधम सिंह ने इस प्रकार बहुत सारी खरी बातें वहाँ कहीं।
यह वक्तव्य 1996 में सार्वजनिक किया गया।
उन्हें हत्या का दोषी मानते हुए मृत्यु दंड दिया गया और 31/7/1940 को फाँसी दे दी गई।
बस इतना ही।
@Sheshapatangi की ट्वीट श्रँखला का हिंदी अनुवाद।
वंदेमातरम..🙏