पूज्य पुरुषों की वंदना-स्तुति हमें पूज्य बनने की प्रेरणा देती है। इतना ही नहीं उनके मार्ग पर चलकर हम उन जैसा भी बन सकते हैं। हमारे आराध्य पूज्य नवदेवता हैं-
अरिहन्त जी
सिद्ध जी
आचार्य जी
उपाध्याय जी
साधु जी
जिन धर्म
जिन अागम
जिन चेत्य
जिन चैत्यालय
जीव जिस पद में स्थित होकर आत्म - साधना करते हुए अन्तत: मोक्ष-सुख को प्राप्त करते हैं उस पद को परम पद कहा जाता है।
परमेष्ठी ५ हैं - अरिहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और साधु परमेष्ठी।
जिन्होंने चार घातिया कर्मों को नष्ट कर दिया हैं तथा जो अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य, अनंत सुख रूप अनंत चतुष्टय से युक्त हैं। समवशरण में विराजमान होकर दिव्यध्वनि के द्वारा सब जीवों को कल्याणकारी उपदेश देते हैं, वे अरिहंत परमेष्ठी कहलाते हैं।
(भव्य जीव - सम्यक दृष्टि जो मोक्ष मार्गी है
संघ - साधुओं का संघ)
साधु परमेष्ठी - जो ज्ञान, ध्यान, तप में लीन रहते हैं, आरंभ परिग्रह से रहित पूर्ण दिगम्बर मुद्राधारी साधु परमेष्ठी कहलाते हैं।
जिनागम का स्वरूप - जिनेन्द्र प्रभु द्वारा कथित वीतराग वाणी को जिनागम ..
जिन चैत्य का स्वरूप - साक्षात् तीर्थकर, केवली भगवान के अभाव में धातुपाषाण आदि से तद्रूप जो रचना की जाती है उसे चैत्य कहते हैं।
जिन चैत्यालय का स्वरूप - जिन चैत्य जहाँ विराजमान होते हैं उसे चैत्यालय कहते हैं। जिन चैत्यालय को समवशरण, मंदिर, जिनगृह, देवालय इत्यादि अनेक शुभ नामों से जाना जाता है।
(स्वाध्याय, आचार्य विद्यासागर नेट से)