न फेरे, न हवन, न सिंदूर, न देववाणी में मंत्र बल्कि आम जन की भाषा में प्रतिज्ञापन, नि:शुल्क साथ में प्रमाण पत्र
● 1.#फेरे_क्यों_नहीं?
सात फेरों का रहस्य का खुलासा करते हुए डॉ. आंबेडकर लिखते हैं। आर्यों में एक ऐसा वर्ग था जिन्हें देव कहा
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(बाबा साहब डॉ अंबेडकर संपूर्ण वांग्मय खंड 8 पृष्ठ 303-304, खंड 7 पृष्ठ 38)
● 2.#सिंदूर_क्यों_नहीं?
मुगल आक्रमणकारी भी अपने साथ औरतें
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3. #हवन_क्यों_नहीं?
खाने-पीने की चीजों को जलाना कहाँ का औचित्य है। यह सभी जानते हैं।
सत्यशोधक समाज द्वारा प्रतिपादित विवाह पद्धति
राष्ट्रपिता फूले ने 1876 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की। सत्यशोधक समाज के माध्यम से ज्योतिराव फूले ने
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सत्यशोधक समाज के माध्यम से 25.9.1873 को पूणे के सीताराम और राधाताई व दूसरा विवाह 7.5.1876 को पुणे में ही ज्ञानोबा कृष्णा और काशीबाई के बीच हुआ। ब्राह्मणों को पता चला तो खलबली मच गई। ब्राह्मणों ने घोषणा कर दी कि सत्यशोधक समाज धर्म और देशद्रोही है।
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पूना के ब्राह्मण पुरोहितों ने चंदा इकट्ठा करके मुकदमा कर दिया। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि दूसरी जातियों के लोग ब्राह्मण पुरोहितों के बिना विवाह कर सकते हैं। इस कानूनी निर्णय से महाराष्ट्र को नई धार्मिक दृष्टि मिली और धर्म के
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● *बौद्ध_विवाह_पद्धति*
बौद्धिस्ट विवाह संस्कार में किसी धम्मचारी द्वारा वर वधु को
त्रिशरण और पंचशील ग्रहण कराया जाता है,इस पद्धति से
विवाह में वर-वधू को प्रमाण पत्र भी दिया जाता है प्रतिज्ञापन के तुरंत बाद वर-वधू
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चलो बुद्ध की ओर
जय भीम
नमो बुद्धाय,