एक कृष्णमय पद्य का आनन्द लें।
कृष्णः कंसरिपुर्जयत्यनुदिनं कृष्णं कृपाब्धिं भजे
कृष्णेनाभिहता तमीचरचमूः कृष्णाय तस्मै नमः।
कृष्णान्नास्त्यपरो दयापरतरः कृष्णस्य पादौ श्रये
कृष्णे यातु विलीनतां मम मनो भोः कृष्ण मां पालय॥
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पद्य में ‘कृष्ण’ शब्द के सभी विभक्तियों में एकवचन रूप आए हैं।
हिन्दी अनुवाद: नित्यानन्द मिश्र।