१. नए अध्यादेश में एमएसपी का कहीं जिक्र नहीं है.
यह प्रश्न उठाने वाले यह शंका जाहिर कर रहे हैं कि व्यापारी किसानों से मनमाने कीमत पर उनके घर जाकर उनका माल खरीद लेंगे. ऐसा कहते हुए वे मानो यह आभास दे रहे हैं कि कृषि उत्पन्न बाजार समिति में होने वाले सौदों में पहले #Farmersbill2020
एमएसपी की कोई गारंटी हुआ करती थी. सच्चाई यह है के देश के किसी भी राज्य का कोई भी कृषि उत्पन्न बाजार समिति कानून किसी व्यापारी को एमएसपी से नीचे माल खरीदने के आरोप में कोई सजा नहीं देता है और ना ही किसानों को ऐसी कोई गारंटी पहले उपलब्ध थी. #APMCAct
केंद्र की सरकार एमएसपी पर अपनी एजेंसी के मार्फत कृषि उपज की खरीदी करती रही है. केन्द्र सरकार पहले ही जाहिर कर चुकी है कि उसकी खरीदी पहले की ही तरह शुरू रहनेवाली है.
२. इन कानूनों के बाद बड़ी कंपनियां बाजार में उतर जाएगी और किसानों का शोषण होगा.
आज भी बड़ी कंपनियां जैसे आईटीसी आदि किसानों का माल खरीदती है, बस होता इतना ही है कि वह इस माल को कृषि उत्पन्न बाजार समिति के प्रांगण में खरीदती हैं अथवा अपने गोडाउन पर यदि ख़रीदे तो उसकी #ITC#APMCs
दलाली मंडी के ऑफिस में भेज देती हैं. आज भी बड़ी कंपनियों के इस बाजार में आने पर कोई बंदी नहीं है और आगे भी बंदी नहीं रहने वाली है. इसलिए यह भय फैलाना कि इससे किसान लूट का शिकार हो जाएगा, पूरी तरह से झूठ बात है और जिसका विरोध किया जाना चाहिए. #mandi
उलटे इस कानून के बाद हजारों युवा कृषि विपणन के क्षेत्र में उतर सकते हैं और देश के दो बाजार के बीच के भाव फर्क से लाभ कमा सकते हैं.
यह तीनों अध्यादेश उस कब्जे को खत्म करने की दिशा में आज तक के इतिहास के सबसे गंभीर कदम है. We support #FarmersBills
३. कृषि उत्पन्न बाजार समिति में काम करनेवाले दलालों, मजदूरों का क्या होगा?
उनका काम एक केन्द्र पर ना होकर बड़े क्षेत्र में विस्तारित हो जायेगा. दलाली के बिना कोई व्यापार संभव नहीं है. मोबाईल का उपयोग करके कोई भी किसान किसी भी दूर के व्यापारी को अपना माल बता सकता है, #Majdur
कीमत की बातचीत तय करके वह माल की गाड़ी नियत स्थान पर भेज कर अपने पैसे मोज सकता है. आज भी देश के फलोत्पादन बाजार में यही हो रहा है. जो काम मत्स्य उत्पादों, फलोत्पादन और दुग्ध उत्पादन के साथ संभव है, वह कृषि उत्पाद के साथ क्यों संभव नहीं है?
जो लोग यह कह रहे हैं कि भोले भाले किसान को घर जाकर व्यापारी लूट लेंगे, क्या वे यह कहना चाहते है कि एक मछली पकड़नेवाले और फल दूध बेचनेवाले से भी किसान ज्यादा कमअक्ल है? #milk#fruits
४. फिर फर्क क्या पड़ेगा?
आज किसानों का माल बेचने वाली व्यवस्था में कृषि उत्पन्न बाजार समिति का एकाधिकार है अगर कोई व्यापारी किसान के घर जाकर उसका माल खरीदता है तो उसकी दलाली भी उसे कृषि उत्पन्न बाजार समिती को भेजनी पड़ती है, भले ही उसने उनकी बाजार व्यवस्था का कोई फायदा
ना लिया हो. कृषि उत्पन्न बाजार समिति के प्रांगण में व्यापारी एक प्रकार का वर्तुल बनाकर किसानों का शोषण किया करते हैं. इन व्यापारियों को लायसेंस देने में मंडी वाले मनमानी किया करते थे और नए आदमी का उस वर्तुल में घुसना एक बेहद मुश्किल मामला था. #MinimumGovt#LicensePermitRaj
किसान अपना माल लाने- ले जाने का परिवहन खर्च खुद करता था और उसकी इतनी क्षमता नहीं होती थी कि वह अपना माल कृषि उत्पन्न बाजार समिति के गोडाउन में जगह किराए पर लेकर रख सके और अच्छे भाव का इंतजार कर सके. आज वह सब चीजें अपने घर में बैठकर कर सकता है और उसकी जब इच्छा हो, #antifarmerlaws
जिस कीमत पर इच्छा हो, जिस शर्त पर उसकी इच्छा हो उस शर्त पर वह माल दे सकता है.
५. क्या केन्द्र सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रही है?
विजय जावंधियाजी ने कल सामना के अपने लेख में आरोप लगाया है कि केन्द्र की भाजपा सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रही है.
मेरा उनसे प्रश्न है, क्या आपके पास इसके कोई आँकड़े हैं? पिछले ६ सालों में एमएसपी पर हुयी खरीदी के आँकड़े इस झूठ का अपने आप पर्दाफाश कर देते हैं. हर साल पिछले वर्ष के मुकाबले सरकार की कुल खरीदी बड़ी ही है. सरकार यदि बाजार को किसान के घर तक ला रही हो
तो इसमें उसका जिम्मेदारी से भागने का विषय कहाँ आ जाता है?सरकार यदि मंडियों की अनुचित दलाली का शोषण बंद कर रही तो तो इसमें जिम्मेदारी से भागने का मामला कहाँ जाता है? मंडी का अर्थ होता है, ऐसी जगह जहाँ ग्राहक और उत्पादक एक जगह आकर सौदे कर सकें. किन्तु यदि आपके साथ जबरदस्ती #Farmer
की जाए कि आपको यहाँ आना ही पड़ेगा, अन्यथा आपके आर्थिक व्यवहार अपराध माने जायेंगे, तो मामला बिगड़ जाता है. यही आज तक हो रहा था और इसके लाभार्थी वे समूह थे, जो माला तो किसानों के भले की जपते थे, किन्तु सदा किसानों का शोषण किया करते थे. केवल इन लोगों की चालाकियों और बदमाशी के
कारण आज तक इस देश में राष्ट्रिय कृषि उपज बाजार का गठन नहीं हो पा रहा हैं #exploitation
६. ये सुधार क्यों आवश्यक है?
कृषि उत्पन्न बाजार समिती में कोई सुधार पिछले 70 सालों में नहीं हुए हैं. आप इसकी तुलना भारत के शेयर बाजार से भी कर सकते हैं. जब तक शेयर बाजार पर कुछ बड़े दलालों
का कब्जा था, वे लोग प्रतिभूतियों के सौदे बेहद गोपनीय नियमों के अंतर्गत बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में किया करते थे. जिसका नुकसान केवल और केवल ग्राहकों को होता था. ग्राहकों को उनके शेयर बेचते के समय कम कीमत मिलती थी और खरीदते समय उन्हें ज्यादा कीमत देना पड़ता था.
किंतु जैसे ही 1996 में प्रतिभूतिबाजार में सुधार के साथ नेशनल स्टॉक एक्सचेंज सामने आया, शेयर बाजार का पूरा व्यवहार ज्यादा पारदर्शक हो गया और उसमें ग्राहकों की होने वाली लूट पूरी तरह से समाप्त हो गई. अब ना तो कोई हर्षद मेहता अर्थव्यवस्था से खिलवाड़ कर सकता है ना
ही किसी केतन पारेख में इतनी क्षमता है कि वह मार्केट को अपनी उंगलियों पर नचा ले. आज कोई भी किशोर अपने घर में अपने मोबाईल पर भारत के शेयर बाजार में व्यवहार कर सकता है, अपना नफा नुकसान देख सकता है.
क्या देश के किसान ऐसी किसी व्यवस्था के हक़दार नहीं हैं? क्या किसानों के बच्चों को
अपने आर्थिक व्यवहार मोबाईल पर करने की छूट नहीं मिलनी चाहिए? आपको घर बैठे आपके हिस्से की दलाली भेजते रहने का क्या उन्होंने ठेका लेकर रखा है? अपने माल को अपने आंगन में बेचने में जुर्म और पेनाल्टी जैसी कौन सी बात थी? किन्तु क्या यही आज तक मंडी समर्थकों ने नहीं किया है?
दुर्भाग्य से भारत का कृषि विपणन राजनीतिक नेताओं के कब्जे में होने के कारण और उसकी दलाली से उनकी राजनीति चलती रहने के कारण आज तक जितने भी सुधार घोषित किए गए, वे कभी अमल में नहीं लाये जा सके और सुधार विरोधी नेताओं का कब्जा कृषि उत्पन्न बाजार समिती के उपर कायम रहा.
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किसानपुत्र आंदोलनाचे वेगळेपन
💡साहेबराव करपे कुटुंबियांच्या सामूहिक आत्महत्येच्या दिवशी 19 मार्च रोजी 'अन्नदात्यासाठी अन्नत्याग' करण्याची सुरुवात किसानपुत्र आंदोलनाने केली.
💡18 जून ला किसानपुत्र आंदोलनाने 'शेतकरी पारतंत्र्य दिवस' म्हटले. #19मार्च#SahebraoKarpe#18June
💡शेतकऱयांचा प्रश्न गरिबीचा नसून गुलामीचा आहे, ही बाब किसानपुत्र आंदोलनाने ठामपणे सांगितली.
💡शेतकरी या शब्दाची नेमकी व्याख्या करून शेतकऱयांच्या नावाखाली बिगर शेतकऱयांच्या 'कर्ज बेबाकी'चा विरोध केला. #freedom#Farmer#poverty
💡अनुदान आणि कर्ज माफी न मागता शेतकऱ्यांसाठी संपूर्ण स्वातंत्र्य मिळण्यासाठी पुन्हा एकदा संघर्ष करणे हाच किसानपुत्र आंदोलनाचा एकमेव कार्यक्रम आहे.
💡शेतकऱ्यांचे वैयक्तिक आणि व्यावसायिक स्वातंत्र्य हिरावून घेणारे कायदे हे देशविरोधी कायदे आहेत, हे किसानपुत्र आंदोलनाने ओळखले #Law
सरकारनेच जमीन अधिग्रहण कायदा राबवून, शेतकऱ्यांची लाखो एकर जमीन तिही अत्यंत कमी दराने संपादित केली आणि भांडवलदारांच्या घशात घातली.तालुका स्तरापासून राजधानीच्या शहरापर्यंत औद्योगिक क्षेत्रासाठी जमीनी संपादित करण्यात आल्या. त्या हडपलेल्या जमिनिचे भाव आता गगनाला #antifarmerlaws#land
भिडले आहेत, हजारो हजार रुपये एका एका चौरस फूटाच्या किमतीचे झाले आहेत. एका एका उद्योगपतीकडे अशी हजारो एकर जमीन पडून आहे. अशा या सुलतानी कायद्याबद्दल मुग गिळून गप्प बसणारे लोक, आता अदानी अंबानी शेतकऱ्यांच्या जमीनी बळकावतील असा कांगावा करत आहेत. हे लोक एक लक्षात घेत नाहीत की #Ambani
ज्या दिवशी औद्योगिक घराण्यांना शेती करावी वाटेल त्या दिवशी जमीन धारणा कायदा संपलेला असेल. आवश्यक वस्तू कायदा संपलेला असेल. त्या परिस्थितीत शेतकरीही आपल्या मनाप्रमाणे किंमती घेऊन भांडवलदारांना जमीनी विकतील.
आडचण हीच आहे की, चार महिने अथवा वर्षांतून एकदा उत्पादन देणारा #FarmerBill
અમે અમારા પુસ્તકની નવી નકલને ગુજરાતી ભાષામાં રજૂ કરવા બદલ આનંદ અનુભવીએ છીએ. ગુજરાતના ખેડુતોએ આ પુસ્તક વાંચવું જોઈએ અને ખેડૂત વિરોધી કાયદાઓ વિશે જાણકારી મેળવવી જોઈએ. #Gujrati#BookLaunch#antifarmerlaws#KisanputraAndolan
📍तीन कृषी कानुनो का स्वागत लेकीन... #आवश्यक_वस्तू_कानून से कुछ कृषी उपज को निकाल देना, मार्केट कमिटी के बहर भी कृषी उपज की खरीद और बिक्री की छूट देना, या कंपनियो को किसानो से करार (#कॉन्ट्रॅक्ट) करने की पाबंदी हटाना, इन तिनो कानुनो मे आपत्तीजनक क्या है? मुझे आपत्ती नजर नही आती।
हां, कुछ कमजोरीया जरूर हैं। जैसे आवश्यक वस्तू कानून से मात्र खेतीमाल हटाना काफी नही है। यह कानून जड से उखाड फेंकना चाहीये। बाजार खुला करने की बात दुरुस्त है। करार करणे की कानून में प्रशासकीय न्याय व्यवस्था के साथ किसान ट्रिब्युनल की बात जोडी जा सकती है।
अर्थात निर्धारित दिनो मे फैसला सुनाने के निर्बंध के साथ इस ट्रिब्युनल को काम करना होगा।
जो हुवा उसे विरोध करने की जरुरत नही है। इन कानुनो से जो माहोल बनेगा उसका इस्तेमाल कर के #सिलिंग, #आवश्यक_वस्तू तथा #जमीन_अधिग्रहण जैसे #किसान_विरोधी_कानून रद्द कराने की मोहीम
हुरळली मेंढी लागली लांडग्याच्या पाठीमागे, असा एक वाक्प्रचार प्रचलित आहे. शेतीविषयी मंजूर केलेल्या कायद्या नंतर उद्भवलेली परीस्थिती आणि उडवला जाणारा कोलाहल पहाता हा वक्प्रचार आठवल्या शिवाय रहात नाही.
सत्ताधारी पक्ष भाजपा, विरोधी पक्ष कॉंग्रेस आणि त्यांनी पोसलेली पिलावळ, आणि
बनावट शेतकरी संघटनांच्या नावाने काही अनभ्यस्त शेतकरी नेते मंडळी यांची अवस्था त्या हुरळलेल्या मेंढीसारखी झाली आहे.
शेतकऱ्यांना स्वातंत्र्य देण्याच्या नावाने सरकारने जी बिले मंजूर केली आहेत ती खरेच सत्ताधारी म्हणतो त्याप्रमाणे शेतकऱ्यांना स्वतंत्र्य देणारी आहेत का ?
की विरोधी पक्ष म्हणतो त्याप्रमाणे शेतकरी आणि त्यांच्या जमीनी भांडवलदाराच्या घशात घालण्याचा हा डाव आहे ?
बनावट शेतकरी संघटनांच्या नावाखाली काही नेते मंडळी ज्याकडे इशारा करतात त्या हमीभावाचा मंजूर झालेल्या बिलाशी काही संबंध आहे का ?
"बाजार समिती नियमन मुक्ती विधेयक"
1960-70 च्या काळामध्ये शेतकऱ्यांना शेतमाल विकण्यासाठी एपीएमसी मार्केट तयार करण्यात आली. या नवीन विधेयकाने शेतकऱ्याला कृषिमाल विक्री एपीएमसी मध्ये करण्याची बंधन राहणार नाही. याने त्याच्या पुढील नवीन पर्याय उपलब्ध झाला आहे.
तो एपीएमसी मार्केटमध्ये ही विकू शकतो किंवा त्याला वाटत असेल तर तो मार्केटच्या बाहेरही विकू शकतो म्हणजे या कायद्याने एपीएमसी मार्केट संपवले नाहीत तर शेतकऱ्यांपुढे एक नवा पर्याय खुला केला आहे. याने शेतकऱ्याचा काय फायदा होईल तर शेतमाल विकत घेण्यामध्ये जी एक मक्तेदारी निर्माण झालेली
आहे त्याला आळा बसेल. कोणतीही पॅन कार्ड धारक व्यक्ती किंवा संस्था शेतकऱ्यांचा शेतमाल विकत घेऊ शकते म्हणजे यामध्ये असणारे अडते मध्यस्थ यांना बाजूला सारून पारदर्शकपणे शेतकऱ्याला आपला शेतमाल विक्री करण्याचे स्वातंत्र्य हे विधेयक देते. यावर आक्षेप असे आहेत की हे एपीएमसी मार्केट कमिटी