यमलोक सब ओर से छियासी हज़ार योजन विस्तृत है । वहां नाना प्रकार के भयानक रूपधारण करने वाले यमदूत रहते हैं और उन्हीं के कारण वह पूरी बड़ी भयङ्कर प्रतीत होती है दुष्टात्मा, क्रूर एवं पापी पुरुषों के लिए यमपुरी दूर होने पर भी निकट सी ही प्रतीत होती है ।
वे तीखे काँटों से युक्त, कंकड़ पत्थरों से विभूषित, छुरे की धारों से आच्छादित और तीक्ष्ण पत्थरों से निर्मित मार्ग से यात्रा करते हैं ।
निकृष्ट मार्ग से यमराज के नगर में गए हुए पापी जीव आज्ञा मिलने पर दूतों द्वारा यमराज के सम्मुख पहुंचाए जाते हैं ।
वहां चित्रगुप्त उन पापियों को धर्मोपदेश करते हुए उनके पापों का स्मरण करते हैं । तब उन्हें पाप से शुद्ध करने के लिए यमदूत नरक के समुद्र में डाल देते हैं ।
नरकों की अट्ठाइस श्रेणियां हैं, जो सातवें पाताल के अन्त घोर अन्धकार के भीतर स्थित है -
1) अतिघोरा
पहला रौरव है क्योंकि उसमें पड़े हुए प्राणी रोते हैं ।
दूसरा महारौरव है जिसकी दुःसह पीड़ा से महान साहसी भी रो देते हैं।
तीसरा तम चौथा शीत और पांचवां उष्ण है ।
इस प्रकार पहली कोटि के ये पांच नायक माने गए हैं ।
2) रौद्रा
दूसरी कोटि के अघोर, तीक्ष्ण, पद्म, संजीवन और शठ - ये पांच नायक हैं ।
3) घोरतमा
तीसरी कोटि के नायक हैं - महामाय, विलोम, कण्टक, कटक और तीव्र ।
4) अत्यंत दुःखजननी
चौथी कोटि के नायक - वाम, कराल, किंकराल, प्रकम्पन और महाचक्र ।
5)घोररूपा
पांचवी कोटि के नायक - सुपद्म, कालसूत्र, प्रागार्जन, सूचीमुख और सुनेमी ।
6) तरणतारा
छठी कोटि के नायक - खादक, सुप्रपीड़ित, कुम्भीपाक, सुपाक और क्रकच ।
7) भयानका
सातवीं कोटि के नायक - सुदारुण, अंगाररात्रि, पाचन, असृक्पूयभव और सुतीक्ष्ण ।
8) कालरात्रि
आठवीं कोटि के नायक - शुण्ड, शकुनि, महासंवर्तक, क्रतु और तप्तजन्तु ।
9) घटोत्कटा
नवीं कोटि के नायक - पंकलेप, पूतिमान, हृद, त्रपु और उच्छवास हैं ।
10) चण्डा
दसवीं कोटि के नायक - निरुच्छवास, सुदीर्घ, क्रूर, शाल्मलि और उष्ट्रित हैं ।
11) महाचण्डा
ग्यारहवीं कोटि के नायक - महानाद, प्रवाह, सुप्रवाहन, वृषाश्रय और वृषश्व हैं ।
12) चण्डकोलाहला
बारहवीं कोटि के नायक - सिंघानन, व्याघ्रानन, गजानन, श्वानन और सूकरानन हैं ।
13) प्रचण्डा
तेरहवीं कोटि के नायक - अजानन, महिषानन, मेषानन, मूषकानन और खरानन हैं ।
14) वराग्निका
चौदहवीं कोटि के नायक - ग्राहानन, कुम्भीरानन, नक्रानन, महाघोर और भयानक हैं ।
15) जघन्या
पंद्रहवीं कोटि के नायक - सर्वभक्ष, स्वभक्ष, सर्वकर्मा, अश्व और वायस हैं ।
16) अवरालोमा
सोलहवीं कोटि के नायक - गृध्रोलूक, उलूक, शार्दूल, कपि और कच्छुर हैं ।
17) भीषणी
सत्रहवीं कोटि के नायक - गण्डक, पूतिवक्त्त्र्य, रक्तास्य, पूतिमूत्रिक और कणधूम्र हैं ।
18) नायिका
अट्ठारहवीं कोटि के नायक - तुषाराग्नि, कृत्रिमान, निरय, आतोद्य और प्रतोद्य हैं ।
19) कराला
उन्नीसवीं कोटि के नायक - रुधिरोद्य, भोजन, कालात्मग, अनुभक्ष और सर्वभक्ष हैं ।
20) विकराला
बीसवीं कोटि के नायक - सुदारुण, कर्कट, विशाल, विकत और कटपूतन हैं ।
21) वज्रविंशति
इक्कीसवीं कोटि के नायक - अम्बरीष, कटाह, कष्टदायिनी वैतरणी, सुतप्त और लौहशंकु हैं ।
22) अस्ता
बाईसवीं कोटि के नायक - एकपाद, अश्रुपूर्ण, घोर असिपत्रवन, प्रतिष्ठित अस्थिलिङ्ग और तिलयंत्र हैं ।
23) पञ्चकोणा
तेईसवीं कोटि के नायक - अतसीयन्त्र , इक्षुयन्त्र, कूट, पाप और प्रमर्दन हैं ।
24) सुदीर्घा
चौबीसवीं कोटि के नायक - महाचुल्ली, विचुल्ली, तप्त लोहमयी शिला, क्षुरधार पर्वत और मय हैं ।
25) परिवर्तुला
पच्चीसवीं कोटि के नायक - यमल पर्वत, सूचीकूप, विष्ठाकूप, अन्धकूप और पतन हैं ।
26) सप्तभौमा
छब्बीसवीं कोटि के नायक - पातन, मुसली, वृषली, अशिवा और संकटला हैं ।
27) अष्टभौमा
सत्ताईसवीं कोटि के नायक - तालपत्र वन, असिगहन, महामोहक, सम्मोहन और अस्थिभङ्ग हैं ।
28)दीर्घमाया
अट्ठाईसवीं कोटि के नायक - तप्ताचलमय, अगुण, बहुदुःख, महादुःख और कश्मल हैं ।
ये सभी नरको की कोटियां हैं । इन सबके क्रमशः पांच-पांच नायक होते हैं ।
इनके सीवा यमल, हालाहल, विरूप, श्वरूप, च्युतमानस, एकपाद, त्रिपाद और तीव्र आदि नरक हैं । इस प्रकार यहाँ नरकों के अट्ठाइस पञ्चक बताये गए हैं ।
Source :
- Yudhishthira and markandeya muni samvad, Skand Purana, Compiled by @desidoga and please add missing or suggestion information
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Gyan Yoga (Sundar/Beautiful): Once a person conquers the Rajo-guna and identifies himself with absolute, all his past deeds are freed, be it good or bad. Would merge within the supreme without any Karma lingering BG 6.27
Karma Yoga : The true Sanyasi is the one who lets go the fruits of Karma, because a person cannot get rid of doing (good/ugly) Karma due to material nature influence. But those who have renounced the fruits of action are unaffected and would get Moksha; others get mixed fruits.
A Note : The Tilaka commentary of Nāgeśa Bhaṭṭa on Ayodhya-kāṇḍa, Sarga 56 (50 in CE), Verse 1, clarifies that the popular notion is not supported by Vālmīki Rāmāyaṇa, but the legend is so beautiful and underrated.
It starts with "Laughter of Lakshmana" !
The Laughter of Lakshmana:
After defeating Ravana, Rama returns to Ayodhya, along with his wife and brother Lakshmana. Later, Rama was crowned in the presence of all the Gods, sages and others.
Without knowing who we are or the self before death arrives is like living a dream.
And in a dream we never know we are in a dream first, and where we will wake up after the dream second.
Calling enlightenment destiny creates an illusionary thought, that it will happen automatically, eventually since its a destiny, destiny means it will happen for sure.
But it is not like that, to attain enlightenment one has to seek it, practice it.
Every human has two options, to live the life with nature like any other animals do OR to rise above the nature, this possibility is true for humans only. So, its not a matter of time its a matter of doing it.
The Bhagavad Gita portions are in fact a live running commentary by Sanjaya to Dhritarashtra. The author Sri Vyasa in Mahabharata gives Bhagavad Gita to us through Sanjaya only.
One (Arjuna) listened Srimad Bhagavad Gita directly in front of Lord Krishna. One with divine vision (and ear, both given by Vedav Vyasa) at the Hastinapura palace also listened (Sanjaya). One more heard the running voice commentary through Sanjaya (the king Dhritarashtra).
Morning Satsang : Vanquishing Pride is True Sacrifice
Can we describe the colour of water? God is, likewise, indescribable. His appearance is like what you imagine Him. We see Him according to the magnitudes and proportions of our various passions.
The more mitigated one’s passions, the nearer one is to the true perception of Him. It is unwise to ask how a single Rama can be perceptible to many at the same time, for He is omnipresent, subtly inherent in all creation.
The Ultimate Reality is neither born nor dies; it exists everywhere, timelessly. Why, then, some may ask, celebrate His birthday? It is like this: some children were rollicking in the hall of the house, unaware that grandpa was at home and in the adjoining room;.....
What is the meaning or importance of snakes in Hinduism?
Snakes are very important in Hinduism. There are many reasons for this; snakes shed their skin, and grow it back later. This represents "rebirth", while also representing death and mortality. 1/n
Not just that - snakes cannot be tamed; hence, they represent freedom. Another reason is given :
All nagas are considered the offspring of the Rishi or sage, Kasyapa, the son of Marichi....
...Kashyapa is said to have had by his twelve wives, other diverse progeny including reptiles, birds, and all sorts of living beings.
They are denizens of the netherworld city called Bhogavati. It is believed that ant-hills mark its entrance.