चंद्रमा और शनि की युति से विष योग का निर्माण होता है l
अगर यह युति किसी महिला के सप्तम भाव में हो तो उसे विषकन्या कहते हैं l पौराणिक ज्योतिष के अनुसार यानी वह महिला जितने से भी शादी करेंगी या जितने से उसका संबंध होगा l सभी किसी न किसी प्रकार से मृत्यु या कष्ट के भागीदार होंगे l
चंद्रमा जिसे हम मन कारक ग्रह कहते हैं l हमारे मन का प्रतिनिधित्व करता है l मन सबसे ज्यादा चंचल होता है l
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अगर उसके साथ शनि की युति हो जाए तो मन की चंचलता में धीमापन आ जाएगा l जातक सुस्त हो जाएगा l आलसी हो जाएगा और और हर कार्य को टालने की आदत हो जाएगी उसमें I
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अपने निकम्मेपन को ढकने के लिए वह हमेशा झूठ बोलेगा चापलूसी करेगा I उसे शराब या अन्य नशा की आदत भी हो सकती है I
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हर भाव में इसकी अलग-अलग प्रभाव पड़ता है :-
1.) कुंडली के प्रथम भाव में यह योग दिमाग से सुस्त , अपने जरूरी कार्यों को भी डालने वाला , नीरस स्वभाव तथा स्वार्थी होता है l इनका वैवाहिक जीवन भी ठीक नहीं गुजरता l
2.) द्वितीय भाव में यह योग कटुभाषी , झूठ बोलने वाला, दूसरों पर गलत आरोप लगाने वाला , नशे करने वाला शराबी , रिश्तेदारों से वैर रखने वाला तथा दरिद्र होता है I
3.) तृतीय भाव में यह योग भीरू ,डरपोक दूसरों की चापलूसी करने वाला तथा धोखेबाज होता है l
4.) चतुर्थ भाव में यह योग अचल संपत्ति से वंचित , समाज तथा जनता के बीच इनकी कोई इज्जत नहीं रहती , किसी ना किसी कारण से ऐसे व्यक्तियों का घर समाज में बदनाम रहते हैं l घर में स्त्रियों का प्रभाव ज्यादा रहता है l
5.) पंचम भाव में यह योग मूर्ख और शिक्षा से वंचित , बेशर्म , मनोरंजन में लिप्त , घर परिवार की चिंता ना करने वाला लापरवाह होता है l
6.) षष्ट भाव में यह योग मानसिक गुप्त शत्रु पैदा करता है I यह ऐसे मानसिक शत्रु होते हैं जो जिंदगी में विष घोल देते हैं और बर्बादी की ओर ले जाते हैं l जातक मानसिक बीमारी से भी परेशान रहता है l
7.) सप्तम भाव में यह योग वह वैवाहिक जीवन बर्बाद कर देता है l पति पत्नी के बीच विश्वास की कमी रहती है l यह एक दूसरे पर शक की प्रवृत्ति रखते हैं l कोई भावनात्मक संबंध नहीं रह जाता है l
8.) अष्टम भाव में यह योग खानदान की बर्बादी को दर्शाता है l पुरखों का नाम बदनाम करता है l शराबी तथा नीच होता है l
अंतिम समय में दरिद्र की जिंदगी व्यतीत करता है l
9.) नवम भाव में यह योग भाग्य को उठने नहीं देता है l जातक के अंदर कितना भी गुण हो वह चीज प्रदर्शित नहीं हो पाता है l कभी-कभी जातक को मूर्ख और नास्तिकता की ओर ले जाता है l
10.) दशम भाव यानी कर्म भाव में या योग आलसी , लापरवाह , हर कार्य को टालने वाला तथा निकम्मा होता है I
11.) एकादश भाव में यह योग महत्वाकांक्षा तथा इच्छा से वंचित धन रहित जीवन व्यतीत करने को बाध्य रहता है l घर परिवार या समाज का भी इन्हें कोई सहयोग नहीं मिलता l
12.) द्वादश भाव में यह योग स्त्री से वंचित , तपस्वी , हठयोगी , लीचड़ , कंजूस तथा अकेला जीवन व्यतीत करने वाला होता है l
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इस योग में गुरु या शुक्र की युति या दृष्टि योग की आशुभता में कमी लाता है और इस योग को खंडित भी करती हैं l
इस योग का प्रभाव राशि और लग्नेश पर भी निर्भर करता है I
अगर कुंडली में और भी योग अच्छे बन रहे हैं तो भी इस योग कि आशुभता कमी आती है l
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